तीन रंगो का तिरंगो का इतिहास !
वर्तमान सरकार मोदी सरकार ने निर्णय लिया है वर्ष 2022 को 15 अगस्त को पूरे भारत मे घरोघर तिरंगावादन किया जाएगा । भारत सरकार का यह फैसला उचित है अथवा अनुचित? इसके बारे मे इसका इतिहास जानना आवश्यक है :-
तिरंगे का इतिहास
प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक भोज होता है एक संदेश होने का संकेत है भारतीय राष्ट्रीय की अभिकल्पना पिंगली दयानंद ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया भारत में तिरंगे का अर्थ आरती राष्ट्रीय ध्वज है ।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में 3 रन की पट्टियां होती है सबसे ऊपर केसरिया बीच में सफेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टियां और तीनों समानुपात में है उसकी चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ दो और तीन का है सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है इसका अभ्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां होती है।
तिरंगे का विकास
यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ में से किन किन परिवर्तनों से गुजरा इससे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या माता दी गई भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेकों दोनों में से गुजरा है एक रूप में यह राष्ट्र में राजनीतिक विकास को दर्शाता है हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव भी इस प्रकार हैं :-
1* प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 19 और 6 को पार्टी बागान चौक ग्रीन पार्क कोलकाता में कराया गया था इस ध्वज को लाल पीले और हरे रंग की पत्तियों से बनाया गया था ।
2* ज्योति ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1960 में उनके साथ निर्वाचित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा कराया गया था यह भी पहले ध्वज के सामान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्त ऋषि को दर्शाते हैं यह ध्वज बदले में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
3* तृतीय ध्वज 1971 में आया जब हमारे राजनीतिक संघर्ष में एक निश्चित मोड़ लिया डॉक्टर एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया इस भोज में पांच लाल और चार हरि पटिया एक के बाद एक और सप्त ऋषि के अभी विन्यास में इस पर बने सात सितारे थे भाई और ऊपरी किनारे पर बने खंबे यूनियन जैक था एक कोने में सफेद और चंद्र और सितारा था।
4* अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा अब विजयवाड़ा में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक अंडा बनाया और गांधी जी को दिया यह दो रंगों का बना था लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदाय अर्थात हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है गांधीजी ने सुझाव दिया कि भारत के तेज समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रवृत्ति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
5* सन 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है केसरिया सफेद और मध्य में गांधीजी के चलते हुए चरके के साथ था तथापि यह स्पष्ट रूप से बताता है कि इसका कोई संप्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना स्वतंत्र मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा केवल सच में चलते हुए चरके के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया इस प्रकार कांग्रेस कमेटी कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंत का स्वतंत्र भारत का तिरंगा बना ।
तिरंगा ध्वज के रंग
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है निकली हरी पट्टी उर्वरता वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाता है ।
चक्र
इस धर्म चक्र की विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ है मृत्यु।
ध्वज संहिता
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों कार्यालय और फैक्ट्रियों में ना केवल राष्ट्रीय दिवसों पर बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रूकावट के फहराने की अनुमति मिल गई अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय ध्वज को शांत से कहीं भी और किसी भी समय से रह सकते हैं बरसात की वेदवती संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी ना आने दे ।सुविधा की दृष्टि से भारतीय भाई थे संहिता 2002 की को तीन भागों में बांटा गया है संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान विवरण है संहिता के दूसरे भाग में जनता निजी संगठनों शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है संहिता का तीसरा भाग केंद्रीय और राज्य सरकार तथा उनके संगठनों और अभी कर्मों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।
क्या करे और क्या ना करे
* राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षणिक संस्थानों में विद्यालय महाविद्यालय खेल परिसर स्काउट शिविर आदि में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है विद्यालयों में ध्वजारोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
* किसी सार्वजनिक निजी संगठन या एक शैक्षणिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का आरोहण प्रदर्शन सभी जनों और अवसरों आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
* नई संहिता की धारा दो मे सभी निजी नागरिकों को अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
* इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ पद या वस्तुओं के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक ठहराया जाना चाहिए।
* ध्वज का आशय पूर्वक भूमि पर या पानी से स्पष्ट नहीं कराया जाना चाहिए इससे वाहनों के कोड ऊपर और बगल या पीछे रेलो नम व वायु यान यान पर लपेटा नहीं जाना चाहिए।
* किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्टू को हमारे ध्वज के ऊपर स्थान पर लगाएं नहीं जा सकता तिरंगे ध्वज को बंदना बाद ध्वज पट या गुलाब के समान संरक्षण ना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
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