फूलो के अहमियत जाने !

आज से नही,जब से प्रकृति अपने अस्तित्व मे आई है तभी से फूलो के महत्व के बारे मे लोगो ने जाना और धीरे-धीरे उसकी उपयोगिता के बारे मे अपने अपने हिसाब से गुणा भाग कर  प्रस्तुतीकरण किया है ।
फूलो के प्रकार के अनुसार उसकी उपयोगिता का वर्गीकरण कर अलग- अलग ढ़ग से समझाने बाबत लेखको-कवियो-पंडितो ने बतलाया है। इन्ही लोगो के नजरिये से सारी दुनिथा देख रही है । हर युग मे अलग-अलग ढ़ग से उल्लेखित बातो के बारे सभी जानते है ।
क्या आप जानते है कि फूलो का धन्धा भी इस प्रकार  से चल रहा है
मध्यप्रदेश शासन ने नेताओं को नेताओं की फूल माला के टेंडर रद्द किए हैं तो अब महापुरुषों को भी माला पहनाना बंद "73 छोटी बड़ी मूर्तियों पर हर हफ्ते होता था माल्यापर्ण इस बार जुलाई तक नहीं हुई "   
     नेताओं के स्वागत सत्कार के एक फूल माला खरीदने का  डेढ़ करोड़ रुपए का टेंडर निरस्त होने का एक असर यह हुआ कि शहर में चौराहों और सार्वजनिक स्थानों पर लगी 73 छोटी बड़ी मूर्तियों की सफाई और धुलाई नहीं हुई और ना ही माल्यापर्यण  हुआ । फायर बिग्रेड हर शनिवार को देर रात में मूर्तियों की धुलाई और सफाई करके उन पर माल्यार्पण करते थे लेकिन टेंडर निरस्त होने के कारण इस बार गालाएं नहीं खरीदी जा सकी ।  
पिछले लगभग 5 वर्षों से हर हफ्ते मूर्ति की धुलाई और सफाई और उन पर माल्यार्पण का सिलसिला जारी तत्कालीन महापौर  ने एमआई के माध्यम से यह व्यवस्था शुरू कराई थी । इसके बाद स्वच्छ भारत मिशन में भी मूर्तियों को सफाई में शामिल किया गया था । हर हफ्ते की जाने वाली सफाई के फोटो स्वच्छ भारत मिशन के पोर्टल पर अपलोड किए जाते थे मूर्तियों के माल्यार्पण पर हर हफ्ते नगर निगम ₹40000 का  खर्चा होता था ।
     अब प्रथा बंद कर दी है इसका लाभ किसे मिला ? ये सब जाँच का विषय है । हम तो देख सकते है लिख सकते है बस करना तो जनता को ही । आज समय ऐसा आ गया है कि सरकार धर्म के नाम को भी बदनाम कर रही है उसकै आड़ मे राजनीति फलफूल रही है । आज भोपाल मे ही क्या समस्त म०प्र० के मंदिरो पर फूल की जगह जिन्दबाद के नारे गूंज रहे ।मंदिर मे भाजपा के कार्यलय खुले है जिसके अध्यक्ष पार्षद, महापौर, पंच- सरपच एवं मंत्रियों ने एक प्रकार से कब्जा कर रखा है । भोली-भाली जनता के विश्वास पर कुठाराघात कर रहे है । भोपाल म०प्र०मे कम से कम यही चल रहा है । आज यह एक प्रचलन मे आ गया है कि जब भी कोई चुनाव मे खड़ा होता है तो सबसे पहले मंदिर से ही प्रचार प्रसार का कार्य आरम्भ करता है । यही वजय है कि लोग जीतने के बाद मंदिरो मे ही अपना कार्यालय बनाकर धार्मिक होने का ढोग कर रहे है । इन्हे भगवान से कोई मतलब नही है इन्हे तो अपनी राजनीति से सरोकार है ।
और पांच साल की कमाई और पेंशन से मतलब है जो उनकी पीढी कई पीढ़ी सुधर जाती है और इसी कमाई से जीवन पूरे परिवार का जीवन सुधर जाता है । यह बात उन लोगो पर लागू है जो अपने परिवार को महत्व देते है । राजनीति ही उनका परिवार है जो उनके हर अच्छै बुरे मे सदैव तत्पर रहते है । हमारी बाते फूल से चली थी मंदिर के चढ़ने वाले फूल से होते हुए नेताओं की तस्वीरों पर चढ़ने फूलो की माला के टेण्डर  पर आकर समाप्त होती है । अभी तक फूल की मालाओ का खर्चा सरकार उठा रही थी किंतु अब नेताओ की जेब से खर्च होगे । अब ऐसे मे नेताओं के चापलूस अफसर कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेगें इस आशय् के साथ लेखक-आलोचक   श्रीरामधुन की भविष्यवाड़ी व सुझाव  है जो उनके अपने है ।
लेखक-आलोचक - काउसंलर
श्रीरामधुन

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