"मुहावरो की दुनिया,एक कटु सत्य है "

    आज का शीर्षक है :-"उल्टे चले बाँस बरेली को " पहले पहल तो सब ठीक चल रहा था किंतु अब नही चल रहा है।ठीक उसके विपरीत चल रहा है।अर्थात जो चीज जहां से निर्मित हुई है वही वापिस पहुंच रही है।आए हम तीज त्योहार पर घर की तरफ दौड़ जाते थे और त्योहार एक साथ मनाते थे । वह माहौल धीरे धीरे समाप्त होते जा रहा है। अब बिल्कुल विपरीत हो  रहा है। अतः कहने के तात्पर्य यहां पर यह भी होता है कि जहाँ आपको इज्ज़त, सम्मान ना मिले वहां से निकल जाने मे.ही  भलाई हैं।समय के साथ अपने आपको बदल लेना, चाहिए ।चूंकि समय परिवर्तनशील है। बेरोजगारी, बढ़ती मंहगाई के बोझ का असर सभी लोगों पर पड़ा है। सारी दुनिया अपना और परिवार के बारे मे ही सोंच रही है, भाई-बहन व अन्य रिस्तदारो को भूलता जा रहा है और जो कर रहा है उसमे उसका स्वार्थ छिपा हुआ है, अथवा मजबूर है । "जो कल किसी ओर का था ,वो आज मेरा है वो कल किसी और का होगा" यह प्रचलित कहावत


  "सरकार डाल-डाल तो मै पाँत-पाँत " 

जिसका अर्थ यह होता है कि- दोनो चलाक और धूर्त है। इस कहावत पर कई प्रश्न बनाए जा सकते हैं वैदान्तू जैसे ऐप भी बनाए हैं।इस 

एक कहावत का उपयोग आजकल सरकार और पदस्थ अधिकारियों पर ज्यादा ही शूट  होता है । सरकार और अफसर जब दोनों ही श्रेष्ठता की श्रेणी में आते हैं तो दोनों मिलकर देश का कल्याण कर सकते हैं अथवा देश को कंगाल बना सकते हैं ।अतः इस मामले में माननीय न्यायालय आगे आ रही है और इन दोनों को चेतावनी भी दे रही है कि वे अपनी हदें पार ना करे ।

   प्रायः देखने मे आ रहा है कि भ्रष्ट अधिकारी नेताओं से मिलकर ,साँठ-गाँठ कर जनहित कार्यों मै बाधा उत्पन्न कर रहे हैं जिसके कारण देश मे भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया है। ऐसे मे अब स्थिति यह निर्मित हो रहीं हैं कि "सरकार डाल डाल तो अधिकारी पाँत-पाँत"।सरकारी अफसरों के पास बचने बचाने के उपाय अथवा शब्दकोष का अथाह भंडार है। मोदी-सरकार इस समय माननीय अदालत के मार्फत भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु अग्रसर होती नजर आ रही है ।

जिसके लेखक-आलोचक है गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन।

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