"गरीबी की आत्मकथा" - "श्रीरामधुन "मै से मै तक का सफर ? 2 ?
गरीबी की आत्मकथा
गरीबी की शुरुआत गरीबी से शुरु होती है और अंत गरीबी से थोड़ा हट कर होता है । कभी कभी कुछ लोग इस गरीबी से उभर कर , कड़ी मेहनत कर ,दुख-तकलीफ सह कर
सफलतापूर्वक जीवन बिताने मे सफल हो जाते है । सकारात्मक सोघ के साथ किया गया कार्य हमेशा पूरा होता है यह सारी जानती है । साकारात्मक सोच मे
दृढ़ संकल्प होना जरुरी है ।ऐसे ही लोग गरीबी और अमीरी मे जीने वाले कोई भी लोग हो सकते है । यहां अमीरी और गरीबी का कोई भेदभाव नही होता है । आदमी अपनी सोच से अमीर और बनता है ।ऐसे कितने ही लोग है जो आज अमीर है वे सबके ससब गरीबी के पायदान से उपर उठे है इतिहास भरा पड़ा है ।
गरीबी आती कहा से इसकी उत्पति कहां से है ? गरीबी हम से शुरु होती है और हम पर समाप्त होती है । ऐसे मे हमे अपने मन से इसे मारकर पाँजिटिव सोच के साथ आगे बढ़े और अपने लक्ष्य को प्राप्त करे ।
मानव जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप निर्धनता को माना गया है निर्धनता मानव संस्कृति और सभ्यता के नाम पर एक कलंक है गरीबी एक ऐसा भयानक अभिशाप है जो तन और मन दोनो
दोनों को खो जाता है । गरीबी आदमी को हमेशा कठिन में डाले रहती है इसलिए कष्ट में जीवन के साथ वह लोगों के उपहास का विषय भी बन जाता है । गरीबी मनुष्य जीवन की प्रकृतियों और विसंगतियों की करुण कहानी है। ईश्वर ने से सृष्टि के लिए सुख की रचना की है ईश्वर ने मनुष्य के लिए चारों तरफ सुख ही सुख बिखर रखा है । मनुष्य अगर उन्हें प्राप्त नहीं कर सके तो उसका यह अपना दुर्भाग्य है इसके बावजूद ऐसे लोग मिल जाएंगे जो कीड़े मकोड़े की तरह ही नहीं वरन् उसे भी यदत्तर जीवन की रहे हैं । वे लोग सुख सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है? इस प्रश्न का उत्तर सही नहीं है । ईमानदारी की बात यह है की निर्धनता ईश्वर की देन नही है। इतनी सुंदर सृष्टि का निर्माण करने वाला निर्धनता का निर्माण नहीं कर सकता ।
निर्धनता का जन्मदाता ईश्वर नहीं मनुष्य है जब धारणा एकदम मिथ्या है कि निर्धनता ईश्वर की देन है ,या मनुष्य के पूर्व जन्मों का फल है या भाग्य का लिखा है ।यह किसी प्रकार का दैनिक या प्राकृतिक अंग नहीं है । गरीबों को मनुष्य ने अपने कर्म से बनाया है । गरीबों के लिए जिम्मेदार स्वयम मनुष्य है । इसका जन्म मनुष्य ने अपनी ही आक्रमणता से की है क्या कर्महीनता अलास्य के कारण किया है । अत: इसका उपचार भी मनुष्य के हाथ में है । जिसने इसे बनाया है वही इसे मिटा सकता है । मनुष्य का जन्म इस सृष्टि की सुख सुविधाओं का उपभोग करने के लिए हुआ है । सामने खाना होने पर भी उसे प्राप्त करने का प्रयास न करना निंदनीय निकम्मापन है ।अतः समृद्धि या धनपति होने की कोशिश न करने वाला भी इसी वर्ग में आता है । गरीबों का स्वभाव चिड़चिड़ा झगड़ालू हो जाता है । आदतें निकृष्ट हो जाया करती हैं । कभी उसके यहां मेहमान आ जाए तो मुंह छुपाता फिरता है अक्सर पास- पड़ोस से शर्मिंदगी के साथ मंग मंग कर काम चलता है । ऊपरी मन से वह भले ही मेहमानों के साथ हंस बोले पर मन ही मन वह रोता रहता है । साहूकारों के उलहाने दुकानदारों के उत्पीड़न, पत्नी की फरमाइश से घर गृहस्ती का सामान जुगाड़ने की रात दिन की चिंता वह पिसते पिसते पत्थर दिल बन जाता है तब आगे चलकर वह एक लापरवाह गैर जिम्मेदार व्यक्ति बन जाता है । उसे तब किसी का असर नहीं पड़ता यह किसी बात पर कम कांटे ही नहीं है। दोस्तों की बात टाल देता है । परिवार के लोगो के फरमाइश से आवश्यकता है सुनकर चुप रह जाता है । कहते रहो वह करता ही नहीं उसकी दशा उसे चिकने घड़े के समान हो जाती है जिस पर पानी ठहरता ही नहीं है ।सारी दुनिया उसके लिए नीरस हो जाती है । निर्धनता आदमी को सामाजिक रूप से दिवालिया बना दिया करती है ।
