27 फरवरी चंद्रशेखर आज़ाद शहीद दिवस पर विशेष

देश के महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्र ता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश पुलिस के साथ मुठभेड़ में गिरफ्तारी से बचने के लिए 27 फरवरी 1921 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में खुद को गोली मारी ।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में के इतिहास में कुछ ऐसे प्रसंग की मिलते हैं जिन्हें पढ़कर लोगो के रोगठै  खड़े हो जाते हैं ,और आंखों में आंसू आ जाते हैं । ऐसा ही प्रसंग बलिदानी चंद्रशेखर आजाद का है । चंद्रशेखर आजाद ने अपने बचपन से ही स्वाधीनता का संघर्ष शुरू कर दिया था । चंद्रशेखर आजाद के विरुद्ध स्थाई वारंट था। देखते ही गोली मारने के आदेश थे ।उनकी तलाश में 700 लोग लगाए गए थे परिवार से मिलने जुलने वाले पर भी नजर रखी जा रही थी। जिसके कारण सब लोगों ने इस परिवार से किनारा कर लिया था । आजाद के पिता सीताराम जी की नौकरी छूट गई थी। बड़ी मुश्किल से उन्हें छोटा-मोटा काम मिलता था । उनके सामने ही परिवार चलाने के लिए उनकी माता को भी मजदूरी करनी पड़ती थी । क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1960 को भावपुरा गांव में हुआ था उनकी दृढ़ता और स्वाधीनता का परिचय तब मिला जब वे मात्र 14 वर्ष के थे ।यह 1920 की घटना है वह आठवीं कक्षा में पढ़ते थे जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण बनने लगा था ।गांव में बालक चंद्रशेखर ने प्रभातफेरी निकाली जिसमें रामधुन के साथ स्वाधीनता के नारे भी लगाए । चंद्रशेखर  के साथ साथ कुछ-कुछ किशोरों को पकड़ लिया गया । उस समय  चंद्रशेखर ने माफी मांगी और ना अपनी गलती स्वीकार की ,उल्टे भारत माता की जय का नारा लगाया इससे नाराज पुलिस ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया और 15 डण्रडे मारने की सजा दी गई । नाम पूछने पर उन्होंने आजाद बताया पिता का नाम स्वतंत्रता बताया और घर का पता जैल बताया वहीं से नाम चंद्रशेखर आजाद हो गया ।
   27 फरवरी 1931 का दिन था वह इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से बुरी तरह घिर गए एनकाउंटर आरंभ हुआ आजाद ने 3 पुलिसवालों को ढेर कर दिया पर यह एनकाउंटर अधिक देर ना चल सका ।वह घायल हो गए थे और अंतिम गोली बची थी तो उन्होंने अपनी कनपटी पर मार ली वे आजाद थे और आजाद ही विदा हुए। उनके बलिदान के बाद अंग्रेजो ने उनके शव का अपमान किया और दहशत पैदा करने के लिए पेड़ पर लटकाया अब इस पार्क का नाम चंद्रशेखर आजाद हो गया है।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन

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