अटरिया मे बैठा काला कौआ ...
"अटरिया पर बैठा काला कौआ" हमेशा काँओ काओ करके नानाप्रकार के संदेशों का प्रसारण,एक विविध भारतीय प्रसारण की तरह करता है । इन प्रसारणों मे विज्ञापनो के अलावा मनोरंजन ,गाने तथा खबरो का समावेश होता है ।
रोजाना सुबह उठते ही -"काओ- काओ" करते हुऐ झाड़ू वाली से कहता है - बाई-बाई झाड़ू ठीक से लगाओ, कचरा ठीक उठाओ,ढ़ेर मत लगाओ ! थोड़ी देर बाद कचरे वाली गाड़ी,गाना बजाते आती है -काओ-काओ,बाई वो देखो कोई चिल्ला रहा है,उससे कचरा ले लो,काओ काओ । सबसे आखिरी मे कचरा उठाने वाली गाड़ी कचरा उठाने आती है -हे, भैय्या ,ठीक से कचरा इक्काठा कर कचरा उठाओ-काओ-काओ ।
सुबह सुबह उठते ही सारे मोहल्ले वाले आस-पड़ोस के लोगो को अपनी काओ-काओ कर्कस आवाज से परेशान करते रहता है । जोर जोर से चीखना,खासना,छीकना,लोगो से जोर जोर से सड़क पर चलने वालो से बाते करने से ,"काओ-काओ "करने से पूरा मोहल्ले वाले परेशान होते है ।
"काओ-काओ" के सुरताल मिलाने के लिए कोयलरानी भी आ जाती है। कोयलरानी अपनी मिठास वाली बोली भूल चुकी है । कोआ के ना रहने पर वह भी उसी सुरताल मे "काओ- काओ"करती है । दोनो की जोड़ी एक अमर जोड़ी है ,साथ साथ रहते है जबकि उनके रिस्तदारो की कोई कमी नही है । इन लोगो की "काओ-काओ" से धीरे-धीरे सभी अभ्यस्थ हो गए हैं ।
"कांव-कांव " करने की श्रेणी में धीरे-धीरे सभी को अभ्यस्थ होना चाहिए । सभी लोग "काव-कांव करने कौआ का अनेक रूप मे देख चुके है ।कभी यह सोने का मुकुट धारण करता है तो कभी यह चांदी,हीरे,मोती एवं अन्य आभूषण धारण करते पाया गया है ।जिस प्रकार से यह आभूषण धारण करता है, पहनता है प्रकृति के स्वरूप के अनुरुप होते है । इसी कारण से इसे अनेको सामाजिक क्रियाओं से भी जोड़ा जा सकता है ।इसी वजय से इस
कांव-काव वाले कौआ मे इंसान अपने पूर्वजों को ढ़ूढ़ते हुए इन्हें महत्व देता है, उनके नाम से दर्पण करता है । श्राद्ध पक्ष मे पूजा करता है । जैसे- जैसे इंसान तरक्की करेगा वैसे-वैसे इस कांव- कांव की प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होते जाऐगी ।अभी तो काओ-काओ की कमी नही होगी चूंकि इंसान जीवित है और उसकी पूजा करने वाले लोग जीवित है इनकी प्रजातियां जीवित रहेगी । धीरे धीरे इस कांव-कांव की भाषा इंसान समझने और बोलने लगा है । ठीक इसी प्रकार से कांव-कांव करने वाला काला कौआ भी इंसान की फितरते समझने लगा है। वैसे भी कहावत है -"काले लोगो का मन भी काला होता है ।" वैसे भी काला हो या गोरा हो,अंतिम पड़ाव मे इंसान अपने घर के सामने बैठकर कांव-कांव,भो-भौ करने के अलावा कुछ नही कर पाता है । अंतिम पड़ाव पहुंचने से पहले कुछ लोग पहले से अभ्यास करते भी पाऐ जाते है और पूरे मोहल्ले मे अटारिया पर बैठ कर कांव-कांव करते रहते है । जहां जहाँ जाते है अपनी गांवड़ी भाषा का प्रयोग कर कांव- कांंव,टें-टें और भो-भौ करने से बाज नही आते है । इस प्रकार की प्रवृत्तियों वाले इंसानों से सदैव बचना चाहिए , ऐसा मानना और कहना है गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन जी का ।उनका यह भी कहना है कि इस तरह के लेखो को लोग जल्दी ही भूल जाते
है और इनसे आमलोग कोई स्थाई लाभ भी नही ले पाते है । ऐसे आमजनो से अनुरोध है कि वे गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन से क्या चाहते , क्या मार्गदर्शन चाहते ,किस चीज की जानकारियां चाहते है जो उन्हे अच्छी लगती है, कृपया बतलाऐ ताकि उनके मन को शांति मिल सके साथ ही आमलोगों को लाभ भी मिल सके ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन द्वारा शीध्र ही "ज्यौतिष से स्वास्थ्य" कालम की शुरुआत करने पर आमजनो से राय मांगी गई है । शीध्र ही साध्य-असाध्य रोगो से छुटकारा पाने के उपाय कुण्डली, हस्तरेखा, अंक-ज्योतिष, टेरोकार्ड,वास्तु तथा चीनी-पध्दति से बतलाया जावेगा ।कृपया इंतेजार कीजिए ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
"टीलेश्वर माहराज" भोपाल
Very nice
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