गरीबी व्यक्ति के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को नष्ट कर दिया करती है। निर्धन व्यक्ति जब जीवन की भरी दुपहरिया में अपने सामने खड़े ऊंचे पहाड़ को देखता है तो उसका मन टूट जाता है ।
सच्ची बात तो यह है की निर्धनता मनुष्य की वंश से उत्पन्न होती है । बहुत से व्यक्ति कहां करते हैं कि वह निर्धन परिवार में पैदा हुए हैं इस कारण अमीर कैसे बन सकते हैं । पर जब वह पैदा हुए थे तो क्या उनको बोलना आता था ! जिस प्रकार उन्होंने अपने मातृभाषा को सीखा है उसी प्रकार क्या निर्धनता उसके साथ थी या बेवकूफी से भारी धारणा है । संकल्प का मन में दुकान की बेटी अपनी निर्धारित निर्धनता से ही प्रेरणा लेकर संपन्न बने हैं । अनेकों करोड़पतियों का जीवन इस बात का साक्षी है । निर्धनता मनुष्य की अपने दुर्बलता से पैदा होती है । निर्धनता की एक बड़ी जड़ फिजूल खर्ची भी है । फिजूल खर्ची आदमी को निकम्मा बना देती है । बाद में वह कर्ज लेकर खर्च करता है यह अनावश्यक खर्च हमें एकदम से रोक देने चाहिए और यह याद रखना चाहिए कि कोई फरिश्ता हमारी मदद करने नहीं आएगा । जो लोग ग रीब हैं उनको अपने आप से एक सवाल करना चाहिए आखिर में निधन क्यों हूं ? प्राय लोग यह कहते हुए सुने गए हैं कि उन्होंने इस पर बहुत कुछ सोचा है या इसका कारण उनकी समझ में नहीं आता है । पर इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज पाते हैं उसके प्राय यही शर्म हुआ करते हैं हम गरीब परिवार में जन्मे हैं । हमारे भाग्य में गरीबी ही लिखी है। हमारी जन्म कुंडली की ग्रह दशा यही बताती है यह उसके लिए विधाता को दोषी मानते हैं । अपनी गरीबी का सही-सही कारण ढूंढने के स्थान पर है अजीब अजीब से तर्क पेश करते हैं ।
कुल मिलाकर निर्धन व्यक्ति अपनी निर्धनता के लिए स्वयं को नहीं अपने कर्म को इसके लिए दोषी ठहराएगा । उसके इस प्रकार के विचार एकदम निगम में और कोट होते हैं अपने निर्धनता का मूल कारण वह व्यक्ति स्वयं है उसके विचार उसकी या आक्रमान्यता ही उसके निधन बनाए रखती है निर्धनता से मुक्त होने का प्रयास वह ईमानदारी के साथ नहीं करता है तो वह इस जीवन में धनी कैसे बन सकता है ? विचारों की समृद्धि आत्मविश्वास की जननी है । आत्मविश्वास संपन्नता का गुण है दिन-रात स्वयं और अपने परिवार को दुख पहुंचने वाला व्यक्ति कभी धनी नहीं हो सकता , निर्धनता से छुटकारा पाने के लिए आस्थावान होना जरूरी है इसके साथ-साथ अपने पैसे या व्यवसाय में रुचि भी आवश्यक है । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने पैसे के व्यवसाय को बड़ा ही मानते हैं और कहा करते हैं कि यह भी कोई काम है मेरी जान निकल जाती है, क्या रखा है इसमें, इस प्रकार कहकर वह स्वयं अपने पैसे या व्यवसाय का तिरस्कार अपमान करते हैं । आशा बनाए रखें बार-बार असफलता व संकट तो हर कदम पर आते ही रहेंगे इससे जो घबराते नहीं वह सफलता प्राप्त कर सकता है । धनवान बनने के लिए बराबर पूंजी का बढ़ाना आवश्यक है इसके बिना आप बहुत धनवान नहीं बन सकते हैं
कहानी का सरांश है कि सड़कों पर खजाना बिखरा पड़ा है आपकी आंखें हो तो आप देख सकते हैं कागजों के टुकड़े कपड़ों की कतरने मानव शरीर के बाल नाना प्रकार के फलों के छिलके या एक संपदा है खाली बोतल उनके ढक्कन सब कुछ एक खजाना है। अर्थात व्यापार शुरू करने के लिए पूंजी की आवश्यकता है इस बात को लेकर बैठ जाना कदम पीछे हटा लेना मूर्खता के समान है खजाना सर्वत्र प्रकृति ने दे रखा है इसका उसमें हाथ तो लगे किसी काम को बड़ा या निर्धन निंदनीय ना माने अपना काम करने में शर्म कैसी ? आप कहीं से भी अपना काम शुरू कर सकते हैं ।
लेखक-आलोचक- काउंसलर
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