माँ-बाप से बुजुर्ग दादा-दादी,नाना-नानी बेहत्तर होते है !

 माँ-बाप से बेहत्तर परवरिश देने वाले बुजुर्ग दादा-दादी, नाना-नानी होते है यह शौधकर्ता बतलाते है । वैसे भी हकीकत मे यह बात सिध्द हो चुकी है । विश्व के अनेको देशो ने इस पर रिसर्च कर आमजनता के समक्ष प्रस्तुत किया है । जिन बच्चों को दादा दादी नाना नानी का प्यार मिला होता है वह बड़े होकर संस्कारवान समझदार और आत्मविश्वास ही होते हैं ।
अब भारत समेत दुनिया भर में बच्चों को दादा-दादी ओ का ज्यादा साथ मिल रहा है इतिहास में पहली बार बच्चों के अनुपात में दादा धातुओं की संख्या सबसे ज्यादा है 1960 के मुकाबले में औसत उम्र इंकावन 51 से बढ़कर 72 हो गई है जबकि बच्चों की जन्म दर 5 से घटकर 2.4 हो गई है हालांकि हर देश में और समाज में यह दर अलग-अलग है । जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोग्राफिक रिसर्च के दिए हुए अल बुर्ज गुट यह परिवार के बच्चों को अरे बताते हैं दुनिया में इस वक्त 150 करोड़ बुजुर्ग है यह परिवार के बच्चों को बेहतर परवरिश कि नहीं दे रहे बल्कि एक और क्रांति की वजह बन रहे हैं इससे महिलाओं की वर्क और में हिस्सेदारी बढ़ रही है बच्चों की परवरिश में दादा धातुओ की मदद से महिलाओं पर पेरेंटिंग की जिम्मेदारी कम हुई है और वह घर से बाहर काम करने को प्रोत्साहित हुई है अमेजन की मधुली की खन्ना और तीन आई थी कि दिव्या पांडे अपने शोध में बताती हैं कि भारत में साल के ना रहने पर 10% लोगों को नौकरी छोड़नी पड़ती है दरअसल भारत में यह दादा नाना नानी जाने अनजाने में युवा महिलाओं को तरक्की के अवसर मुहैया कराने में मददगार साबित हो रहे हैं इंटर अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक के माय गोयल ताला मत के अध्ययन बताते हैं कि दादा दादी के ना रहने पर मेक्सिको में 27% महिलाओं को नौकरी छोड़नी पड़ी है ब्राजील में दादा-दादी बच्चों की देखभाल करते हैं तो पलायन कम होता है ।
       ** दुनिया के विकसित देशों में शुमार होने के बावजूद जापान अपने जीवन मूल्यों के लिए जाना जाता रहा है बड़ा हो या छोटा हो एक दूसरे को सम्मान और उनका ख्याल रखना यहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है लेकिन ऐसा लगता है कि जापान के मूल्य बदल रहे हैं बुढ़ापा जापान की सबसे बड़ी चुनौती तो है ही लेकिन इस बीच अमेरिका की यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर यूके नारी ताने जापानी बुजुर्गों की सामूहिक आत्महत्या की बात छेड़ कर समाज को नया रूप दिखाया है हालांकि विवाद के बाद वे सफाई देते हैं कि सामूहिक आत्महत्या एक उपमा भरा है इसका मतलब समाज के हर हिस्से में बुजुर्गों को हटाकर युवाओं को लाना है वे कहते हैं जापान में जन्म दर घटी है बढ़ती बुजुर्ग आबादी को पेंशन पर देश को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है विकसित देशों में जापान सबसे ज्यादा कर्ज में डूबा हुआ है जापानी मुद्रा एंड निचले स्तर पर चल रही है जापान की राजधानी और कारोबार में बुजुर्गों का कब्जा है उन्हें हटाकर युवाओं के हाथ में बागडोर देनी होगी यूके के विचार जापान ही नहीं यूरोप और अमेरिका में टीवी शो की बहस का हिस्सा बन गए हैं यह सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जापान में कुछ लोग इसके विरोध में तो कुछ इसके समर्थन में आ गए हैं कुछ युवा मानते हैं कि बुजुर्गों को ज्यादा सम्मान देने वाले समाज की वजह से उनका देश कई परेशानियों में गिर गया है यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो के समाजशास्त्री यूके हौंडा कहते हैं कि ऐसे विचार नफरत पैदा करेंगे जापानी पत्रकार मनसा की कविता कहते हैं यह गैर जिम्मेदार विचार हैं पोते को लगने लगेगा कि दादा-दादी उसकी परेशानी की वजह है इसलिए उन्हें मार देना चाहते हैं ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-काउसंलर
"श्रीरामधुन"

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