धार्मिक भावनाओं से मुक्ति की ओर ......

    धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत व्यक्ति अपने आप को एक सीमित दायरे मे रखकर पालन करने में कोई कसर नही छोड़ रहा है। इसी के साथ साथ अपनी स्वच्छ, निर्मल व्यक्तित्व का निर्माण करने मे,धर्म का पालन  करने मे पूरा जीवन व्यतीत कर देता है तब वह सत्यवादी कहलाता है । लोभ,लालच, मोह माया ,ममता का त्याग करना प्रथम सीढ़ी है । उसके बाद खान  पान का भी ध्यान रखा जाता है । उतना ही भोजन लेना है जितना आपका शरीर के संचालन चल सके । 

    वर्तमान समय में सरकार धार्मिक भावनाओं से जुड़े लोगो पर गाईडलाईन लागू करने के बारे मे सोच रही है ।वजय कुछ भी हो सकती है। धार्मिक स्थलों मे प्राप्त धनराशि और आभूषण जो दानस्वरूप प्राप्त हो रहा है, उस पर अंकुश लगाकर नानाप्रकार की योजनाओं मे परिवर्तन कर रही है । अब वह दिन दूर नही है जब सरकार इस पर कानून बनाकर अर्जित धन सम्पत्ति पर एक समयसीमा निर्धारण नीति कै अंतर्गत अध्यादेश बनाकर अचानक नोट बंदी जैसे ,लागू कर सकती है ।

   धर्म के नाम से राजनीति चल रही है । धर्म मे राजनीति करण वोट प्राप्त करने के लिए जरुरी हो गया है । धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देना बंद करना पड़ेगा । 

  इतिहास गवाह है कि इस्लाम धर्मावलंबियों के खिलाफ अनेकों देश में भी दूसरी तरह की कट्टरता बढ़ी है ।अफगानिस्तान पर इस्लामी कट्टरवादी समूह के कब्जे  के बाद सबसे ज्यादा आशंका अंततः सम्य होते समाज को फिर से बर्बरयुग  मे धकेल दिए जाने की है । चिंताजनक बात यह है कि क ई देश फिर इस कोशिश में लगे है कि तालीबानी से चर्चा करके आंतकीफोड़े  को नियमित करने का प्रयास किया जावे  और इसके बदले विश्व विशदरी बंदूक की नोक  पर स्थापित सत्ता को राजनीति मान्यता प्रदान करे।

    धार्मिक भावनाओं के साथ साथ कट्टरवाद पर भी जोर देने की जरुरत है ।


गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन

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