नफरत के बीज बढ़ने से पहले ही काटना होगा !
समूचा विश्व एक अफरा-तफरी और भय के खोफ के साये मे जी रहा है । आज इंसानो के
आज कुछ लोगों के द्वारा समाज और जाति के बीच जो नफरत के बीज बोए जा रहे हैं या फिर मन कर पूरे देश और संस्कृति के लिए खतरा बन जाएंगे आने वाली पीढ़ी नफरत के वृक्ष के कांटों की चुभन को महसूस करेगी और भाईचारे की बातों को केवल किताबों और फिल्मों में ही देख पाएगी हमारे देश की पहचान सर्व धर्म समभाव है
नफरत के बीज बैऐ जा रहे हैं इसमें कोई शक नहीं है कि कालंतर में एक वृक्ष में परिवर्तित हो जाएगी। नफरत के पेड़ से नफरत के ही फल लगेगें ।
दुनिया का कोई भी मध्य समाज भारत और हिंसा की जायज नहीं मानता है लेकिन यह भी सच है कि नफरत खत्म हुई है और ना ही हिंसा खत्म हुई है क्षण भर के लिए भी नियंत्रण खत्म हुआ तो दुर्घटना है सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर जिस तरह नफरत फैलाई जा रही है केंद्र सरकार को मूक दर्शक नहीं बने रहना चाहिए यहां यह स्पष्ट संदेश है कि आप केंद्र को इस दिशा में हो कदम उठाने होंगे दरअसल न्यूज़ चैनल ने पत्रकारिता का इतना अवमूल्यन कर दिया है कि अब टीवी टैंकरों को मजाक का पात्र बना दिया है इन्हें किसी ना किसी दर्द की विचारधारा से जुड़ा माना जाने लगा है कुछ गिने-चुने धीर गंभीर पत्रकार ही सरोकार वादी पत्रिका पत्रकारिता करते नजर आ रहे हैं।
शीर्ष अदालत का ऑपरेशन ठीक ही है कि टीवी और सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा नफरत फैलाई जा रही है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है के नाम पर इस उच्च श्रृंखला को तभी महसूस कर रहे हैं पर इस पर लागू लगाम के दिए इसी से आगे आना चाहिए इस पर विवाद होता रहा है बेहतर तो यही होता है कि अखबारों की तरह न्यूज़ चैनल नो के लिए एक स्वायत्तशासी नियामक तंत्र बनाया जाता लेकिन कई बार ऐसी कोशिशों का को पलीता लग चुका है टीवी चैनलों की एक निजी संस्था न्यूज़ ब्रॉडकास्टर स्टैंडर्ड अथॉरिटी ने कुछ प्रयास जरूर किए हैं पर बेबी ढाक के तीन पात ही साबित हुए पिछले दिनों बांबे हाईकोर्ट में एनबीए है ने बताया था कि कई शिकायतकर्ता पर कार्रवाई कर उस चैनल चैनलों पर अधिकतम ₹100000 तक का अर्थदंड भी लगाया गया है लेकिन वैधानिक अधिकारों के अभाव में किसी चैनल को एंड बी ए एस ए का फैसला मानने को बाध्य नहीं किया जा सकता उदाहरण के लिए रिपब्लिक टीवी ने एन बी एस ए के निर्देशों को मानने से इंकार कर सकता से अपनी संपत्ति समाप्त कर दी और ऐसे ही नहीं सकता बना ली
दरअसल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार या नहीं चाहेंगे कि किसी समाचार माध्यम को सरकार नियंत्रित करें सरकार के मीडिया मंचों को नियंत्रित करने के प्रयास विवाद को ही जन्म देंगे पर सुप्रीम कोर्ट ने के सरकार को नोटिस का मतलब यही है कि नफरत फैलाने वाले नफरत फैलाने का कारोबार हदें पार करने लगा है सरकार ही मीडिया को नियंत्रित करें यह लोकतंत्र के लिए उचित नहीं होगा बेहतर यह होगा कि टीवी या सोशल मीडिया के लिए भी वैज्ञानिक शक्तियों से लैस स्वतंत्र नियामक संस्था का गठन किया जाए ।
अब ऐसी स्थिति मे सरकार तथा मान० न्यायालय के साथ साथ देश के देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी
से अनुरोध है कि इस संबंध मे कुछ करे ।
लेखक-आलोचक-काउसंलर
Comments
Post a Comment