किसी को अपनी परेशानी ना बताऐ ।

    अपना दुख अथवा परेशानियों को कभी भी ,किसी को ना बताऐ क्योंकि अधिकतर लोग दूसरों के दुखो का मजाक उड़ाते है । गुरू का काम हमेशा लोगों का मार्गदर्शन करना होता है ,नैतिक शिक्षा देना और विप्पति के समय मे  राज्य के राजा को अथवा वहाँ की सरकार को समय समय पर अवगत कराते रहे । पहले तो ऐसा ही होता था । किंतु आज समय बदल गया है । ना वैसे राजा है ना ही वैसी सरकार और उसको चलाने वाले मुखिया , सबके सब भ्रष्टाचारो मे किसी  ना किसी प्रकार से लिफ्त है । ऐसे मे अच्छे आचरण वाले गुरूओ की संख्याओं मे कमी होना भी स्वाभाविक है । और  जो  शेष है उन्हे पूछा नही जा रहा है ।
   गुरू को अपने शिष्य को सदैव अछा रास्ता दिखाना चाहिए ताकि उनका नाम , गुरू का नाम खराब ना हो, और शिष्य अपने लक्ष्यो पर पहुंच कर आमजनों को सही राह दिखाऐ ताकि देश की उन्नति हो सके । 
   "राजा  दशरथ बुढ़ापे में प्रवेश कर चुके थे ,लेकिन उनकी एक समस्या थी कि उनकी कोई संतान नहीं थी । जो उनके वंश को आगे बढ़ा सके । इस समस्या को लेकर वह बहुत ज्यादा चिंतित थे । उन्होंने अपना दुख अपनी पत्नियों से व्यक्त किया ,बहुत सोच विचार कर यह निर्णय निर्णय लिया गया कि वह इस समस्या को सिर्फ गुरु वशिष्ठ को बताएंगे और वही उसका हल निकाल सकते हैं । राजा बहुत  समझदार थे , दयालु थे । वे गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचे ,  प्रणाम किया और अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराया। गुरु वशिष्ठ चाहते तो उन्हें आशीर्वाद के जरिए ही उनकी मनोकामना पूरी कर देते किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया । और कहा कि आपकी इच्छा पूरी होगी ।  प्रयास आपको ही करना होगा । आप यज्ञ करें । हमें श्रेष्ठ पुरोहित बुलाकर यज्ञ की व्यवस्था मै ,स्वयं कर दूंगा और वशिष्ट जी ने ऐसा ही किया । यज्ञ के प्रभाव से राजा दशरथ के चार पुत्र राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न हुए । संतान के संबंध में पति पत्नी को यज्ञ करना चाहिए यहां यज्ञ का अर्थ है ,  अनुशासित जीवन शैली । पति पत्नी बच्चे के जन्म से पहले अनुशासित होंगे । समझदारी से अपना जीवन  जिएंगे । तो उनके यह गुण बच्चों में भी उतरेंगे । राजा दशरथ ने अपनी परेशानी सिर्फ गुरु को ही बतलाई, और उसका निराकरण व निवारण भी हुआ । 
    समय काल,देशकाल परिस्थिति सदैव एक सी नही रहती है ।वर्तमान समय इन सब बातो का महत्व नही देता है किंतु गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन का कथन है कि समय वैसा ही चल रहा है, मात्र उसके स्वरूप ही बदला है बाकी सब कुछ वैसा ही चल रहा है । इस संबंध पर विचार विमर्श से हम उसकी गहराई तक पहुंच सकते है । इसकी तह मे पहुचने के लिऐ प्रयास करना करना होगा ,सहायता करने वाले गुरू अपने आप प्रकट हो जाएंगे ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन 
भोपाल "टीलेश्वर माहराज"

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