आज-कल का कर्ज
आमजन को हमेशा कर्ज लेने व देने से सदैव परहेज़ रखना चाहिए चूंकि ये कर्ज जन्मोजन्मातंर तक पीछा नही छोड़ता है । इस संबंध मे मै आपको एक कहानी सुनाता हूं !
एक पंडित जी धे ।उनकी माली स्थिति ठीक नहीं थी । घर की स्थिति को देखते हुऐ उनके घर वालो ने उन्हे सलाह दी कि "पास गांव में आपका एक मित्र रहता है वह धनवान है तो क्यो ना उनसे मदद ली जाए "ऐसा घरवालों ने पंडित जी से कहा !
पंडित जी ने घर वालो के बार बार आग्रह करने पर तैयार हो जाते है ।
दूसरे दिन पंडित जी अपने मित्र के यहाँ चले जाते है । मित्र और उपर से ब्राह्मण मित्र के आने मित्र और उसके घरवालों ने पंडित जी का बड़ा आदर सत्कार, आव भगत किया । इन सब बातों को देखकर ,समझकर पंडित जी ने कुछ ना मागने का फैसला अपने मन मे करके,घर जाने की इच्छा जाहिर की ।
पंडित जी रात्री मे अपने कमरे में सो रहे थे । पास मे ही गोठान थी वहा से उन्हें कुछ वार्तालाप सुनाई दे रहा था -
गाय भैसे से कह रही थी -"भैया, मैं कल परलोक सिधार जाएगी कल सुबह सेठ मेरा दूध निकालेगा, उसके बाद मै कर्ज मुक्त हो जाउंगी"! इस बात पर भैसे ने कहा कि "बहन, मेरा कर्ज तो सेठ पर बहुत ज्यादा है वह इस जन्म मे भी पूरा नही होगा किंतु मै कर्ज मुक्त हो सकता हूँ ।"
इस बात पर गाय ने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है, समझाओ ! तब भैसे ने बतलाया-"परसों के दिन यहाँ के जागीरदार द्वारा अपने हाथी से हाथियों का दंगल करवा रहा है, जो कोई भी जागीरदार के हाथी को हराएगा उसे बहुत सा ईनाम मिलेगा। राजा का हाथी मेरा कर्ज दार है , उसे मै याद दिलाउंगा तो दोनो का कर्ज उतर जाएगा और दोनो मुक्तिधाम सिधार जाऐंगे । "
उक्त वार्तालाप सुनते सुनते पं।डित जी की आंख लग गई । सुबह जब नींद खुली तो पता चला कि उनके गाय दूध देने के बाद परलोक सिधार गई है तब पंडित जी को रात्रि कालीन वार्तालाप की सत्यता समझ में आई ।थोड़ी देर बाद शहर में मुनादी का स्वर भी उनके कानों में गूंजा । तब पंडित जी ने अपने दोस्त से कहा कि देखो कल राजा के हाथी का दंगल है उस हाथी से अपने भैसे को लड़बाओ.उनकी इस बात को लेकर हंसी उड़ाई ,फिर भी पंडित जी ने कहा कि तुम्हारा पैसा तंदुरुस्त और गबरु है जो किसी हाथी से कम नहीं है उसे डलवाओ जरूर । लोग तो हंसी उड़ाएंगे ही लेकिन प्रशंसा भी करेंगे और दाद भी मिलेगी । पंडित जी की बात सुनकर उसका दोस्त मान जाता है और अपने भैसे को नहला धुला कर ,पुष्प माला डालकर ,बाजे नगाड़े के साथ राजा के महल जाता है । पूरे शहर में कोतूहल का वातावरण बन जाता है ।और
राज दरबार में इस दंगल को देखने के लिए भीड़ भाड़ इकट्ठी हो जाती है ।
दंगल शुरू होता है एक तरफ हाथी और दूसरी तरफ भैसा दोनों एक दूसरे को देखते हैं ,और मन ही मन बातें करते हैं और इशारों से बातें करते हैं । भैसा हाथी से कहता है कि -" तू मेरा पिछले जन्म का कर्जदार है, यदि हार जाता है तो सभी कर्ज से तुझे मुक्त कर दूंगा । हाथी को भी पिछले जन्म का कर्ज याद आ जाता है । अब दंगल शुरू हो गया । ढोल नगाड़ों के साथ लोगों में उत्सुकता बढ़ने लगी इधर से बहता रंभाया उधर से हाथी सिंघाड़ा ,भैसा अपने खुरों को जमीन पर खुदेरते हुए धीरे-धीरे हाथी की तरफ पड़ता है ,और हाथी धीरे-धीरे पीछे की ओर जाता है ,और अंत में भाग जाता है ।
इस घटना के बाद लोगों के मन में अजीब सी प्रतिक्रिया हुई अनोखी घटना से सभी लोग आश्चर्यचकित थे राजा ने नगर सेठ को ढेरों ढेरों इनाम दिए जिसमें रुपया पैसा आभूषण शामिल थे ।
नगर सेठ अपनी जीत की खुशी के साथ ,बाजे नगाड़े के साथ ,शहर में घूमते हुए अपने घर पहुंचे और जीत की राशि और उपहार का सामान पंडित जी के सामने रख दिया । इन सामानों का दो हिस्सों में बांट दिया और दूसरे दिन पंडित जी को विदा किया ।
उक्त कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि इंसान को कभी भी , किसी से भी कर्ज नहीं देना -लेना चाहिए । कर्ज लेने पर , उसकी अदायगी समय समय पर ,निर्धारित समय में अपने जीवन काल में ही अदा कर देना चाहिए अन्यथा उसे ऋण अदायगी हेतु कई जन्म लेने पड़ते हैं कर्ज की अदायगी के लिए ना जाने कौन-कौन सी योनि में जन्म लेना पड़ता है ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक , आलोचक
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