"लोकतंत्र मे परिवारवाद, एक खतरा, नासूर है "!
भारत मे परिवार वाद की परम्परा वर्षों से चली आ रही है । इसकी पुष्टि हमारे देश के इतिहास से मिलती है।
इसी परिवार वाद के कारण आज काग्रेस पार्टी की दुर्दशा से सभी लोग अवगत है ही । परिवार वाद एक नासूर बन कर क ई लोगो के लिऐ गले की हड्डी भी बन चुका है ।
आज हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने फिरसे इस सवाल को उठाकर गलती भी की है और क ई लोगो का ध्यान भी अप्रत्यक्ष से अपनी ही पार्टी "संघ परिवार" की ओर आकर्षित करवाया है । अब "संघ परिवार" को विलोपित किया जाऐ अथवा नही ?
" आज राजनीति में कई बार बात की जड़ें कितनी गहरी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस के 44% व भाजपा के 25% सांसद नेताओं के परिवार से हैं राजू की यह है कि क्षेत्रीय दलों में ज्यादा परिवारवाद राष्ट्रीय दलों में है वर्ष 2019 में राष्ट्रीय दलों ने 856 प्रत्याशियों में से 227 यानी 27% और क्षेत्रीय दलों के 1337 162 यानी 12% फैमिली मेंबर है वही यह बात सामने आई है कि वर्ष 2009 में कांग्रेश के 11% और भाजपा के 12% सांसद नेताओं के परिवार थे सीपीआई और सीपीएम ऐसे दल हैं रहे हैं जिन्होंने 5% से भी कम ऐसे प्रत्याशी उतारे हैं जो नेताओं के परिवार से ताल्लुक रखते थे ।
आप ऐसे समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बोले भा जा पा (भाजा पा) में वंशवाद नहीं चलेगा, सांसदों के बेटों को टिकट मैंने ही कटवया था । अब मोदी जी के फैसले के प्रति भैया गए यह निर्णय की पार्टी में बस बात नहीं चलेगा तो ना जाने कितने विधायक सांसदो जो अपने बाप की जागीर समझते हैं ,उनका क्या होगा जो अपने स्वर्गीय के सम्मान मे मोहल्ले, सड़को पर उनकी प्रतिमाएं लगाकर भा ज पा परिवार वाद के नाम से ना जाने क्या क्या अनैतिक कार्य कर रहे है । पार्टी व संघ परिवार के बड़े बड़े नेता इन अवसरवादी नेताओं के नाम और काम व परिवार वाद का लाभ लेने की इनकी मंशा जानती है फिर भी कुछ नही कर पा रही है ताकि पार्टी पर कोई आंच ना आऐ ।
अतः श्री मोदी जी के इस फैसले का स्वागत है ।और खुशी इस बात है कि वंश वाद (परिवार-वाद ) पर चर्चा शुरू हो रही हे बाद मे कानूनी प्रक्रिया मे संशोधन भी किया जावेगा ,क ई नेता बेरोजगार, लावारिस, अनाथ हो जाऐगें।
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