विपक्ष मे एकता परम आवश्यक हैं !

वर्तमान समय मे पूरे विश्व की राजनीति मे एक भूचाल सा मचा
हुआ है । और यह भूचाल देश मे विपक्ष पार्टी का मजबूत ना होना ।अतः ऐसी स्थिति मे विपक्षी पार्टियों के लोगो को अपनी आपसी
वैमनस्यता को भूलकर एकता कायम करनी चाहिए । ऐसा करने आके लिऐ  सत्य की राह ही उन्है अपनी मंजिल पर पहुंचने का रास्ता
दिखलाएगी । विपक्ष को चुनाव जीतने के लिऐ सब कुछ दांव लगा 
देना चाहिए कुछ लोग ऐसा भी करते है । भारत के आगामी चुनाव जीतने के लिए त्याग की भावना होना चाहिए तभी सफलता मिल सकती है । सत्तारूढ़ पार्टी के पास  बस एक ही काम है कि वह अपने आप मे एक जुट होकर अपनी शक्ति का परिक्षण करे ।
    चुनाव नजदीक आते ही केंद्र ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ एकजुटता के विपक्षी दलों के प्रयास शुरू हो जाते हैं । पिछले 8 साल में दर्जनों बार कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों में एकजुटता के जब-जब प्रयास की है तब तब प्रधानमंत्री के चेहरे के आगे बड़ ही नहीं पाई। कारण भी साफ है कि जो भी दल एकता के प्रयासों में भागीदार बनना चाहता है वह अपने नेता को संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रुप में देखना चाहता है । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से नई दिल्ली में हुई मुलाकात होगी । विपक्ष की एकता को लेकर बनने वाली रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है। एकता के प्रयासों की तस्वीर का दूसरा पहलू हरियाणा में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती पर आयोजित रैली में पहुंचे नेताओं से साफ नजर आता है। इस रैली में 10 राज्यों में विपक्षी दलों के 17 बड़े नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था आमंत्रित ममता बनर्जी ,उद्धव ठाकरे व फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने दिल्ली से दूरी बनाकर रखी । ऐसा भी नहीं है कि एकता के प्रयासों को इस तरह की रैलियों में नेताओं के आने या ना आने से जोड़ कर देखा जाए । लेकिन अब तक के अनुभव बताते हैं कि विपक्षी एकता के शक्ति परीक्षण का माध्यम भी होती रही है। काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार लालू यादव आश्वस्त नजर आए कि वे देश में गैर भाजपा दलों को एकजुट करने में जुटे हैं । सोनिया गांधी से करें , अध्यक्ष के चुनाव के बाद उनकी फिर से मुलाकात होगी देश में मजबूत विपक्ष का होना भी चाहिए पर जब नेताओं के निजी स्वार्थ व महत्वकक्षायें आड़े आती है ।  ऐसे प्रयास शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाते हैं । पद यात्रा के जरिए राहुल गांधी को पीएम के चेहरे के रूप में पेश करने  में जुटी  है। कांग्रेस के साथ खुद नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल के सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा शरद पवार के नाम की प्रधानमंत्री के लिए विपक्षी की ओर से चलते हैं पर कोई राजा सहमति जैसे पहले नहीं हुई अब हो पाएगी इसके आसार कम नजर आते हैं । ऐसा नहीं है कि विपक्षी को एकजुट कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती । केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा भी 2 सीटों से बढ़कर अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में आई है। विपक्ष एकता के लिए प्रयास तब  जाकर ही ज्यादा कार कार हो सकेंगे जब अपने हित के बजाय यह दल जनहित की बात करेंगे ।
    अतः ऐसी स्थिति मे सभी विपक्षियों को एकजुटता दिखाने की जरुरत है नही तो एक ही विपक्ष
पार्टी हो किन्तु वह मजबूत तो हो ।विपक्ष के पास एक ही मुद्दा- बेरोजगारी, मंहगाई और भ्रष्टाचार का होना चाहिए  ।
    गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन

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