सेवा भावना से समर्पित

    माता पिता की सेवा करने वालों का स्थान भगवान से भी ऊंचा है ।किंतु आज के युग में मां-बाप एक बोझ बन गए हैं ।इस बात को लेकर सरकार भी चिंतित है, और बुजुर्ग लोगों के लिए उनकी सुरक्षा को लेकर अनेकों कदम उठा रही है  और लाभ  भी दे रही है और भी अनेक सुविधाएं प्रदान कर रही है ।
ट्रस्ट मां आदिशक्ति दरबार धार्मिक एवं परमार्थ  टूस्ट भोपाल के संस्थापक, संपादक ,अध्यक्ष ,काउंसलर श्री रामधुन जी के  कृषक मां-बाप की मृत्यु हो गई है । उन्हे माँ- बाप की  सेवा करने का समय नहीं मिला । इसी वजह से उन्होंने उक्त ट्रस्ट का पंजीयन करवाया । ट्रस्ट धार्मिक एवं सामाजिक दोनों कार्य करती है । गांधी मोदी विचारक ट्रस्ट है ।इस ट्रस्ट के द्वारा वृद्धजन /निशक्त जनों हेतु अनेकों निशुल्क सेवाएं प्रदान की जा रही है । ट्रस्ट पेंशन राशि एवं दानपात्र से प्राप्त राशि से चलता है ।ट्रस्ट की अनेकों समस्याओ के प्रकरणों शासन के अधीन विचाराधीन है ।
बुजुर्गों की सेवा ही मां-बाप की सेवा है। इसी आशय से अनेकों निशुल्क सेवाएं लागू है किंतु शासन की उपेक्षा के कारण कई योजनाओं को बंद करना पड़ा ।
सेवा भावना से समर्पण का होना अति आवश्यक है । और यह भाव सत्संग से प्राप्त होता है ।सत्संग में आकर बैठना अपने हाथ की बात है ।और अपने बस की बात नहीं है ।बैठकर उन अच्छी बातों को सुनना जिसको हम यथाशक्ति करते ही हैं ,किंतु उन बातों को सुनकर अमल करना ,काम में लाना असली बात है ।सत्संग में रुचि और श्रद्धा के अभाव में आलस आता है ।और दूसरे सब कारण गोण है । अत: दोनों सामाजिक की स्थिति में होना आवश्यक है ।एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना होना अति आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार से जैसे स्वामी और सेवक में जब एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना निस्वार्थ सेवा भावना आ जाती है तब ही पर एक दूसरे का भला कर सकते हैं ।यहां एक दूसरे के प्रति भला सोचने से दोनों का भला होता है ।यह बात सब पर लागू होती है ।पुत्र माता पिता की सेवा को ही अपना सब कुछ मान  ले तो माता पिता और पुत्र तीनों का भला हो जाए। यही सिद्धांत पति पत्नी के बीच होना चाहिए ताकि उनका जीवन ही सफल हो जाएः। पदम पुराण में एक कथा का वर्णन आता है कि मूक  चांडाल अपने माता-पिता के ही सेवा ही करता था और उसी कारण से उसके साथ-साथ उसके माता-पिता का भी कल्याण हो गया ।वे माता-पिता का भला चाहते थे और अपना आशीर्वाद से काम परम हित हो गया । और माता पिता की वह सेवा हर प्रकार से बिना  स्वार्थ व भेदभाव के साथ करता था जिससे उनका भला हो गया। 
आधुनिक काल के कलयुग में पुंडरीक नामक एक व्यक्ति था जो माता-पिता का परम भक्त था । पंढरपुर में चंद्रभागा नदी के किनारे रहता था ।वहां एक मंदिर था जिसमें भगवान की मूर्ति के अलावा माता-पिता की भी मूर्ति थी । कहा जाता है कि बनारस में किसी माता-पिता के भक्तों के परिदृश्य से यह प्रभावित होकर उसने माता-पिता को की सेवा का प्रण लिया और उसे जन्मो जन्म जन्मांतर निभाने का संकल्प लिया । ऐसे संकल्प वान व्यक्ति किसी ना किसी से यह माता पिता की भक्ति में लीन है और अभी भी है ।पुंडरीक की माता-पिता के प्रति ऐसा भाव देखकर भगवान स्वयं उसके घर पधारे और बोले "पुंडरीक मै  भगवान ,मैं तुमसे मिलने आया हूं ।" पुंडरीक ने उत्तर दीया आइए महाराज बड़ी कृपा की ,और उनके सामने बैठने के लिऐ एक ईट रखी थी उनकी तरफ बड़ा कर बोला बैठीऐ । भगवान ने अपना प्रश्न दोहराया ,पुंडरीक "मैं तुमसे मिलने आया हूं "तब पुंडरीक ने कहा कि "प्रभु अभी तो माता-पिता की सेवा कर रहा हूं ।"अवकाश होने पर आपसे मिलूंगा "भगवान ने कहा ! भगवान ने अपना प्रश्न दोहराने के साथ यह कहा कि - "मैं तुमसे मिलने आया हूं और तुम्हारे पास समय नहीं है" ! पुंडरीक ने कहा कि "मैं अभी सेवा कर रहा हूं ना " - अच्छा बतलाइए कि आप मुझे बिना बुलाऐ क्यों आए हैं ? भगवान बोले - "मैं तुम माता-पिता के भक्त हो इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने आया हूं "।