आज " लोहड़ी पर्व दिवस "

    आज लोहड़ी त्योहार है जो उत्तर भारत के साथ साथ सारे संसार में मनाया जाता है । जहाँ कहीं भी पंजाबी और सिंंधी लोग रहते है । पहले-पहल सिंंधी समुदाय इस त्यौहार को नही मनाते थे लेकिन जब से भारत स्वतंत्र हुआ है, भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ है ।तभी से सिंधी समाज तीन प्रकार से बंट गया है । इनका मुख्य त्यौहार और धर्म  से झूलेलालजी है । बंटवारे के बाद सिधी
समुदाय तीन धर्मों को मानने लगा-पंजाबी, हिंदु, और सिंधी मुस्लिम ।
   उत्तर भारत मैं मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है लोहारी । पंजाब हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश में खासतौर से पंजाबी समुदाय मैं तो इस पर्व पर एक अलग ही उत्साह देखा जाता है । यह ऐसा त्यौहार है जो आधुनिक युग के  व्यस्तता भरे माहौल में सुकून भरे कुछ पल लेकर आता है और लोग सारी व्यस्तता ,भूल कर भरपूर जोश और उल्लास के साथ इस पर्व का भरपूर आनंद लेते हैं । पंजाब और जम्मू कश्मीर में तो लोहारी पर्व संक्रांति के रूप में ही मनाया जाता है। सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से 1 दिन पहले लोहारी के रूप में "लाल साईं "नामक पर्व मनाया जाता है लोहानी को लेकर कुछ लोग कथाएं भी प्रचलित है ।मान्यता है कि कंस ने इसी दिन लोहिता नामक एक राक्षस को श्री कृष्ण का वध करने के लिए भेजा था । जिसे श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था और उसी घटना की स्मृति में यह पर्व मनाया जाने लगा। लोहारी पर अग्नि प्रज्वलित करने के संबंध में भी एक लोककथा यह भी है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्हि की स्मृति में हो इस अग्नि प्रज्वलित की जाती है । लोहारी को लेकर सर्वाधिक प्रचलित कथा दुल्ला भट्टी नामक डाकू से संबंधित रही है जिसे " पंजाबी राउंड रॉबिन हुड" का दर्जा प्राप्त है ।
 हरियाणा पंजाब में जिस घर में शादी हुई हो अथवा संतान का जन्म हुआ हो या शादी की पहली वर्षगांठ का मौका हो ,ऐसे परिवार में लोहड़ी का विशेष महत्व होता है । इन परिवारों में लोहड़ी के अवसर पर उत्सव जैसा माहौल होता है ।आसपास के लोगों के अलावा रिश्तेदार भी इस उत्सव मे  सम्मिलित होते हैं ।घर में अथवा घर के बाहर खुले स्थान पर अग्नि जलाकर लोग इसके इर्द-गिर्द घूम घूम कर फेरे लगाते  है  । अग्नि में मूंगफली तेल मक्का के बुने हुए दाने रेवड़ी,गुड़  की आहूति देते थे । रात भर भांगड़ा गिद्दा करते हुए मनोरंजन करते हैं तथा बधाई देते हैं ।लोहारी का संबंध सुंदरी नामक एक ब्राह्मण कन्या और तुला भट्टी नामक डाकू  से जोड़कर देखा जाता है ।दुल्ला भट्टी अमीरों का धन लूट कर  गरीबो को बांटा करता था । कहा जाता है कि  गंजीबर क्षेत्र में ,जो इस समय पाकिस्तान में है । एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सुंदरी नामक एक बहुत खूबसूरत बेटी थी ।जो इतनी खूबसूरत थी कि उसकी चर्चा गली-गली में होने लगती थी ।जब उसके बारे मे गंजिबार के राजा को पता चला तो  उसने ठान लिया कि वह वह सुंदरी को अपने हरम की शोभा बढंएगा । तब राजा ने सुंदरी के पिता को संदेश भेजा कि वह अपनी बेटी को उसके हरम में भेज दें ,इसके लिए ब्राह्मण को तरह-तरह के प्रलोभन दिए। मगर ब्राह्मण अपनी बेटी को राजा की रखैल नहीं बनाना चाहता थाः उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ।जब उसे कुछ कुछ नहीं सूजा तब उसने जंगल में  रहने वाले कुख्यात डाकू दुल्ला भट्टी का ख्याल आया । जो गरीबों व शोषित लोगो की  मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था । घबराया ब्राह्मण अपनी बेटी सुंदरी को लेकर उसी रात उसके पास पहुंचा और विस्तार से सारी बातें बताइए । दूल्हा भट्टी ने ब्राह्मण की कथा सुन उसे सांत्वना दी ।और रात को ही एक योग्य ब्राह्मण लड़के की तलाश कर, सुंदरी को अपनी ही बेटी मान कर ,उसका कन्यादान अपने हाथों से करते हुए उस युवक के साथ सुंदरी का विवाह कर दिया । गंजिबार के राजा को इसकी जानकारी मिली तो वह आगबबूला हो  उठा उसके  आदेश पर उसकी सेना से ने दुला भट्टी के ठिकाने पर धावा बोल दिया किंतु झदूला भट्टी और उसके साथियों ने राजा को बुरी तरह हरा दिया । दुल्ला भट्टी के हाथों गंजी बार के शासक की हार होने की खुशी में गंजी बार में लोगो 
ने अलाव जलाए और दूल्ला भट्टी की प्रशंसा में गीत गाकर भांगड़ा डांस किया । कहा जाता है तभी से लोहड़ी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुंदरी व दूल्लभट्ई , विशेष तौर पर याद किया जाने लगा है ।
 गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
"कथाकार ,लेखक"

Comments

Popular posts from this blog

दिलिप बिल्डकाँन के कर्मचारी अर्पित कुंवर का निधन !

28 जून 2024-श्रृध्दाजली दिवस !

आज के इतिहास मे 16 जून 2024 का विशेष महत्व !