"विश्व जल संरक्षण दिवस"
आज 22 मार्च का दिवस का इतिहास हमें बतलाता है कि आजके ही दिन अनेकोनेक घटनाऐ घटित हुई थी ।अनेको लोगो ने जन्म लिऐ और अनेको लोगो की मृत्यु का वरण किया था । ऐसे महान लोगो से इतिहास भरा पड़ा है । देश-विदेशों मे क ई अभूतपूर्व निर्णय भी लिऐ गए थे ।
वर्तमान समय में भारत के अलावा प्राय: प्रायः सभी देशो मे जल संकट बढ़ते जा रहा है । इस जल संकंट को समाप्त करने के लिऐ सभी देशो ने मिल कर आज का दिन 22 मार्च को विश्व जल संकंट दिवस मनाने का फैसला सर्वसम्मति से लिया ।
भारत ने जल संकट को देखते हुऐ अनेको उपाय किऐ । चूंकि भारत मे ही सबसे ज्यादा जल संकट है ।जल को इक्काठा करने के लिऐ सरकार ने अनेको योजनाएं बनाई । इसका मुख्य उद्धेश यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोगो को साफ-सुथरा जल मिल सके ।दूषित जल से अनेको बीमारियों का जन्म होता है ।
पानी की आवश्यकता हमें उस समय महसूस होती है ,जब नलों में पानी खराब आने लगता है अथवा नलों की पाइप लाइन टूट जाती है और पानी 1 दिन भी नहीं आता है तो उनसे उस दिन हमें जल संकट सबसे बड़ा महसूस होता है। आज हम पानी को दो ही रूप में देख रहे हैं - एक जब सूखा पड़ता है और इसको लेकर देशभर में हो-हल्ला मचता है ।और दूसरा जब देश बाढ़ की चपेट में आता है । यह दो ही पानी के सबसे बड़े पहलू है, जिन्हें आज हम सब भुला चुके हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह दोनों ही हमारे प्रबंधन के अभाव के कारण हैं ।
400 साल पहले जाऐ तो प्रकृति के प्रबंधन का लोहा मानना पड़ेगा निश्चित रूप से जनसंख्या कम रही होगी और खपत भी उतनी नहीं होगी पर भी प्रबंध सटीक किस्म का था ।हमने समय की आवश्यकता के अनुसार कोई भी बेहतर काम नहीं कर पाए हैं, जिसके कारण हमने जल का दुरुपयोग किया है और उसको सही ढंग से इकठ्ठा आभी नहीं किया है जिसके कारण अभी भी पूरे भारत में जल संकट है । वर्ष 1947 में 2400000 तालाब थे तब देश की जनसंख्या 36 करोड़ थी । आज तालाबों की संख्या घटकर 500000 रह गई है जिसमें से 20% तालाब बेकार पड़े हैं कुआं और पोखरा की हालत बद से बदतर हो गई है ।अतः शासन को चाहिए कि इस तरफ और पोखरा बावरियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।ताकि जल संकट के समय इनका सही इस्तेमाल किया जा सके।
भारत में पर्याप्त पानी है फिर भी आम नागरिक प्यासे हैं ।समुचित प्रबंधन नहीं होने और लापरवाही के कारण पानी की बर्बादी हो रही है। और जल संकट गहराता जा रहा है। ऐसी स्थिति में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाए तो अति उत्तम होगा और यह व्यवस्था यह है :-
(1) घरों घर में आने वाले नल के पानी को शुद्ध करके ही उबालकर ,छानकर पीया जाए फिटकरी का भी इस्तेमाल किया जाए ।
(2) प्लास्टिक की बोतल में सप्लाई वाटर का उपयोग कम से कम किया जाए फिल्टर करने के लिए उपयोग किए जाने वाले केमिकल मानव की सेहत पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
(3) फिल्टर किया हुआ अथवा उबाला हुआ पानी ही पिया जाए।
(4) दूषित पानी पीने से पाचन संबंधी परेशानी शरीर में पानी की कमी एसिडिटी कफ और किडनी संबंधी समस्या बढ़ सकती है।
इस धरती और हमारे अस्तित्व का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण तत्व जल है । आज विश्व जल पर जानिए देश में कितना पानी है और हम कैसे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं कैसे तेजी से पिघलते ग्लेशियर गंभीर जल संकट का संकेत दे रहे हैं ।साथ ही उन गांव से ग्राउंड रिपोर्ट जिन्होंने अपने प्रयासों से गंभीर जल संकट की चुनौती से निकलने का हल निकाला है। इस पर भी अध्ययन करने की हमारी जिम्मेदारी है । आवश्यकता लगातार बढ़ रही है जबकि उपलब्धता घट रही है ।कुल पानी 3880 मिलीयन क्यूबिक मीटर देश में ताजे पानी का प्रमुख स्रोत है ।बीएमसी वाष्पीकरण और अन्य वजह से 1881 बिलियन समाप्त हो जाता है तो 1,999 पीसीएम पानी हमारे पास इसके बाद बचता है ।भारतीय ग्लेशियरों के सिकुड़ने से दुनिया की 13% आबादी के सामने जल संकट का खतरा हमेशा बना हुआ है ।अतः सरकार इस तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और साथ ही सूखे कुओ,वावड़ी,पोखरोऔर तलाबो की मरम्मत कर जल संग्रह करने पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।
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