स्वतंत्रता की चेतना

स्वतंत्रता का अधिकार हमारे संविधान ने हमें दी है । क्या उसका सही ढंग से पालन हो रहा है ? पहले पहल तो हम वास्तव मे स्वतंत्र थे किंतु अब नही । जबसे हमारा देश गुलामी की जंजीरों मे जकड़ा हमारी मानसिकता मे काफी कोशिश के वावजूद भी बदल नही पा रही है । अभी भी कही ना गुलामी नजर आ ही जाती है । पहले की सरकार और वर्तमान सरकार की नीतियों मे भी काफी हद तक परिवर्तन नजर आ रहा है किंतु कही ना उसका अंश दिख ही जाता है । ऐसी मानसिकता बदलने के लिए वर्षों लग जाते है और वही हो रहा है --
    एक साधू था,विद्रोही साधू । वर्तमान समय मे जैसे लेखक  - आलोचक होते है । राजा और राजा के जारी फरमान और कार्यो का विरोध करता था । आमजन मे भी आक्रोश था । साधू के बार बार समझाने के बाद भी राजा ने कहना नही माना तो वह राजा के हर बुरे कार्यो के विरोध मे बोलना शुरू कर दिया ।
   राजा ने हुक्म दिया कि साधू को गिरफ्तार किया जाऐ और दरबार मे पेश किया जाए ।हुक्म की तामील हुई । साधू को गिरफ्तार कर लिया गया । उसके हाथ मे हथकड़ी और बेड़ियों से जकड़ कर , राजा के समक्ष पेश किया गया । 
    राजा ने साधू सै कहा:-
"अब तू बंदी है । तेरा जीवन मेरी इच्छा पर निर्भर है, तूने मेरी बार बार निंदा की है, और बार बार करता ही रहा? बोल , अब तू मेरा क्या कर सकता है!"
    साधू ने कहा - "राजा यह तेरा आचरण है, तू पतीत है, व्यभिचारी है और तेरे जीवन को धिक्कारता हूं और इस जीवन पर थूकता हूं और थूक भी सकता और थूंक दिया ।"
   स्वतंंत्रता की चेतना मन से होना चाहिए बाहर की स्थितियो मे नही !
गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन
"आलोचक,विद्रोही "।

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