पिता-पुत्र मे दरार नही, तकरार होती है
पिता और पुत्र के बारे मे वर्षों बरस से लिखा से लिखा जा रहा है कि इनके रिस्ते अटूट आस्था पर आधारित है । इनके बीच हमेशा आपस मे तनाव की स्थिति बनते बिगड़ती रहती है।
इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि राजा-माहराजा,नबाबो के शासन काल मे यह प्रचलित था कि सत्ता हथियाने के लिए पुत्र ने पिता का बध्द कर राज्य प्राप्त कर शासन किया है।
पिता-पुत्र का संबंध खून से होता है पुत्र जन्म लेकर पिता के साथ ज्यादा समय व्यतीत करता हुआ बड़ा और समझदार बनता है। कभी वह उंगली पकड़कर चलना सीखता है तो कभी घोड़े की सवारी बना कर पीठ पर बिठाता है । उन दोनो पिता-पुत्र को ऐसा करना बड़ा अच्छा लगता है । दोनो के रिस्ते मे कुछ स्वार्थ भी छिपा होता है जो दिखाई नहीं देता है ।
पिता अपने पुत्र से सदैव सम्मान चाहता है किंतु पुत्र भी यही चाहता है किंतु उसके प्रस्तुतीकरण का ढ़ंग अलग होता है। पहले पहल जब बच्चा छोटा होता है तो बाप के नाम से जाना जाता है और जब वही बच्चा जब बड़ा हो जाता है तो बच्चे के नाम से बाप जाना जाता है । ठीक इसी प्रकार की सोच भी होती है । बाप पुराने तौर तरीका अपनाता है तो बच्चा नये युग का तोर तरीका अपनाता है ।
हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म मे बाप बेटे का रिस्ता बिलकुल ही विपरीत है।
एक मे पिता को सम्मान तो दूसरे मे कत्ल ? एक देश नियम अलग अलग क्यो ? विपरीत परिस्थितियों मे जो चीजें छुपी है उनको सही दिशा मे लाने के लिए हमे सोचना होगा और इसके लिऐ एक कानून बनाकर लागू करने की आवश्यकता है । एक देश-एक कानून,एक जाति,एक धर्म, एक भाषा, एक हिन्दुस्तान, एक भारत भूमि की तर्ज पर सोच विचार, पुरानी परम्परा, इतिहास को साक्षी मानकर नव- भारत की स्थापना करनी चाहिए।
गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन
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