हिम-देव

 एक गांव में एक बूढ़ा और एक बुढ़िया रहते थे उनके एक लड़की और एक लड़की थी अर्थात एक एक लड़की दोनों की थी ।

  हर कोई जानता है कि सोतेली माताएं कैसी होती है ।चाहे तुम काम करो या संवारो,पढ़ाई करो या ना करो अच्छा काम करो या बिगाड़ करो मार तो खानी ही पड़ेगी अपनी बेटी चाहे जैसी भी हो जो भी करें उसे उसकी सराहना की जाती है उसे हमेशा शाबाशी दी जाती है।

  बूढ़े की बेटी रोज सुबह सुबह उठती है पूरे घर की साफ सफाई के साथ-साथ घर के बर्तन झाड़ू पोछा ,पानी भरना ,जलाने के लिए लकड़ी काट कर लाना आदि आदि कार्य करती थी ।किंतु सौतेली मां उसमे भी गलती निकाल कर डांटते रहती थी।

   जोरो से चलने वाली हवा तो शांत हो जाती है किंतु बुढ़िया एक बार चालू हो जाए तो रुकने का नाम नहीं लेती ।सौतेली बेटी से उसने छुटकारा पाने के लिए एक दिन बुढ़िया ने निश्चय किया और उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किया -

  "बूढ़े, इसे यहाँ से ले जाओ,उसने अपने पति से कहा!इसे जंगल में छोड़ आओ,मै इससे बहुत तंग आ गई हूं।" 

  बूढा बहुत दुखी हुआ,मगर कुछ नही कर सकता था अतः लड़की को घोड़े पर बिठाकर जंगल मे छोड़ आया। जंगल में अच्छा सा स्थान देखकर, जहां ठंड और गिरने वाली वर्फ से थोड़ी राहत मिल सके। वहां पर बिठा कर उदास मन से वहा से बहाना बनाकर ईश्वर के भरोसे छोड़ कर चला गया।

  उस रात्री जरूरत से ज्यादा ठंडी पड़ी और वर्फ भी ज्यादा गिर रही थी।

  बेहद सर्दी थी। लड़की बेचारी देवदार वृक्ष के नीचे बैठी ठिठुर रही धी।इतने में वहाँ वनो के देवता हिमदेव आए।

  "तुम्हे ठंड तो नही लग रही हैं, लड़की?

   " नही,नही,हिमदेव"

   हिमदेव ने इसीप्रकार से तीन बार लड़की से पूछा, वह हर बार ,ठंड नही लग रही हैं, कहते रही। आखिरकार हिमदेव को उस पर बड़ा तरस आया और उन्होंने लड़की को गरम कम्बल शाँल से लपेट दिया।

दूसरी तरफ घर पर बुढ़िया मातमी त्यौहार मंनाने की तैयारी कर रही थी, अपनी सौतेली लड़की की याद मे पुड़िया सेंक रही थी।उसने अपने पति से कहा-"अरे ओ बूढ़े। घूसठ ,जंगल में जाकर अपनी बेटी को दफनाने के लिए लेकर आओ।" 

   बूढ़ा जंगल गया, वहां अपनी लड़की को अच्छी ओर भली चंगी पाकर बहुत खुश हुआ। लड़की सोने चांदी से लदी होने के साथ साथ उसके चारो तरफ उपहार पड़े हुए थे। बूढ़ा, सभी सामान सामाध्रीयो सहित अपने घर पहुंचा । घर मे बूढ़िया ने यह नजारा देखा तो हक्कबक्का रह गई है। उसे कोई खुशी नहीं हुई,बल्कि उसके मंन मे लोभ-लालच आया।

   "अरे बूढे घूसठ!मेरी बेटी को भी उसी जगह छोड़ आओ जहां अपनी बेटी को छोड़कर आए थे।" बूढ़े ने ऐसा ही किया।

  सर्दी और बर्फबारी का मोसम उस दिन पहले से ज्यादा ठंडा मोसम था। जैसै-जैसे रात बढ़ती गई ठंडी बढ़ती गई। तभी हिमदेव वहां आए। उनहोंने  लड़की से पूछा-"तुम्हें जाड़ा तो नही लग रहा है,लड़की ।"

  लड़की ने जबाब दी' "हाय हाय बेहद ठंड लग रही है।"

  इस तलह हिमदेव ने दो-तीन बार पूछा ।हर बार उसनें यही जबाब दिया और कहा कि -हाय मै तो बिलकुल ही जम गई हू।जाओ भाग जाओ।"अब तो हिमदेव को बहुत गुस्सा आया ,उन्होंने लड़की को कसकर पकड़ लिया और ठंड से मार डाला।

  दूसरे दिन सुबह होते ही बूढ़िया ने अपने पति से कहा-"जाओ और सोना, चाँदी से चमचमाती और ढेरो उपहारों के साथ मेरी बेटी को ले आओ।

   कुछ समय पश्चात घर का दरवाजा खुला और बूढ़िया अपनी बेटी से मिलने दौड़ पड़ी।उसने जैसे ही सामने पड़ी चटाई  तो उसके नीचे अपनी बेटी की लाश देखकर जोर जोर से रोने लगी। मगर अब कुछ नहीं हो सकता था। उसे धीरे धीरे अपनी की गई गलतियों पर पश्चाताप हुआ।दूख और मुसीबत एक साथ आती है।

  अपना-पराया, सोतेलेपन के व्यवहार कभी भी नही करना चाहिए और साथ ही साथ लोभ-लालच तो कभी भी नही करना चाहिए।

गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन।

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