बगीचा की हत्या

    बहुत समय पहले की बात है ।एक शिक्षक थे । उनका नाम शिव शंकर था अपनी सेवानिवृत्ति होने के बाद उन्हे देश में बढ़ते हुए प्रदूषण के खतरे का आभास हुआ तब उन्होंने सोचा कि अपने घर के चारों और हरियाली लगाने के लिए तरह तरह के पेड़ पौधे लगाए जाएं । इसप्रकार एक बगीचा बना लिया जो अति सुंदर था उन्हें सिर्फ दो शोक थे एक बच्चों की निशुल्क शिक्षा देना और दूसरा बागवानी की प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर इनाम पाना

     एक दिन शिव शंकर ने सुबह सुबह अपने धर का दरवाजा खोला और बगीचे में गए तो वहां का दृश्य देखकर सन्न रह गए ।उनके  बगीचे  मे डेहलिया और  गुलदाऊदी के पौधों  साथ साथ छोटे-छोटे पोधे नहीं थे  पूरा बगीचा तहस नहस  हो गया था ,देखकर बड़ा दुख हुआ सोचा कि वह बगीचे में इस तरह के पौधों की हत्या करने वाले को सबक खिलाकर ही रहेंगे ।

     आप भी सतर्कता बरतने लगे और बजे बगीचे की रखवाली करने लगे एक दिन उन्होंने देखा कि पड़ोस में रहने वाला 12 13 बरस का एक लड़का पौधे और आर्गन एक रहा था उन्होंने सुरेश को दो तीन कांटे मारे तो उसने रोते हुए बोला मैं अपनी मर्जी से पौधे नहीं उखाड़  रहा हूं। 

     " तुम्हे पौधे उखाड़ फेंकने के लिए किसने भेजा है ? "शिक्षक ने पूछा !

     " मैं उसका नाम नही बता सकता वर्ना वह मुझे मार डालेगा?" लड़के ने कहा !

     शिवशंकर समझदार थे । वे समझ गए कि कोई शरारती व्यक्ति जानबूझकर यह कार्य कर रहा है ताकि मैं प्रतियोगिता मे भाग नही ले सकू।

    शिवशंकर को पता लग गया था कि मोहल्ले मे रहने वाला व्यक्ति हरदायल जो दादा किस्म का व्यक्ति है ,वह भी हर साल प्रतियोगिता मे भी हिस्सा लेता है किंतु जीत नही पाता था।

    शिक्षक शिवशंकर ने बातो बातों  मे हरदयाल को समझाया कि डहेलिया, गुलदाउदी तथा अन्य पौधे बड़ै नाजुक होते है। इन पौधों को उखाड़ने के बाद दूसरी जगह नहीं लगाया जा सकता है, इन पौधों को उखाड़ना उनकी हत्या करना है ।

    अगले वर्ष बागवानी प्रतियोगिता  मे हरदायल को पुरस्कार को मिला । इस प्रतियोगिता के निर्णायक शिवशंकर शिक्षक थे ।

गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन ।

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