आदिवासी-हरिजनो की राजनीति का अंत कब होगा ?
सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जहा पर धर्म और जातिसमिकरण की राजनीति वर्षो से चल रही है आखिरकार यह खेल कब समाप्त होगा और इसे कौन करेगा ? जब तक सरकार इसे बढ़ावा देते रहेगी तब तक यह समाप्त होने से रही ! हरिजन/आदिवासी का आरक्षण समाप्त नही हुआ तो पिछड़ा वर्ग का आरक्षण आ गया फिर उसके बाद महिला आरक्षण आ गया । शेष जो बचा वह भी अपने आप आरक्षण मै आ गया । बचे कुचे लोग ही शासन और सरकार का संचालन कर राज्य कर रहे है । इस समीकरण को आप क्या कहेगे ।
इस जाति समीकरण मे गरीब वर्ग का आरक्षण कहां है ? यह वर्ग बहुसंख्यक है अब इनको अपने पक्ष मे लेने के लिए सरकार ने सोचा कि इन्हें भी कुछ ना कुछ मिलना चाहिए ताकि अन्य जातियो की तरह इनको वोटो का गुलाम कैसे बनाया जाये तो उन्होने ताश के वावन पत्तो मे से हूकुम का पत्ता निकाला फेंक दिया । वह तुरुप का इक्का क्या था तो जनाब सुनिऐ वह है मुफ्त का राशन बांटना शुरु कर दिया । बी पी एल सर्वे कराकर बी पी एल राशनकार्ड बनवाऐ उसमे मे भी कैटेगिरी बना दी :-
(1) नीला बीपीएल राशन कार्ड
(2) अति गरीबी बीपीएल कार्ड
अब इन कार्ड धारको को सरकार ने बहुत सारी सुविधाएं दी तो यह एक धन्धा बन गया और बहुत से लोगो ने इसका लाभ उठाया । अब यहां ऐसा नही है कि सरकार को इस गोरखधंधे का पता ना हो सब पता होने के बाद भी एक्शन ना लेना मजबूरी बनी रही और आज तक बनी हुई है ।
सरकार का यह आरक्षण आम जनता को बड़ा मंहगा पड़ा जिसके कारण आज मंहगाई और बेरोजगार की मार पूरा देश भुगत रहा है । आमजनता आदिवासी/ हरिजनो, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग, महिला वर्ग आरक्षण से कही ज्यादा मंहगा पड़ा यह आरक्षण ।
आरक्षण का खेल से अभी भी सरकार का पेट नही भरा तो एक ओर आरक्षण लाने की तैय्यारी कर रही है । यह आरक्षण सभी आरक्षणो को मात् दे सकता है ।इस आरक्षण के बारे मे सभी बुध्दिजीवी वर्ग को पता है कि वह कोन सा आरक्षण है किंतु सब चुप इसलिए बैठे है कि खमोशी ही उनका सबसै बड़ा हथियार है । सरकार को बोलनै से , लिखित सूचना, आवेदन देने से कोई फर्क नही पड़ेगा वो तो वही करेगी जो उसे करना है । कोई भी सरकार हो वोट मांगते समय पैर पड़ती है औल बाद मै पैर पड़वाती है ।
सरकार कुछ भी कर सकती है और करवा सकती हे। अभी भोपाल में एक साथ तीन बड़े शिविर चल रहे हैं इनमें से तो मैं दुनिया भर की महिलाएं और पुरुष कार्यकर्ता और स्वयंसेवक जुटे हैं संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के आयोजनों का केंद्र बना मध्य भारत प्रांत राज राष्ट्रीय सेवक संघ और उसके अनुषंगी संगठन के आयोजन की गतिविधियों का केंद्र मध्य भारत प्राप्त हो गया है साल के शुरुआती 6 महीने 6 महीने की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर की छह बैठकर वर्ग और मंथन चिंतन शिविर मध्य भारत के प्रमुख शहर शहरों भोपाल ग्वालियर और नर्मदा पुरम में हो चुके हैं मुख्य नागपुर और दिल्ली के बाद सबसे अधिक गतिविधियां मध्य भारत प्रांत में हो रही हैं अखिल भारतीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य मनमोहन वैद्य समेत कई पदाधिकारियों का केंद्र मध्य भारत का भोपाल रहा है मध्य भारत के प्रांत के पदाधिकारी और स्वयंसेवक आयोजन सफल बनाने के लिए सक्रिय रहते हैं संगठन के पदाधिकारियों की ओर से समर्थन मिलता है मध्य भारत प्रांत और पहुंच की दृष्टि से सुविधाजनक राज्यों की श्रेणी में आता है तन की प्रेरणा से दुनिया के कई देशों में सेवा कार्य करने वाले शिक्षा पर राजधानी में 21 सदस्य प्रशिक्षण वर्ग चल रहा है गायत्री मंदिर में अनेक स्थानों पर समाज के विभिन्न वर्गों ने स्वागत किया प्रार्थना के साथ समापन हुआ।
आमजनता परेशान है फिर भी उसे विश्वास है कि एक ना एक दिन मोदी सरकार उनकी फरियाद जरुर सुनेगी और उनके अच्छे दिन जरुर आऐगे । लेखक-आलोचक का भी यह मानना है कि श्री मोदी अपने जीवन
काल समाप्त होनै से पहले हर व्यक्ति परिवार के खाते मे वो पद्रह लाख रु० जरुर डालेगै जिसका सब्ज बाग उन्होने दिखलाया है ।अनेको लोग है जो इसी विश्वास के साथ जी रहे है और ना चाहते हुऐ उनके नाम से वोटिंग कर रहे है । अब देखना है उनके विश्वास का अंत कैसे और कब तक होगा ।
"आलोचना करने वाले यदि किसी के पक्ष मे यदि बोलते है तो समझिये कि उसमे कुछ तो सच्चाई छुपी हे ।"
