अपनो से उम्मीद नही,सपनो से खतरा!

दुनियाभर के बुजुर्ग आज अपने ही लोगो से लोगो से परेशान है । सरकार भी कथनी और करनी की बाते करते करते थक चुकी है ।आज 21वी शदि का इंसान सब समझ रहा है किन्तु कुछ नही कर पा रहा है जो धीरे धीरे ज्वालामुखी
का रुप धारण कर रहा है ।
     अब ऐसे खबरे प्रकाशित होने लगी है कि लोग जिते जी अपना स्वयं का पिंडदान कर रहे है ।
    आपने पितरों का श्राद्ध करने के बारे में सुना होगा लेकिन वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्ग पित्र पक्ष में खुद ही अपना पिंड दान कर रहे हैं संतान के तिरस्कार ने उन्हें इतना तोड़ दिया है कि वह मरने के बाद भी उन पर बोझ नहीं बनना चाहते हैं खुद का पैदा करने वाले बुजुर्गों का कहना है कि बार-बार के ट्रेस कार और अपराध अपमान से बेहतर था वृद्ध आश्रम वृद्ध आश्रम के बुजुर्गों को यह उम्मीद थी कि कोरोनावायरस मौत के भय को चूस करने वाली संतान उन्हें वृद्ध आश्रम में लेने आई थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ संतान के ने कभी की सुध नहीं ली अपने बच्चों से ना जा अन्य राज्यों में शामिल लोगों ने अपना पिंडदान खुद किया बुजुर्गों का कहना है कि बेहतर शिक्षा और उनकी शादी में अपना सब कुछ देने के बाद भी बच्चों से उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी संतान ने उन्हें अपनी जिंदगी में से निकाल दिया उनकी उपेक्षा उन्हें वृद्ध आश्रम लेकर आ गई । 
   सपने देखना सामान्य बात है कुछ लोगों को अक्सर बुरे सपने आते हैं इसके कई बार वे नींद से अचानक जाग जाते हैं 35 से 64 साल की उम्र तक में सप्ताह में 4 दिन बुरे सपने आने से याददाश्त जाने का जोखिम बढ़ जाता है ।
    रास्ता खाली में फार्मिंग यूनिवर्सिटी के एक शोध में सामने आया है कि बुरे सपने से गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होने की आशंका बढ़ जाती है खास बात यह है कि 17 से ज्यादा उम्र के लोगों को यह महज पांच पीसीपी ही बुरे सपने आते हैं वही 41 सीसी महिलाओं और 50 नौ इसी पुरुषों पर पूरे सपने का असर पड़ता है अध्ययन से पता चला है कि यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक विकास है जो अपने दैनिक जीवन के कामकाज को प्रभावित करता है इससे लोगों को अंगों में कंपन की समस्या होती है शोध में पाया गया है कि जिन लोगों ने सप्ताह में कम से कम एक बार पूरा सपना देखा है उनमें अगले एक दशक में बुरे सपने देखने वालों के मुकाबले 4 गुना अधिक हालचाल जाने का जोखिम होता है तो वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों में बुरे सपने देखे जाने के बाद उन्हें याददाश्त जाने का निदान होने की संभावना दुबली होती है इस शोध में 600 से अधिक मध्यम आयु वर्ग के वयस्क और 79 से अधिक उम्र के 2000 लोगों को शामिल किया गया था बीच में शोध के अनुसार युवावस्था व मध्यम आयु के दौरान महिलाओं में बुरे सपने अधिक आम है लेकिन पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ ही बुरे सपने आने का खतरा बढ़ जाता है ।
    अब ऐसे में देखने को यह भी मिलता है कि कुछ बुजुर्ग लोगों ने जो पढ़े लिखे हैं और जो सरकार की मदद भी करना चाहते हैं और यह मदद भी उस समय करना चाहते हैं जब वे मृत्यु को वरण कर लेते हैं तभी ऐसे लोग अपने शरीर को सरकार को दान कर देते हैं किंतु अभी हाल ही में एक ऐसा प्रकरण आया है कि बुजुर्ग ने अपना शरीर दान में दे तो दिया लेकिन सरकार उसे लेने से इनकार करती रही और कागजों की फाइल का अड़ंगा लगाकर परेशान करते रहे आप ऐसे में सरकार का उत्तर दायित्व बनता है कि वह बुजुर्गों की इस प्रकार से परेशान ना करें क्योंकि सरकार बुजुर्गों को जीते जी तो परेशान कर ही रही है और मरने के बाद ही फिर नहीं छोड़ रही है और दिखावे के लिए बड़े-बड़े सपने आप लोगों को दिखा रही है यह सरकार की नीति गलत है और हाथी के दांत जैसी स्थिति लगती है ऐसे में सभी आम नागरिकों को सूचित किया जाता है कि वह अपना देह दान करते समय ठीक से विचार-विमर्श कर दे दान करें यह सब परेशानी बुजुर्गों के साथ ही क्यों रही क्यों हो रही है कृपया सरकार इश्क इस पर विशेष गंभीरतापूर्वक कार्रवाई करने के आदेश प्रदान करें जो कि आज तो ठीक है कल सभी को बुजुर्गों की लाइन में खड़े होकर वही भुगतना है जो आज वह बुजुर्ग भुगत रहे हैं।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन जो लेखक व आलोचक है स्वयं इस बात के प्रत्यक्षदर्शी औ भुक्तभोगी है जिनकी बाते ना तो सरकार सुन रही है और ना ही आम नागरिक समझ समझ रहे है । जो आज नही समझ रहे है ,उन्हे आगे चलकर इसी प्रक्रिया से गुजरना होगा ।तब उन्हे पता चलेगा । समय निकल चुका होगा । यदि देश को बचाना है तो बुजुर्गों को बचाना ही होगा और युवा पीढी को समझना ही होगा ।
      गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन

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