माँ का दुलार

 वर्ष 1975-76  की बात है जब दूरस्थ गांव में आवागमन के साधन बहुत कम थे ।उस समय गांव बीहड़ गांवो में नौकरी करने से आम लोग घबराते थे । गांवो में साँप-बिच्छू तो पाए ही जाते थे साथ ही साथ जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता था । शाम होने के बाद कोई भी घर से बाहर नहीं निकलता था ।कई कई गांव में बिजली पानी और सड़क की भी व्यवस्था नहीं थी ।

     गांव गांव में सरकारी स्कूल और अस्पताल खोलने के आदेश सरकार राज्य सरकार द्वारा दिए गए थे । कम पढ़े लिखे स्थानीय लोगों को प्र प्रशिक्षण देकर बीहड़ स्थानों में नौकरी के आदेश प्रसारित कर नियुक्ति दे दी  थी । 

   छत्तीसगढ़ पूर्व म०प्र० के एक बिहड़ गाँव मे एक शिक्षिका  की नियुक्ति हुई  थी जहां पर से उ०प्र० की सीमा लगी हुई थी। उ०प्र०के सजायाफ्ता लोग यहाँ आकर बस गए थे और वहां को डरा धमकाकर अपना साम्रज्य स्थापित कर सभी प्रकार से शोषण कर रहे थे  ।

    शिक्षिका  प्राईमरी स्कूल  मे शिक्षिका के पद पद पर कार्यरत थी ।  बड़ी सीदी सादी ,कम उम्र की थी और गाँव की लड़की थी ।वही  पर एक सरकारी कर्मचारी सै मुलाकात हो जाती है जो अधेड़ उम्र का  आवारा किस्म का शराबी व्यक्ति था जो बातों में निपुण तो था ही साथ मे औरतों और लड़कियों के साथ संबंध बनाने में माहिर था।  उसने शिक्षिका को अपने मे फंसा लिया और उसके साथ रहने लगा । उनके दो बच्वे थे जो बहुत ही छोटे छोटे थे । उस व्यक्ति ने पास के रहनेवाली दो तीन महिलाओं से संबंध बना रखे थे । उसकी पहली बीबी के बड़े-बडे बच्वे थे जो यूपी के किसी गाँव मे रहते थे ।

     इस बीच एक दिन की बात है उस शराबी ने शिक्षिका की अनुपस्थिति मे अपने बच्वे को लेकर कही चला गया । शिक्षिका जब स्कूल से वापिस लोटी तो घर मे बच्चों ना पाकर घबराई। इधर-उधर ढूढते रही । पड़ोसियों ने बतलाया कि उसके बच्चों को एक आदमी जंगल की ओर ले गया है । शिक्षिका सब माजरा समझ गई कि बच्चे कौन ले गया और कहाँ ले गया है । शाम होने मे अभी समय था अतः घर को ठी से बंद कर पड़ोसी को बतलाकर तेजी से जंगल की ओर गई । उन दिनो रात्री मे घर से कोई बाहर नहीं निकलते थे चूंकि जंगल में जंगली जानवरों का डर था। ये सब जानते हुए भी जंगल की ओर तेजी जाने लगी । उस समय कुछ नही रहा था बस उसे तो बच्चे दिख रहे थे । माँ की ममता हिलोरे मार रही थी । माँ की ममता के सामने सब चीजें फैल है । उन दिनों गाँवो मे जादू टोने टोटके ,टोहनी विद्या का बोलबाला था। नरबलि के साथ-साथ बच्चों की खरीद फरोख्त की अफवाहें चारो तरफ फैली हुई थी ।

   चलते चलते अंधेरा होने लगा था शिक्षिका ने अब दोड़ भी रही थी और तेजी से अपने कदम भी वढ़ा रही थी । उसके सामने जीवन मरण का सवाल था । अंत मे अंधेरा भी हो गया और सामने वह गाँव का घर की रोशनी भी दिखाई देने लगी जहाँ उसे पहुचना था ।

   शिक्षिका ने घर के अंदर दूर से ही देखा कि उस घर चिमनी की मध्यम रोशनी में आदमी और एक औरत की परछाई दिखी सा ही बच्चों का हल्के से स्वर सुनाई दिऐ है । अब उसे फैसला करना था कि अभी वह अंदर जाऐ दोनों ही तरफ उसके सामने मौत खडी नजर आ रही थी ।अंदर उस आदमी और औरत से खतरा और बाहर जंगली जानवरो से खतरा । बच्चे अभी सुरक्षित है । अतः ऐसी स्थिति में उसनें बाहर ही रहने का निर्णय लिया । ठंडी रात,जंगली जानवरों की परवाह ना करते हुए सुबह होने के इंतजार करने का दर्द एक माँ ही बतला  है ।

‌   दूसरे दिन सुबह  सुबह शिक्षिका ने घर का दरवाजा खटखटाया । औरत ने दरवाजा खोला तो सामने एक अनजान महिला को देखकर डर गई , इस बीच आदमी उठ गया और सहम,डर गया । शिक्षिका ने अपने बच्चों के पास गई और उन्हे गले लगाया दूसरी तरफ दोनो आदमी औरत मै झगडा होने लगा । मौके का फायदा उठाते हुए शिक्षिका अपने बच्चों को लेकर निकल गई और वो दोनो आदमी औरत झगड़ा करते रहे ।जाती

    शिक्षिका ने अपने गांव पहुचते पहुचते अपने जीवन का फैसला कर लिया था । वहां से तबादला करवा लिया और अपने बच्चों के साथ रहने लगी और नरकीय जीवन से उसे छुटकारा मिल गया । माँ का दुलार,प्यार ऐसा होता है।

गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन

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