आज "रविदास जंयती"

 आज "रविदास जंयती " पर गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन की विशेष संम्पादकीय टिप्पणी :-
   बदलते जमाने की पुकार सदैव यही रही है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने से जन-धन पहुंची है । पेड़ के पत्ते हमेशा पेड़ के ही नीचे गिरते है ।हवा चलने से जरूर इधर से उधर उड़ कर चले जाते है किंतु वही हवा उन्हे उसी पेड़ के नीचे पहुंचा देती है ।जो अपने इरादो के पक्के होते है वे अपने पेड़ की छाया मे आ ही जाते है । जो पत्ते कमजोर हो गए उन्हे समय निगल गया । ये वही पेड़ है जो आँधी,तूफानों का सामना करते रहे और अपने आप को तथा समाज, देश के उत्थान के बारे मे ही सोचते रहे । ऐसे महान संतो और पुरुषों के प्रति सादर नमन् करता हुआ टूस्ट "माँ आदिशक्ति दर० धार्मिक एवं परमार्थ टूस्ट" भोपाल द्वारा रोजाना अथवा सदैव आयोजन करते रहता है । इसे अनदेखा नही करना चाहिए बल्कि सहायता कर बढ़ावा देना चाहिए । किंतु सरकार के साथ साथ आमजनो की आँखो की पट्टी बंदी हूई है ।
आज का दिन "संत शिरोमणि रविदास
जंयती"का दिन है ।माघ पूर्णिमा के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मान०मुख्यमंत्री के साथ साथ गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन उन्हें शत्-शत् नमन करता है ।
   भारतवर्ष अनेकता में एकता का देश है विविध जाति वर्ण धर्मों के लोग अनादि काल से यहां मिल जुल कर रहते आए हैं यह भारतीयता की पहचान संस्कृति की धरोहर है हमारी संस्कृति में सामाजिक समरसता का संदेश देने वाले संतों गुरुओं के प्रति आदर का भाव रहा है इन्हीं संतो में एक गुरु रविदास जी समाज ने समाज में व्याप्त असमानता और रूढ़ियों के खिलाफ समाज को जगाने का कार्य किया है वह कथा कहानियों के माध्यम से अपनी बातें लोगों तक पहुंचाते थे उनके संगीत आरती व भजन आज भी मन मोह लेते हैं उनके द्वारा सुनाई गई कहानी सतगुरु रविदास जी की अमर कथा के नाम से जानी जाती है माघ पूर्णिमा के दिन काशी के मंडवाड़ा गांव में रघुवर करमा बाई के पुत्र के रूप में जन्मी इस बीच विभूति ने भले ही धर्म कारी के पैतृक व्यवसाय को चुना अपनी रचनाओं से जिस समाज की नींव रखी वह वाकई अद्भुत है आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने के बजाय संत सेवा का माध्यम बनाया संत रविदास जी ने सामाजिक विकृतियों छुआछूत जैसी कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई अपनी रचनाओं में दलितों सोची तो समाज के सताए गए लोगों को आगे ले जाने की बात करते थे
संत रविदास जी के जीवन से संबंधित अनेक चमत्कारिक घटनाएं प्रचलित है उससे अधिक महत्वपूर्ण उनका विश्वास था कि ईश्वर भक्ति के लिए सदाचार परोपकार मधुर व्यवहार अत्यंत आवश्यक है उन्होंने स्पष्ट कहा जन व्यवसाय के आधार पर कोई महान नहीं होता अपितु श्रेष्ठ विचार सामान हित सदाचारी के गुण ही मनुष्य को मानता की ओर ले जाते हैं उन्होंने आत्मा की आवाज को कभी धन या प्रस्तुति का दास नहीं बनने दिया पुरुषार्थ के स्थान पर आक्रमण था को स्वीकार नहीं किया इस दृष्टि से वे देश की आध्यात्मिक परंपरा परंपरा को ह पढ़ा रहे थे
संपूर्ण जीवन में छुआछूत ऊंच-नीच जातिवाद जैसी कुरीतियों का प्रतिकार किया आजीवन उनके विरुद्ध तकरीर है
वह औपचारिक शिक्षा से रहे थे लेकिन विद्या ज्ञान और भक्ति के मामलों में संत समाज सुमेरू के समान थे उनका निराकार ब्रह्म घट घट वासी का व्यापक दृष्टि सामाजिक सौहार्द की प्रतीक थे उनकी सम दर्शिता पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध हुए उनके जैसे संत इस ल अभिन्न अंग है उनके उद्देश्य सार्वजनिक सर्वकालिक और सार्वभौमिक है ऐसे जीव महात्मा के श्री चरणों में कोटि कोटि कोटि नमन ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन

गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
"माँ आदिशक्ति दर० धार्मिक एवं परमार्थ टूस्ट"भोपाल द्वारा आयोजित संत रविदास जयंती का चित्रांकन:-

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