आलोचना-आलोचक का जीवन हमेशा कष्टमय होता है चूंकि वे हमेशा गलती निकालते है और इस क्रिया मे छोटे-बड़े के साथ साथ अमीर -गरीब,राजा-रंक का भेदभाव नही करते है । इस प्रकार से वे सभी दुश्मन बने रहते है और सच बाते सबको कड़वी लगती है ।
आरक्षण का मुद्दा जब तक चलेगा जब तक राजनीति का खेल चलता रहेगा ।
दलित विरोधी मानसिकता कभी समाप्त होने वाली नहीं है उत्तर भारत के तमाम राज्यों में आज भी दलित प्रताड़ना अलग अलग स्वरूप में समाज की बीमार मनोदशा बताती है ताजा उदाहरण ऐसे ही है एक राज्य में एक राज्य है जहां उच्च जाति के छात्रों ने अनुसूचित जाति के रसोइयों की के हाथ बने भोजन का विरोध किया था क्या भारतीय समाज इतना बीमार है कि संविधान और कानून के 70 साल पुराने अनेक सख्त प्रावधानों के बावजूद इससे बच नहीं पा रहे हैं यह सच है कि हजारों साल के सामाजिक दंगों सामाजिक दोषों को केवल कानून में ही कानून से ही नहीं बदल सकते इसका मूल कारण यह है कि जो कानून का पालन करवाएगा यह भी तो बीमार समाज की ही उपज है दूसरा समाज में जन्म के आधार पर स्तरीकरण तभी खत्म होगा जब उसकी विश्वसनीय नियामक संस्थाएं जैसे व्यापक और प्रतिबद्ध समाज सेवी संगठन धर्मोदय गांव के संभ्रांत लोग और शिक्षक समाज आगे आए आए एक दलित भर के दूल्हे बारात में जब घोड़ी पर चढ़कर किसी उच्च जाति वाले आबादी से निकलता है तो उसे जबरदस्त विरोध और कई बार गोली का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि धर्मपाल धारित गठन संगठन या बात नहीं समझ पाते कि समाज में जन्मे के आधार पर तिरस्कृत करने से एक वर्ग का उत्थान ना होना पूरे समाज के लिए हजारों सालों से नुकसान दे रहा है हमें यह हितिती बदलनी चाहिए।
अभी हाल में ही तो ऐसी घटनाएं घटित हुई है जो जातिवाद के नाम पर उछाली गई है और मीडिया ने इसे और भी बढ़ा चढ़ाकर बताने का काम किया है एक खबर यह है कि महाराष्ट्र के नासिक में एक आदिवासी छात्रा के आरोप लगाया है कि पीरियड्स के दिनों की वजह से पुरुष शिक्षक ने उसे और अन्य लड़कियों को स्कूल में वृक्षारोपण अभियान के तहत पेड़ लगाने से रोक दिया शिक्षक का कहना है कि अगर पीरियड वाली लड़कियां पेड़ लगाती है तो वह नहीं उग आएंगे और जल जाएंगे मामला सामने आने के बाद आदिवासी विकास विभाग ने जांच के आदेश दिए आरोप लगाने वाली लड़की प्रेमिका स्वर ब्लॉक के दे गांव में लड़कियों के लिए संचालित माध्यमिक और उच्च माध्यमिक आवासीय स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा है इस मामले में पर अतिरिक्त आयुक्त संदीप गोले ने कहा मामले की जांच की जा रही है क्या ऐसी मानसिकता समाज के लिए अच्छा संदेश प्रसारित कर रही है इसका फैसला आमजन को ही करना है मामले की जांच का क्या होगा क्या नहीं होगा ? यह प्रश्न बाद का प्रश्न है । किंतु सवाल तो अपने आप में अपनी जगह है ।दूसरा प्रकरण यह है कि माननीय राष्ट्रपति को जातिवाद के नाम से समाचार पत्रों में एक छोटे से शब्द के कारण कितना मानसिक प्रताड़ना दी गई और उन्है बार बार अहसास दिलाया कि वे आदिवासी है , दुखहारी है ,गरीब है फिर भी सरकार उन्हें सम्मान दे रही है । जबकि ऐसा कुछ नही है । ये सब राजनीति का एक हिस्सा है । जबकि इस पर कोई सवाल ही नहीं उठता है कि इस तरह के राजनीति आदिवासी हरिजन के लिए किया जाऐ ।
मध्यप्रदेश भोपाल क्षेत्र में एक ऐसा एक धार्मिक एवं सामाजिक ट्रस्ट है जो गांधी -मोदी विचारक हैं । इसके सभी सदस्य आदिवासी व हरिजन है और विगत 17 वर्षों से जनहित में अनेको निशुल्क सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और शासन से अपने अस्तित्व की मांग कर रहे हैं किंतु शिवराज सरकार ने इस पर कोई ध्यान ना देते हुए कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं । प्रकरण तीन-चार साल से सीएम हेल्पलाइन और जिला कलेक्ट्रेट भोपाल में विचाराधीन है और सब ठीक व नियमानुसार होने के वावजूद भी नये नये नियम बतला कर समाप्त करने की जुगत मे लगा है प्रशासन । अब ऐसे में आप क्या कहेंगे कि आदिवासी हरिजन को सरकार महत्व दे रही है अथवा नहीं ?
राजनीति के क्षेत्र में जीत हार तो लगी रहती है । हर 5 साल बाद आपको आम जनता को जवाब देना ही पड़ेगा कि आपने इन आदिवासी हरिजनों आरक्षण वर्गों के लोगों के साथ क्या किया किया है ?
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