मेहर जाति व मेहरा जाति का इतिहास। श्रीरामधुन

मेहर जाति का इतिहास -
मैहर गांव में परंपरागत चरण व्यवसाय से जुड़ी हुई जाती है मेहर पुरुष कृषि उपयोगी चमड़े का सामान बनाना तथा महिलाएं दी का काम करती हैं कार्य के बदले में इन्हें अनाज दिया जाता था जिसे जेवर कहा जाता था तथा इन्हें मेहर प्रदान किया जाता था हीरालाल और रसेल 1916 संभवत है इसी आधार पर इनका मेहर नाम पड़ा था ।
मैहर छत्तीसगढ़ की एक अनुसूचित जाति है ग्रामीण समाज व्यवस्था कोनी बसारी में से एक नहर मैदानी भागों के गांव में तीन या चार परिवारों के औसत में निवास करते हैं सामाजिक संरचना में मैहर जाति का स्थान निम्नतम है इसलिए मैहर जाति की सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन शोध का मुख्य उद्देश्य है 
मेहरा जाति का इतिहास
मेहरा मेहरारू मेहरारू छतरी पुत्री भारत के राजपूत और खत्री समुदायों में एक उपनाम है मेरा लोग कुमायूं मंडल में एक मजबूत जमीदार राजपूत है नाम की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के मिहिर शब्द से बताई जाती है जिसका अर्थ सूर्य होता है बाद में चलकर इन्हीं से मैं रतारा मल्होत्रा और मल्होत्रा उपनामों का उदय हुआ है
मेहरा समाज के कितने गोत्र होते हैं
     मेहरा समाज में कोरम गोया नाग नागिन बस भूतिया चावल 12 सागर कुर्मेल खाद कुटिया चंदेल समर सांवरिया काल वीर पाड़ा बेल खंडेल सूर्यवंशी चुनरिया आदि आदि ग्वाल गोलियां है कुत्तिया चौबे गोल बाजी लड़ाईया पदम तेंदुआ आदि आदि नाम के गोत्र होते हैं
मेरा एक भारतीय उपनाम है जो क्षत्रिय हिंदी में क्या खत्री पंजाबी में जाति से संबंधित है मेरा उपनाम विशेष रूप से ढाई घर छतरी वंश से संबंधित है जो तीन परिवार समूह कपूर खन्ना और मेहर मल्होत्रा से बना है कुछ मेहरा परिवारों में ने मल्होत्रा मल्होत्रा या मल्होत्रा नाम से भी जाना जाता है
सभी मानव जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं अपने वर्ग वंश के विकास के लिए हम कौन थे यह जानने की लालसा सभी में पाई जाती है भारत में अनेक जातियां तथा वंश के लोग निवास करते हैं जिसमें मेहरा जाति के लोग भारत के कई प्रदेशों में निवास कर रहे हैं आज मेराज जाति का प्राचीन इतिहास समय चक्र में दब गया है आज हमें मेरा जाति के इतिहास को जानना अत्यंत आवश्यक है मेरा जाति का जो भी इतिहास आज मालूम है ज्यादातर अनुमानों एवं आर्यों के धार्मिक ग्रंथो पर आधारित है आता है यह मेहरा जाति का इतिहास तर्क के आधार पर एवं पिछले लेखन एवं बुद्धिजीवियों के ग के आधार पर निर्मित है सामान्य मेरा शब्द से ही महाराष्ट्र का नामकरण हुआ है इस मत का समर्थन डॉक्टर केतकर एवं राज राम शास्त्री भागवत ने किया है कुछ दशक पहले बहारों की बहुत ही बदहाली एवं विपन परिस्थितियों के कारण महाराष्ट्र नाम का म्हारे से नहीं आया ऐसा कुछ लोग अर्थ निकलते हैं परंतु यह विचारधारा बिल्कुल भी ठीक प्रतीत नहीं होती है भूतकाल में मेहरा जाति संबंध जाती थी ऐसा मानना सही प्रतीत होता है बहारों से महाराष्ट्र का नाम आया इस तरह का मानना मराठी शब्दकोश में किया है इस शब्द की पुनरावृत्ति जल जॉन विल्सन ने भी की थी गांव जहां महाराज महाराणा वाला इस युक्ति की अमली जामा पहनाया है महाराष्ट्र की लेखिका इरावती कोरब रहती हैं जहां तक मेहरा महा तक महाराष्ट्र इससे भी मोरों का महाराष्ट्र का मूल निवासी समझा जा सकता है लेकिन लेखक का मानना है कि मेहरा जाति के लोग केवल महाराष्ट्र में ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत वर्ष में सभी प्रति में निवास कर रहे हैं बहारों का प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग नाम से जाना जाता है महारा मेहरा मेहरा जानकी होलिया प्रभारी सिंह द्वारा चोखा मेला बागोड़ा मांग माधिका घंटीवास भोपाल भूमिपुत्र कोटवार बुनकर हाथी नाम से भी जाना जाता है।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-काउंसलर-इतिहासकार

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