विपक्ष को समाप्त करना ही हमारा लक्ष्य ?

विपक्ष को समाप्त को समाप्त करना  हिटलरशाही  का एक जीता जागता उदाहरण माना जा सकता हे । इसी वजय यह सवाल आमजनता के समक्ष रखने का साहस कर रहे गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन और गहरी
नींद मे सोने वाली आम जनता को जागृत करने का प्रयास कर रहे है ?
       यह कहावत हे कि "जिस देश का
विपक्ष जितना ज्वादा मजबूत होगा वहा उतनी ही तरक्की होगा '"। और जिस देश मे सरकार का विरोधी पक्ष नही के बराबर होगा वहं की सरकार अपने मन माने ढ़ग से एक तरफ कार्य
वाही करेगी चूकि विरोध करने वाले लोग नही होगें । अतः ऐसी स्थिति मे
सरकार मे विपक्ष का होना बक्षुत. ही
ज्वादा जरुरी है ।
   अब 21वी शदि मे ये बाते समाप्त होते जा रही है । हमारे भारत देश मे भी ऐसा हो रहा है । भारत की मोदी सरकार भी ऐसा ही कर रही है ।चूंकि
भारत मे विपक्ष मे ढ़ेरो पार्टियां है जिन्है धीरे-धीरे समाप्त करने की कोशिस की जा रही है ।
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई भाजपा ने अकेले 300 से आंकड़ा पार किया और 303 सीटों पर जीत का परचम लहराने में सफल रही अन्य सहयोगी पार्टी के साथ इस जीत को और प्रचंड बना दिया एनडीएमए लोकसभा की कुल 353 सीटों पर कब्जा किया वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाला यूपीए 92 सीटों पर सिमट कर रह गया कांग्रेश के अकेले प्रदर्शन की बात करें तो काफी खींचतान के बाद पार्टी को महज 52 सीटों पर सफलता मिली भाजपा की इस बड़ी चीज के बाद भारतीय राजनीति में विपक्ष के सामने एक बार फिर अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया लता रफी लोकसभा में सरकार के सामने आधिकारिक रूप से विपक्ष का नेता नहीं होगा पिछली सरकार में भी ऐसी ही स्थिति थी।
   सदन में सरकार के सामने कई विपक्षी पार्टियां होती है लेकिन आधिकारिक तौर पर उस पार्टी को विपक्ष का नेता बनाने का मौका मिलता है जिसके पास कम से कम 10 pz10 की सिद्धि सीटें हासिल हो लेने की 541 सीटों वाली लोकसभा में विपक्ष का नेता उस पार्टी का होगा जिसके पास कम से कम 55 सीटें होंगी इस बार कांग्रेश इस आंकड़े को छू पाने में सफल नहीं रही पार्टी के पास 52 सांसद हैं और विपक्षी नेता का तमगा हासिल करने में करने से वह तीन पायदान नीचे रह गई
लोकतंत्र मे 
2014 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेसमें है 44 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी और उस बार भी सदन को विपक्ष का नेता नहीं मिल पाया था मोदी राज में न सिर्फ विपक्षी पार्टियों बल्कि विपक्ष के नेता के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है अब सवाल उठता है कि ऐसे में भारतीय लोकतंत्र किस और जाएगा विपक्ष के नेता का पद प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस के स्तर पर का समझा जाता है पिछली बार की कांग्रेश इतनी सीटें नहीं ले पाई की तकनीकी तौर पर विपक्ष के नेता का दर्जा हासिल कर पाती है इस बार भी वह यह दर्जा पाने में नाकाम रही है ऐसे में फर्क तो पड़ता है वह आवाज एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की हो सकती है वह कृपया सरकार की उदारता के कारण मिले दर्जे की नहीं हो सकती है
मजबूत विपक्ष 
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत सरकार के सामने एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी समझा जाता है विपक्ष सरकार के कार्यों और नीतियों पर सवाल उठाता है और उसे निरंकुश होने से रोकता है संसद में अगर भी तो विपक्ष कमजोर होता है तो मनमाने तरीके से सत्ता पक्ष कानून बना सकता है और सदन में किसी मुद्दे पर अच्छी पहल मजबूत विपक्ष के बिना संभव नहीं है
ऐसा क्यों हो रहा है
सॉल्वी और 17वीं लोकसभा के दौरान विपक्ष के नेता का ना होने का यह पहला या दूसरा मामला नहीं है इससे पहले पहली दूसरी और तीसरी लोकसभा के दौरान भी ऐसी स्थिति निर्मित हुई थी।
राज्यसभा में बहुमत
राज सभा में वर्तमान में 245 सांसद हैं जिनमें से 241 का चुनाव और चार सांसदों को नामित किया गया विश्लेषक के मुताबिक अगले साल भाजपा राज सभा में भी बहुमत में आ सकती है लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियां भी यही आरोप लगाती रही थी कि इस बार भाजपा अगर सरकार बनाती है तो वह ऐसे फैसले लेगी जो पहले कभी नहीं और सरकार ने ऐसा ही किया धारा संविधान अनुच्छेद 370 और 35a खत्म करने कर दी और भी ऐसी कई संशोधन की कार्रवाई है जो पूरी करनी  है सरकार के पास  स्पष्ट बहुमत नही होने के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । स्पष्ट बहुमत ना होने से  अभी अनेको कार्य रुके हुए है 
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
         श्रीरामधुन दरबार
माँ आदिशक्ति दरबार धार्मिक एवं 
    परमार्थ टूस्ट , भोपाल म०प्र०

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