अपनी मौत की वसीयत ?

अपनी मौत की वसीयत ?
      वह समय आ गया है जब मुझे यह स्पष्ट करना जरुरी हो गया है कि मेरी मौत के बाद निम्न बातो का
विशेष ध्यान रखा जाऐ :-
(1) मृत्यु का क्षण शुभ और मंगल माना जाए । मृत्यु का क्षण कभी शोक करने का नहीं है ।
(2) मृत्यु की खबर अपने परिवार के सिवाय दूसरों को नहीं दी जाए। देह के अंतिम संस्कार में सिर्फ परिवार के लोग जो उस स्थान पर मौजूद हो वह ही शामिल हो । यह समय सार्वजनिक आयोजन का कतई नहीं है ।
(3) मृत्यु के बाद घर में शोक का वातावरण नहीं बने । मेरे स्वयं की के लिए भी मृत्यु की घड़ी मंगलदायक ही होगी । मुझे इस शरीर को ओर अधिक खींचना भारी लगता था ।  दिनों दिन कार्य क्षमता की कमी  हो रही है । 
(4) मेरी धर्मपत्नी, पुत्र पुत्रीयां पुत्र- वधुएं सभी इस अंतिम घड़ी पर दुख और शोक की छाया ना पढ़ने दे । इस घड़ी को शुभ ही माने न अपने पहनने क कपड़ों और पर या घर को सामान्य सच्चा पर भी शौक की छाया नहीं झलके।
(5) परिवार का कोई भी सदस्य सर का मुंडन नहीं कराएगा न ही सफेद कपड़े धारण करें ।
(6) किस परिस्थिति में मृत्यु का क्षण आए यह कहना बहुत मुश्किल है ।मृत्यु के बाद शरीर के कपड़े बदले। रोज के पहनने के कपड़े के से ही कपड़े ले ले । 
(7) मृत शरीर को लकड़ी के सादे पाटे पर लिटा दे । अच्छा हो ध्यान कक्ष का पटा इस काम में लें । जिस पटले मे  बैठ कर खूब ध्यान किया हुआ है, अंतिम यात्रा में इस पाटे का साथ उचित ही होगा।
(8) रात का समय छोड़कर मृत शरीर को घर पर अधिक समय नहीं रखें और जल्दी ही दाह संस्कार करने हेतु शमशानघाट ले जाने की व्यवस्था करें ।
(9) शमशान घाट पहुंच कर या देख ले कि चिता में जरूरत के अनुसार लड़कियां है कि नहीं ताकि पूरा शरीर उसमें भस्म हो सके ।(10) इलेक्ट्रिक दाह संस्कार के अभाव में यदि अस्थि  जरूरी हो तो दूसरे दिन घर में और अपनी सुविधा अनुसार नदी में प्रभावित करें ।जहां  पूर्वजों की हस्तियां प्रभावित हुई थी । (11) अंतिम दाहसंस्कार क्रिया की व्यवस्था में अपने पुत्र, भाई और किसी भी अन्य व्यक्ति जो जरूरी है का सहयोग लिया जा सकता है । (12) तीजा की बैठक में शुरू में स्वागत और अंत में धन्यवाद के शब्द जरूर कहे ।
(13) मृत्यु के संबंध 10 पर 11 या 12 दिन किसी भी प्रकार के भोज की व्यवस्था न की जाए और  ना ही कोई परंपरागत कर्मकांड करें।इसके बदले मे किसी  अनाथालय के भोजनालय में दान देकर सहयोग दें । 
गुरुजी सत्यवादी श्री रामधुन

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