अफसरशाही, राजनेता और मीडिया !

आज भारत मे सिर्फ तीन ही चीजे चल रही है वह है देश मे अफसरशाही ,राजनेता और मीडिया तीनो मिलकर देश को चला रहे है । आवाम को कठपुतलियों की तरह नचा रहे  है और हम सब नांच रहे है। हम इन तीनो के गुलाम हो चुके है । अग्रेजो की गुलामी से आजाद हो चुके है तो अब इनकी गुलामी कर रहे है। इनके पास सत्ता है , सत्ता को चलानै वाले लोग और प्रचार-प्रसार के लिऐ मीडिया है ।
       इन सब के संचालन के लिऐ कानून व्यवस्था ही रह जाती है जिसको भी दो भागो मे विभक्त किया है पुलिस- सेना जो इन्ही के पास मे है इन्ही के अधीन है । अब रह जाती है तो न्यायपालिका का अहम् महत्वपूर्ण मान० न्यायालय  जो पूर्णरूपेण स्वतंत्र है। अब इसमे दखलंदाजी की जाने लगी है अब सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव भरी टिप्पणियां और कार्यवाही से विवाद की पैदा होती जा रही है :-
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने
    मंगलवार को कहा है कि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिंजिजू ने कॉलेजियम मामले में न्यायपालिका और सरकार के बीच मौजूदा तनाव पर टिप्पणी कर लक्ष्मणरेखा लागी है साल में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि यदि कानून मंत्री यह मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को एक असंवैधानिक कानून को देखते हुए अपने हाथ खड़े कर देने चाहिए और उस कानून में संशोधन के लिए सरकार की उदारता पर भरोसा करना चाहिए तो वह गलत है ।

गौरतलब है कि सरकार की ओर से अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए कहा था इस पर श्री जाजू ने कहा था कि कॉलेज- नियम के जरिए न्यायाधीश की नियुक्ति की इस तरह की जांच की जा सकती है । सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए कहा था इस पर रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम के जरिए न्यायाधीश की नियुक्ति की इस तरह की जांच की जा सकती है सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के मुद्दे पर तालव्य ने कहा कि मेरी राय में नेशनल ज्यूडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन का निर्णय टूटी पूर्ण है उन्होंने कहा कि मैं इस दावे से ऐसा मत हूं की संस्थागत प्रक्रिया में न्यायाधीशों की नियुक्ति में राजनीतिक कार्यपालिका की भूमिका भूमिका नहीं होना चाहिए ।
संसद पुनर्विचार करें-
     वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुझाव दिया है कि संसद न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ चयन प्रक्रिया समिति की संरचना पर पुनर्विचार करें न्यायाधीश सार्वजनिक रूप से नियुक्तियों या तबादलों पर मतभेद प्रदर्शित करते हैं तो उनका सम्मान कम होता है उन्होंने एनजेएसी को एक से अधिक प्रतिनिधि निकाय के रूप में डिजाइन करने का सुझाव दिया है ।
     मान० न्यायालय हर क्षेत्र मे स्वतंत्र है तभी तो लोग उस पर विश्वास करते है ।यह अमीरो के लिऐ है गरीबो के लिऐ नही ? मतभेद और विवाद कभी भी नही रुक सकते ,होते रहेंगे, देश चलते रहेगा ,लोग परेशान होते रहेगे।बढ़ती आबादी, महगांई और बेरोजगारी देश को निगल रही है और हम कुछ नही कर पा रहे है  चूंकि हमारे हाथ मे कुछ नही है।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-काउंसलर
श्रीरामधुन

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