"दो मुठ्ठी चावल की ढेरी ?"
प्राचीन ग्रंथो के अध्ययन से पुराने जमाने की बाते और उस समय की सभ्यता का ज्ञान होता है । समय का परिवर्तन होता गया और वर्तमान में भूतकाल का अस्तित्व समाप्त हो गया है किंतु अभी भी उस समय की बाते , कहानियों मे कथाओं मे सिमटकर रह गई है । पहले जमाने में शिक्षा का अभाव था परन्तु शिक्षा दीक्षा भी थी । उस समय नैतिक शिक्षा और संस्कारों का चलन था ।हजारों साल से धार्मिक ग्रंथों को सम्भाल कर रखा गया है । इन ग्रंथों मे सभी प्रकार की कथा,कहानियों का जिक्र है जो शिक्षाप्रद के साथ साथ डरावनी, भूतप्रेतों, रहस्यमयी और गूढ़ अर्थो से लिखी गई है जो रोचक होती थी ।
प्राचीन समय में एक पंडित जी थे। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ चारों धाम की यात्रा करने की सोची ।उस समय आवागमन के साधन तो बिल्कुल भी नहीं थे ।अत:उन्होंने पैदल यात्रा करने की सोची ।पंडित जी और पंडिताइन के कोई संतान नहीं थी ।उम्र भी 50 - 55 के पास होने के बाद , उन्होंने सोचा कि अब दुनिया में क्या रखा है अत: रुकते, ठहरते हुए चारों धाम की यात्रा करने के लिए निकल पड़े । रास्ते में जहां पर भी रात्री होती थी ,वहीं विश्राम करके ,अगले दिन यात्रा पर निकल पड़ते थे । इस यात्रा के दौरान उन्हें एक राज्य मिला जिसके राजा बड़े न्याय प्रिय और धार्मिक प्रवृत्ति के थे ।जब उन्हें अपने राज्य में एक पंडित जी आए हैं जो चारों धाम की यात्रा पर निकले हैं तो उन्होंने अपने गुरप्तचर को भेजकर पंडित जी को सादर पूर्वक अपने महल में बुला कर कुशल क्षमता ,पूछ कर भोजन करवाया ।भोजन करवाकर उन्हें राज महल में रुकवाया और नौकर चाकरो को सेवा करने की व्यवस्था करने हेतु आदेशित किया । पंडित जी को कमरा दिया गया ,थोड़ी देर बाद राजा का सिपाही आया और पंडित जी से कहा कि "पंडिताइन को रानी साहिबा अपने शयनकक्ष में ठहरने हेतु "आमंत्रित कर बुलवाया है । तब पंडित जी ने इस आदेश को ठुकरा दिया ।और विनय पूर्वक कहा कि "वे दोनों यहीं पर ठीक हैं "राजा और रानी से कह दिया । रात्रि बीत गई दूसरे दिन राज दरबार में पंडित जी को बुलवाया गया और उनसे पूछा कि आपने "ऐसा क्यों किया ? क्या आपको संदेह था अथवा रानी के आदेशों की अवहेलना करने की करने क्यों की गई । इस प्रश्न का उत्तर मैं अभी नहीं दे सकता ।कल सुबह दूंगा ऐसा कहकर पंडित जी अपने कमरे में चले गए ।
रोजाना की भांति दिन निकला राजदरबार लगा । राजा ने अपने सेवकों से कहा कि वे पंडित जी को लेकर आए । सेवक ,पंडित जी को लेने गया और थोड़ी देर बाद आकर राजा को आकर बतलाया कि पंडित जी सुबह-सुबह कमरा छोड़ कर चले गए हैं । राजा और दरबार के दरबारी लोग अचंभित हो गए ,और उस दरबान से कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि पंडित जी जवाब दिए बगैर जा सकते हो । अत: उन्होंने अपने मंत्री और सिपाहियों को पुनः भेजा कि जाओ और वस्तु स्थिति से अवगत कराएं । मंत्री और सिपाही गए और थोड़ी देर बाद आकर बतलाया कि सिपाही का कथन बिल्कुल सही है । राजा ने मंत्री से पुना पूछा कि कमरे में कोई खास बात नजर आई तब मंत्री ने कहा कि हुजूर कमरा बिल्कुल खाली था किंतु एक जगह चावल की दो ढेरी लगी हुई थी । बस बस राजा साहब समझ गए कि उत्तर यही है । अत: राजा को तो समझ आ गया किंतु जनता को कुछ समझ में नहीं आया ।
इस कथा का कहानी का अंत यही होता है आप भी सोचिए पाठक भी सोचे कि यह दो मुट्ठी चावल की तो ढेरी का आशय क्या है ? सोचिए विचार करिए और उत्तर खोजिए और लेखक से संपर्क स्थापित कर उन्हें बताएं सही जवाब देने पर उस उस व्यक्ति को प्रशंसा पत्र ट्रस्ट की ओर से दिया जाएगा ।
लेखक-आलोचक श्रीरामधुन
"टीलेश्वर माहराज " भोपाल ।
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