अहंकार

 अनेकों वर्षों पूर्व की बात है।एक देश मे एक राजा रामदेव का राज्य करते थे। राजा का एक पुत्र था जिसका नाम अभिषेक था। अभिषेक की दोस्ती राज्य मे रहने वाले एक गरीब भिखारी के लड़के से हो जाती हैं।

  समयानुसार दोनों बड़े हो जाते है । राजा का पुत्र राजा और फखीर का पुत्र एक माना हुआ फखीर, दरवेश, ओलिया बन जाता हैं। इस बात की, फखीर की ख्याति दूर-दूर देशो मे फैल गई। लोगो की भीड़ उसके दरबार मे लगनेो लगी,सत्संग मे लोगों को लाभ भी होने लगा। जैसे जैसे उसकी ख्याति बढ़ने लगी,वैसे वैसे त्याग और बलिदान की भावना बढ़ने लगी और वह वस्त्रों का त्याग कर दिगम्बर हो गया।

  राजा के पुत्र  राजा अभिषेक के मन मे सदैव यही विचार उठता रहता था कि स्कूल के समय यह बड़ा अंहकारी था,अचानक उसमै कैसे बदलाव आ गया और त्यागी बन गया ? राजा को भरोसा नहीं हुआ, उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी।अंततः एक दिन राजा ने अपने राज्य के लोगों और अपने दोस्तो के साथ मिलकर एक योजना बनाई। राजा ने फकीर को निमंत्रण भेजा कि वे  राजधानी में आऐ और सतसंग के द्वारा आमजनो का भला करे।निमंत्रण पाकर  फखीर राजधानी आया।राजा ने राजधानी को दुल्हन की तरह सजाया । फकीर आया लेकिन राजा हेरान?ना बरसात के दिन थे, राहे भी सूखी थी फिर भी फखीर घुटनों तक कीचड़ से सने धे।पर सबके सामने कहना ठीक नहीं समझा और उन्हे राजमहल के भीतर ले गए। फखीर ने कहा -"मुझे रास्ते में आते समय कुछ लोगे ने कहा था कि "तुम्हारा मित्र राजा तुम्हें अपना वैभव दिखाने के लिए राजधानी को फूलों से.सजा रहा है, वह तुम्हे नीचा दिखाने के लिए ऐसा कर रहा है।"मैने उनसें कहा-'"मैने ऐसे कई लोग देखे है।"राजा जब काँलीन बिछा सकता है तो मै फखीर हू कीचड़ भरे पैरों से चल सकता हूँ।मै दो कोड़ी का मूल्य नहीं मानता ।"जब फखीर ने ये बातें कही तो राजा सब समझ गया  और कहा कि-"अब मै निश्चित हो गया, मेरी जिज्ञासा भी शांत हो गई। तब फखीर ने राजा से पूछा कि आपकी क्या जिज्ञासा थी ? राजा ने कहा कि-"मै आपको पहले से ही जानता हूँ।स्कूल में भी आपसे ज्यादा अंहकारी कोई नही था।आपमें इतनी विनर्मता  की उपलब्धि  कैसी आ गई, यही मुझे संदेह था। अब मुझे कोई चिंता नहीं है। हम गले मिले।हम एक जैसे है।

टीलेश्वर माहराज श्रीरामधुन

भोपाल

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