बीते दिन भोपाल के,आऐ दिन कोल्हू के ! श्रीरामधुन

भोपाल म०प्र० की राजधानी की बात ही अलग है । जो भोपाल मे रह रहे है वे बड़े खुशनशीब है । भोपाल तालो मे भोपाल ताल एक
अपने आप मे बहुचर्तित है । भोपाल मे मशहूर है ये तीन चीजे-पहला जर्दा दूसरा पर्दा और तीसरा नामर्दा ।
यहां की तहजीब का मुकाबला कोई भी नही कर सकता । यहां की लोकल भाषा भी निराली है जो विश्व की सभी भाषाओ से निराली व अनोखी है ।
ठीक इसी प्रकार से है जैसे कोल्हू के बैल की आंखो मे पट्टी बंधी होती है तो उसे रात भर दिन भर जोता है और तेल निकाला जाता है । इसी के साथ यहां पर भोपाल म०प्र० मे यह कहा जाता है कि यहां परो किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना
दिया जाये तो वह पांच साल सरकार चला लेता था । यहां पर कोई भी व्यक्ति से आशय् हे किसी व्यक्ति के अतिरिक्त  कोई भी...हो सकता है ।
कोल्हू का बैल से आशय् है वह भी
म०प्र० की सरकार चला सकता है और अभी भी अनेको प्रांतो की सरकार भी चला है । कोल्हू का बैल
कण से कम अपना कार्य तो बड़ी ईमानदारी से करता है और अपने मालिक का वफादार तो होता है जबकि राजनीति मे इन बातो से कोई सरोकार ही नही होता ।
सही मायने मे भोपाली और कोल्हू के बैल मे ज्यादातर असमानता और समानता भी बराबरी की होती है । कभी कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की सरकार कोल्हू का बैल तो नही चला रहा 
है । अभी अभी 14-15 सालो मे लग रहा है कि हमारा देश ने बड़ी तरक्की की है चूंकि हमारे देश का प्रधानमंत्री श्री मोदी एक सुलझे हुऐ इंसान है उन्ही की धजय से देश व उनकी पार्टी सुदृढ़ स्थिती मे आई  ।
कोल्हू के बैल की परिभाषा
कोल्हू क्या होता है - संज्ञ पुल्लिंग
तेलिया को करने का यंत्र जो कुछ डमरू के आकार का बड़ा होता है यह प्राया पत्थर का और कभी-कभी लकड़ी का या लोहे का भी होता है इसके बीच में थोड़ा सा खोकल स्थान होता है जिससे हारी या पूरी कहते हैं 
चीन की दुकान में बैल का एक मोहरा भी है - चीन की एक दुकान में एक बैल के रूप में अजीब एक मुहावरा है जिसका उपयोग उन लोगों का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो जानबूझकर या अनजाने में सावधानी से या शालीनता से उन स्थितियों में कार्य नहीं करते हैं जहां उन्हें करना चाहिए
तीन तेरह होना मुहावरे का क्या अर्थ है- तितर बितर होना भारतीय सैनिकों कोने आतंकवादियों को 313 कर दिया
कोल्हू का बैल मुहावरे का सही अर्थ है बहुत अधिक परिश्रम करने वाला
कोलू कौन चलाता है कोल्हू का बैल ऐसे व्यक्ति वो कहते हैं जो कड़ी मेहनत करके जिससे कड़ी मेहनत करवाई जाती है मेहनत और कोशिश से जुड़े कुछ और भी महोदय होते हैं पुराने समय में और अभी के समय में गोलू चलाने वाले भारत में रहने वाले तेली समाज के लोग ही इस काम को करते थे करते हैं और करते रहेंगे यह बात अलग है कि उल्लू चलाने के अलावा यह व्यापारिक क्षेत्र में भी प्रतिष्ठित लोगों में इनक कीमती है
''दिया जले तेली का ,  गांड जले मसालची का ""  यह भी एक पुरानी कहावत है जो कोल्हू      के बैल से संबंधित है  । अब कोल्हू और बैल का समय चला गया हो बस कोल्हू
चलाने वाले आज पंच,सरपंच, 
पार्षद,विधायक और सांसद बनकर
देश को चला रहे है और उनके कारनामों के कारण देश उन्हे सवाम
करता है ।
    इनमे से कुछ तो अभी भी  कोल्हू के बैल  बनकर जी रहे है तो
कुछ देश की सेवा कर रहे है । इनमे से कुछ लोग भ्रष्टाचारी बन गये तो कुछ भ्रष्टाचारीयो को रोकने वाले बन गए । अब आमजनता किसका साथ देगी यह तो समय ही बतलाऐगा ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
 संस्धापक - संपादक -काउसंलर
            लेखक-आलोचक
     

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