दी कश्मीर फाईल्स का परिदृश्य

   हिन्दी फिल्म "दी कश्मीर फाईल्स" के रिलीज होते ही सारा हिन्दुस्तान मे जैसे एक भूचाल सा आ गया हो ।आज जब हमारे देश के मान० प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने इस फिल्म की तारीफ की,वकालत की तो सारा देश एक जुट होकर हुआ-हुआ की तर्ज पर एक सुर मे अलापने लगे ।। आज संघ के सरसंघसंचालक श्रीमोहन भागवत भी इसकी तारीफ मे कहते नजर आए तो ऐसे मे शिवराज सिंह चौहान कहाँ चूकने वाले थे वे एक कदम ज्वादा उठाने वाली आदत के अंतर्गत आगे आऐ और फिल्म की तारीफ पर तारीफ करते हुऐ मीडिया मे छा गए ।ये सब बाते सही है और ऐसा भी करना चाहिए । दुख बांटने से हल्का हो जाता है तो सभी देशवासी साथ खड़े है ,इससे क्या होगा । होगा तो तभी जब इस पर अमल किया जाए और यह करने की हिम्मत हमारे प्रधानमंत्री मे है ।
यह सब बातें सही हैं इतिहास भी बताता है कि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के स्वभाव में आनिर्णय और असमंजस का भारी दोस था ।शेख अब्दुल्ला ने इसका भरपूर फायदा उठाया ।पहले कोमी आंदोलन और बाद में महाराजा कश्मीर छोड़ो आंदोलन के जरिए गोपाल स्वामी भाई और मेहर चंद महाजन जैसे कुशल प्रशासक भी शेख के आंदोलन के बैग में रोक नहीं पाये ।  कश्मीरी पंडित ने कौमी एकता प्रसद का दं झेला है जो एक सच है । कहा जा सकता है कि यह सच में भी बड़ा दुख है उनका दुख दरअसल आतंकवादी जो कश्मीर पंडितों के पड़ोसी छात्रों को और दोस्त थे उन्हीं ने अपने पड़ोसियों टीचर और दोस्तों का सब कुछ खत्म कर दिया पड़ोस में रहकर उन आतंकियों ने इतना समझ लिया था कि यहां अपना राज स्थापित करने के लिए पंडितों के सार तत्व उनकी आत्मा को कुचलना होगा । पंडितों के सार तत्व उनकी आत्मा को कुचलना होगा सार तत्व ज्ञानी पंडितों के देवी और देवताओं जिंदगी में पूजा करते थे ,मंदिर और मूर्तियों  जिन में वे देवी देवता  प्रतिष्ठित थे। धर्म ग्रंथ जिन्हें वे पवित्र मानते थे और उनकी बहू बेटियां जिनकी इज्जत की जान देकर भी ,वे रक्षा करना चाहते थे ।यही तो वह वजह है कि जिसके कारण आज की कश्मीर फाइल की सर्वाधिक चर्चा हो रही है ।
30 वर्षों में कश्मीरी पंडितों के दुख पर कई फिल्में बनी हैं लेकिन कभी इतनी चर्चा इतनी बहस नहीं हुई अब हो रही है तो इसमें कोई हर्ज भी नहीं है होना भी यही चाहिए ।ताकि आपको हकीकत समझ मे आऐ । 
    मै बार बार कहता हूं और हमेशा कहते रहूंगा कि अब रोने से कुछ भी हासिल नही होगा अब एक्शन मोड मे आना होगा । देश की स्थिति बहुत ही नाजुक मोड़ मे है । सोच-समझकर आगे की रणनीति बनाने की आवश्यकता है जिसमे सभी के सहयोग की भी आवश्यकता होगी ।सभी लोग तैयार भी है ।और जो तैयार नही है उन्है भी तैयार करने के बहुत से रास्ते है । ढिढोरा ना पीटे,कार्य को करे ।यही समय की पुकार है ।
