लेने की अपेक्षा देना श्रेष्ठ है
इस संसार में लेन-देन की प्रथा शुरू से कायम रही है । प्रकृति शुरू से ही हमे हमेशा देते रहती है।वह हमसे कोई अपेक्षा नही रखती है और जीवन भर कुछ ना कुछ देते ही रहती है । इसी वजह से वह अपनी जगह पे चिरस्थाई है। यहाँ सबसे बड़ी बात यह है कि देने मे जो आनंद मिलता है उसकी कोई सीमा नही है । इसी वजय से प्रकृति को पृथ्वी माता के रुप स्वीकार किया जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है । क्योंकि वह देती ही है,लेती नही है,माँगती भी कुछ नही है इसी वजय से श्रेय कर है । अब ऐसे मे इंसान का भी उत्तरदायित्व है कि इसके बदले में अच्छे कर्म करे और लोगो की भलाई करे । इस भलाई को प्रकृति की देन समझकर उस अदृश्य शक्ति जिसे हम ईश्वर मानते है, पर अटूट विश्वास व अभार प्रकट करे।
एक सयय की बात है । गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन अपने शिष्यो के साथ नर्मदा नदी की पंचकोसी यात्रा करने निकलते है । यह यात्रा पैदल की जाती है । रास्ते मे क ई खेत मिले । हर खेतो मे किसान काम करते हुए मिले । सभी लोग ईश्वर का स्मरण करते हुऐ नर्मदा माई की जयजयकार करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे और जहाँ रात्री हो जाती तो वे लोग रात्री विश्राम कर दूसरे दिन यात्रा शुरू कर देते ।
इस यात्रा को रोचक बनाने के लिए कोई अच्छा काम करने हेतु सोच ही रहे थे कि रास्ते में एक थैला मिला जिसमे किसानो से संबंधित कु छ जरूरी समान रखा हुआ मिला । सभी लोगों ने इधर उधर नजरे दोड़ाई वहां उन्हे कोई भी नही दिखाई दिया ।अब शिष्यों को कुछ शरारत करने की सूजी । एक शिष्य ने कहाँ"इसे हम छुपा देते है । किसान इसे ढूढ़ेगा तब बड़ा मजा आएगा । किसु किसी ने कुछ बताया तो किसी ने कुछ और बतलाया । सब लोग गुरु जी के पास गए और अपनी अपनी बाते प्रकट की । गुरूजीसत्यवादी ने कहा कि समान छुपाने की बदले में हम चंंदा कर कुछ रू०उसके झोली केअंदर रख देते और देखते है किसान के हावभाव ? सब छुप जाते है । किसान आया औल थैले मे से अपने समान को देखते ही अंंदर की ओर हाथ डाला अपना सामान निकालने बाबत तो वह हक्कबक्का हो गया , उसमे वहां उसे नोटौ की गिड्डी मिली । उसने चारो तरफ देखा कोई नही मिला । मजदूर किसान पैसे पाकर आत्मविभोर हो गया ,उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे ।वो वही घुटने के बल बैठ गया और आसमान की तरफ हाथ जोड़कर बोला "हे भगवान ! आज आप ही किसी रूप मे आए थे, समय मे प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी मदद् दी,उसका लाख लाख थन्यवाद ।" आपकी इस सहायता से बीमार पत्नी की दवा व भूखे बच्चों को रोटी मिलेगी । आप बड़े दयालू हो प्रभु ।
गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन ने अपने शिष्यों को बतलाया और कहा कि लेने की अपेक्षा देने मे जो आनंद आता है उसे भगवान का ही आदेश समझे अर्थात देना देवत्व समतुल्य है ।
गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन ......
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