राजनीति एक चोर सिपाही का खेल ?

राजनीति मे चोर सिपाही का खैल चल रहा है , जो किसी शतरंज मे बिछी विसात के जैसे है । खेल तो रही है दो पार्टा और आमजनता मूक दर्शक बनी उनकी चालो को देख रही है , समझ रही है और अपने आप पर रोष व्यक्त कर मातम् मना रही है । 
    भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की मार झेलती आमजनता किसी लाईलाज बिमारियों से तंगी की हालत  की मार झेलते हुऐ ना जी पा रही है और ना ही ठीक से मर भी नही पा रही है । ऐसी हालत मे अनेको लोग स्वम् तो आत्महत्या कर रहे है साथ ही क ई लोग अपने परिवार वालो के साथ सामूहिक आत्महत्या कर रहै । ऐसे प्रकरणों मे जबावदारी किस थोपी जाये । यह सरकार की जिम्मेदारी है, ईसपर सरकार को ,नही  मान० न्यायालय को आगे आकर सरकार से जबाव तलब करना चाहिए । सरकार के पास पहले से इसका एक नही अनेको उत्तर उनके घहेते अफसरो ने तैय्यार कर रखे है, वे दे देगें और बच जाऐगें । ये तो गरीबो की बातै हुई या यू भी कहा जा सकता है कि यै तो मीडियम लोगो की स्थिति है । गरीब और अमीरो लोगो की तो कहानी ही अलग है । गरीब तो हर हाल मे खुश है । सरकार उन्हे हर की सुविधाएं दे रही है और साथ मे खाने को भी दे रही है । अब हम अमीरो की बात करते है तो उनके पास तो इतना पैसा है कि उनकी सात पुस्ते कमाई ना करे तो आराम से बैठकर खा सकती है ये अमीर लोग कौन है और इनके पास इतना पैसा कहां से आया वह भी थोड़ा विस्तार से सुन लीजिए । 
     * ये अमीर लोग कैसे बने ?
     * इनके पास धन कहां से आया ?
     * अमीरो की कैटेगरी क्या होती है ?
*अमीर,भ्रष्टाचार कर अमीर बने है ।*
*इनके पास रिस्वत, भ्रष्टाचार, मिलावट, न०2 की काली कमाई से ।
अमीरो की कैटिगरी मे नेता,व सरकारी कर्मचारी, अफसर आते है जो जनता की कमाई व सरकारी योजनाओं की काली कमाई के साध साथ हर चीजो की नीलामी कर कमीशन लेते है जिसमे प्रधानमंत्री योजना,मुख्यमंत्री योजना,पार्टी फण्ड, तथा अन्य योजना के नामसे लेते है और इसके बदले उन्हें ऐजेंसी,ठेकेदारी तथा अन्य काम दिलाते है वो भी अपने ही कार्यकर्ताओं को । गांव के पंच,सरपंच, पार्षद,मेयर,विधायक, सासंद,मंत्री सबकी बोली लगती है ,खरीद-फरोख्त होती है सत्ता बनाने-तोड़ने के लिऐ । ये सब बाते पहले के ईमानदार लोग नही जानते थै किंतु आज के बेइमान लोग आज सब जानते है ।
    इसी वजय से बर्षो से चलने वाले खेल चोर सिपाही का खेल और शतरंज की विसात और उनके मोहरो की चाल से प्राय-प्राय सभी लोग जानते है । आज जमीर अथवा आत्मा की आवाज रोजाना बेचा व खरीदा जा रहा है । आज जनता भी बेबस है किसे सत्ता की बागडोर थमाए , सभी चोर है ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
आलोचक व लेखक के ये अपने स्वंम के विचार हे । यह मेरा कटु अनुभव बोल रहा है और इस लेखनी के माधम से प्रस्तुत है ।
              श्रीरामधुन


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