पुंडरीक को समझ में आ गया कि "माता-पिता की सेवा कार्य ही सर्वोपरि है " ! जिसके भक्ति से खुश होकर भगवान तक उसके पास आ गए हैं ।और उसकी भक्ति परायण से खुश होकर उसके दर्शन देने स्वयं पधारे है । माता पिता की सेवा मालिक नौकर की सेवा, दुकानदार और खरीदार ग्राहक की सेवा ,नेता और जनता की सेवा, अधिकारी कर्मचारी की सेवा, अधिकारी कर्मचारी आम जनों की सेवा कार्य  का भाव से सकारात्मक होने से दोनों का भला हो सकता है । पुंडरीक जी ऐसा करने से दोनों का भाव  से भला हो सकता है । अतः प्रचार में लिप्त लोगों को उक्त कहानी से सबक लेना चाहिए यदि उद्धार चाहते हैं तो गुरुजी सत्यवादी श्री राम धुन से संपर्क करें मात्र संपर्क करने से ही उनकी समस्या का ,कुछ अंश तो उसी समय समाप्त हो जाएगा ।और उन्हें स्वयं एक प्रेरणा मिलेगी  आगे के रास्ते ,जो बंद दरवाजे हैं ,धीरे-धीरे खुलने शुरू हो जाएंगे । उद्धार करने वाला उध्दार  करवाने वाला यदि सच्चे मन से एक दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी अवश्य होगी।
ट्रस्ट और सरकार के बीच आपसी तालमेल ना होने के कारण आपस में टकरावट की स्थिति पैदा हो रही है । टूस्ट निशुल्क सेवा भावना से आम जनों के हितार्थ है । तो सरकार में पदस्थ अधिकारी व नेताओं में ऐसी भावना बिल्कुल भी नहीं होना के कारण प्रोग्रेस नहीं हो पा रही है। इसमें ट्रस्ट संस्थापक अकेले ही हैं ,उन्हें सपोर्ट किसी का भी नहीं है ,ना घर वालों का ,ना ही समाज वालों का ,ना ही आस-पड़ोस के लोगों का ,और ना ही प्रदेश देश के उच्च पदाधिकारियों का । एक और एक ग्यारह हो जाएंगे तब ही कुछ हो सकता है अभी तो एक अकेला ही है समर्पण की भावना से एक ही व्यक्ति है किंतु अन्य लोगों में नहीं ।यहां माता पिता की सेवा, मालिक नौकर की सेवा ,वाला नियम लागू नहीं हो पा रहा है कहीं ना कहीं त्रुटि भी तो अवश्य है । जो दिखाई नहीं दे रही है ट्रस्ट के संस्थापक का लोभ ,लालच ,मोह ,माया ,ममता से नाता टूट चुका है । वह निरंतर जनहित  बारे में सोचते रहते हैं ,लिखते रहते हैं  । सरकार उनकी सुन नहीं रही है किंतु वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं । उन्हें अभी तक ऐसा शिष्य , सहयोगी नहीं मिला है जो उस लायक अपनी योग्य ता  हो ।यदि कुछ करना चाहे तो ,और परिवार समाज देश के लिए कुछ अच्छा करने की सोचते हैं तो घर ,परिवार ,समाज ,गांव शहर के मिलने वाले लोग उस में सहयोग तो देते ही नहीं बल्कि उनकी खामियां निकालने लगते हैं ।मैं अकेला जो कुछ भी कर सकता हूं ।करते रहता हूं ।मेरे कार्य लगन और निस्वार्थ सेवा कार्य बस एक ना एक  दिन पूरा होगा और देश के कई कारणधार नतमस्तक होंगे । किंतु उस समय मेरे पास समय नहीं होगा ।मात्र यादें ही रहेगी जो अमित होगी ।लोग याद जरूर करेंगे अधूरा सपना जरूर पूरा होगा ।
यहां पर हम कर्तव्य और अधिकार की बात कर रहे हैं ,जो माता पिता और पुत्र का होता है ।सभी को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए ।ठीक उसी प्रकार अधिकार का भी पालन करना चाहिए और दोनों चीजों में एक दूसरे के हित के बारे में सोचे और निर्वाह करें तभी सभी का भला हो सकेगा।
आज सब कुछ उल्टा हो रहा है ,कोई भी इसे मान नहीं रहा है ,महत्व भी नहीं दे रहा है ,और अपने अपने मन की कर रहा है । इसी वजह से 99% लोग परेशान हैं ।
यहां पर हमारा कहने और लिखने का आशय है यह है कि हमें अपने कर्तव्य और अधिकार का ज्ञान करवाना है । ताकि करने वाले और प्राप्त करने वाले दोनों की भलाई हो सके ।अत: अंतर्मन से अधिकार और कर्तव्य का पालन करें तो दोनों की भलाई है ।यह नियम हर व्यक्ति पर लागू होता है चाहे वह राजा हो या रंक । 
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक,आलोचक 

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