   "दी कश्मीर फाइल्स" का विरोध करने वाले की भी कमी नहीं है । कश्मीरी पंडितों की वेदना से भरी और सच्चाई घटनाओं पर आधारित चली कश्मीर फाइल का समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध किया जा रहा है ।ऐसे लोगों में कुछ स्वयंभू ,सेकुलर , राजनीति का वामपंथी और स्वघोषित उदारवादी शामिल है । जो मुखर होकर कश्मीरी पंडितों द्वारा झैली मजहबी विभाषिका को चुनौती दे रहे हैं  वे फिल्म को फर्जी प्रोफोगंडा  और इस्लामफोबिया का प्रतिक बता रहे हैं। तो 3 दशक पुराने घटनाक्रम में मजहब के नाम पर हताहत हुए कश्मीरी पंडितों की संख्या बहुत सीमित या गौर करके आंक रहे हैं। वास्तव में यह लोग उस जिहादी मानसिकता का बचाव कर रहे हैं । जिसने भारत में बीते 13 वर्षों में अनगिनत स्थानीय निवासियों को मौत के घाट उतारा  है ।जबरन मनतारण किया ,उनकी महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाया। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा इस्लाम के नाम पर रक्त रंजित विभाजन करवाया और स्वतंत्रता के बाद देश में दर्जनों आतंकवादी हमलों ,सांप्रदायिक दंगों की पटकथा लिख चुके हैं । फिल्म दी कश्मीर फाइल को लेकर इस बार की बौखलाहट नई बात नहीं है । इसी जमात ने  राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु और देश की सनातन संस्कृति से वैचारिक राणा करने के नाम पर 1889 -91 में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पलायन के वस्तुनिष्ठ कारणों और उसे प्रेरित करती मानसिकता को सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बनने दिया था ।यह लो ग तब भी असहज हो गए थे जब गत भर जाती फिर से चुन-चुन कर गैर मुस्लिम और भारत पर मुस्लिमों को गोली मारकर हत्या कर रहे थे और मीडिया का बड़ा वर्ग इस पर चर्चा कर रहा था ।सच तो यह है कि फिल्म दिखा P5 इस जमात के एजेंट के अनुरूप इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें अक्टूबर 2014 को आई फिल्म हैदर की भांति ना ही प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से अलगाववादी शक्ति की मांगों को न्योयोचित ठहराया गया है ।
    इस अमानवीय दर्शन को संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने भी रेखांकित किया था ।पाकिस्तान या भारत का विभाजन लेखन में बाबा साहब ने कहा था - इस्लाम का भ्रातृत्व (भाई वाद) सार्वभौमिकता भ्रातृत्व का  सिद्धांत नहीं है । यह केवल मुसलमानों तक सीमित है ,जो बाहरी है ,उनके प्रति शत्रुता और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं है ।इस्लाम कभी भी एक सच्चे मुसलमान को भारत को अपनी मातृभूमि के रूप में अपनाने और एक हिंदू को अपने स्जन और रिश्तेदार के रूप में मानने की अनुमति नहीं दे सकता ।
   मोदी सरकार द्वारा धारा 370 -35a के संविधानिक क्षरण और कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का मार्ग प्रशस्त करने के प्रयासों के अतिरिक्त विगत 35 वर्षों में शासन अदालतों और स्वघोषित मानव अधिकार संगठनों ने कश्मीर के मूल निवासी पंडितों को वांछित न्याय दिलाने हेतु कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है । इस दिशा में फिल्म "दी कश्मीर फाईल्स "भारतीय जनमानस को यह समझने में काफी हद तक सफल हुआ है कि कश्मीरी पंडितों को घाटी में पुनः बसाने हेतु कश्मीर का काफिर -कुफ्र दर्शन से जनित ध्रणित मानसिकता और मजहबी   इकोसिस्टम से मुक्त होना कितना आवश्यक है ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन ।


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