जातिवाद के नाम पर चल रही वोटो की राजनीति !
जातिमतभेद के नाम से वोटो की राजनीति जो चल रही है वह हर किसी की समझ से परे है ।इस खेल
के खिलाड़ी अपने आप ज्यादा समझदा,होशियार समझता है किंतु
है नही । चूंकि 21वी शदी मे जीने वाला बुध्दिजीवी वर्ग सब समझ रहा है । जातिमतभेद आज से नही वर्षो से चलता आ रहा है जो शहरो से कम और गांवो मे ज्यादा है अब तो धीरे-धीरे वहां भी समाप्त होती जा रही है । जातिवाद धीरे -धीरे समाप्त होते हुऐ हर जातियो के समूह मे बंट गया । यहां पर भी जातिवाद का असर हिन्दु वर्ग मे कुछ ज्यादा ही शुरू से चल रहा है और अभी भी चल रहा है वो भी चरम सीमा पर ।
भारत में जाति व्यवस्था जन्मदिन हिरण होते जा रही है परंतु राजनेता जातिवाद जाति का दोहन करने में अग्रसर हैं यह एक विडंबना है कि जातिवाद जाति व्यवस्था में परिवर्तन के बावजूद जाति कायम धर्म और जाति की आड़ में वोट बैंक की राजनीति को पनपने ऐसे हमारे प्रजातंत्र को गहरा आघात पहुंचाया जा रहा है स्वतंत्रता के बाद भी हमारे सीकर ने जाति का फूल का प्रहार किया परंतु आज इस बार तो दूर की बात है जातिवाद को फुल कर प्रोत्साहित किया जा रहा है
वैदिक काल में वर्ण विभाजन किया जाता था जिससे वर्ण व्यवस्था कहा जाता था यह जातिगत ना हो पर पूर्ण एवं कर्म पर आधारित था समाज चार वर्णों में विभाजित था ब्राह्मण धार्मिक तथा वेदों से जुड़े कार्य करते थे छत्रिय को देश की रक्षा तथा प्रशासन से जुड़े कार्य का दायित्व था कृषि और व्यापार से जुड़े कार्य करते थे तथा शूद्रों को इन तीनों वर्णों की चाकरी करनी पड़ती थी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में सबसे बड़ा है कि उनका निर्धारण व्यवसाय से होता था जबकि जाति का निषेचन होता था इस प्रकार जाति प्रथा भ्रष्ट होती गई
भारत में जाति और राजनीति में आफत संबंध को समझने के लिए चार प्रमुख बिंदुओं को समझना आवश्यक है भारत में सामाजिक व्यवस्था का संगठन की जाति के आधार पर हुआ लोकतांत्रिक समाज में राजनीतिक प्रक्रिया जातीय तनाव को इस प्रकार प्रयोग में लाती है भारतीय राजनीति सदैव जाति के इर्द-गिर्द घूमती है वर्तमान में जाति विशेष का संगठन ज्यादा राजनीति में भाग ले रही है
विधान के अनुसार देश में प्रजातंत्र की स्थापना को आदर्श राज्य व्यवस्था माना गया है सामाजिक पार्टियां संतुलन के नाम पर जातिवाद का पैंतरा अपनाने लगी है जो जातिवाद को बढ़ावा देगा । सभी जातियों का प्रतिशत निकालकर वोटिंग कीजिए हर पार्टी व्यवस्था कर रही है हमारा प्रश्न यहां पर यह नहीं है कि हम जातिवाद को लेकर लेखन कार्य कर रहे हैं हम तो उस विवाद वाद विवाद और प्रथा की बात कर रहे हैं जो जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और हिंदू वर्ग के लोग ही आपस में एक दूसरे के ऊपर जाति को लेकर जो छींटाकशी आपसी मतभेद पैदा कर रहे हैं उन समाज सुधारकों को सुधारना है ऐसी इस बाबत लेखन कार्य किया जा रहा है ।
हिंदुओं में अनेक जाती प्रजाति के लोग हैं जो अपने ही समाज को गुमराह करने के लिए राजनीति से जोड़ रहे हैं और उसको एक धंधा व्यवसाय बना दिया है ऐसे लोगों के प्रति हमें ने जागरूकता का अभियान छेड़ा है वोटिंग और राजनीति दोनों अलग-अलग देते हैं किंतु व्यवसाय वोटों का है जो उत्तम नहीं लगता है क्योंकि इन जातियों के प्रमुख जो भी अध्यक्ष सचिव बने हैं वह अपना धंधा व्यवसाय कर रहे हैं और सामाजिक राजनीतिक पार्टियों को गुमराह कर पैसे हड़पने का कार्य कर रहे हैं ऐसे बिचौलियों से हमें सावधान रहने की आवश्यकता है वोट देना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है हम जिसे चाहे उसे थे किंतु किसी के बहकावे में आकर वोटिंग नहीं करेंगे चाहे वह समाज का मुखिया हो या अन्य समाज का मुखिया हो पोर्टिंग तो हमें अपने ही विवेक से करना है जब यह बातें आम पब्लिक आम जनता समझ जाएगी तो अपने आप जातिवाद समाप्त हो जाएगा जिस जाति बात को लेकर वर्तमान समय में एक भूचाल आया है जातिवाद तो कब का खत्म हो चुका है बस अभी कुछ विशेष जातियों में कुछ विशेष लोगों में ऐसे गुण विद्यमान हैं किंतु पराया पराया जातिवाद समाप्त हो चुका है इसलिए आरक्षण नीति को समाप्त कर दिया जाना चाहिए ऐसा मानना है कि सत्यवादी श्री रामघुन का ।
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