सुनने-सुनाने के लिऐ बहुत कुछ है लेकन सुनाऐ किसे ! "श्रीरामधुन"

सुनने-सुनाने के लिऐ तो बहुत कुछ है लेकिन समस्या यह है कि सुनाऐ किसे ? कौन सुनने वाला है ,कया घर के बड़े-बुजुर्ग सुनेगे,क्या बाल-बच्चे सुनेंगे, कया पड़ोसी,मोहल्ले वाले सुनेगे,क्या गांव-शहर,देश वाले
सुनेगे ? 
    जब  ये लोग नही सुनेगे तो दूसरा
क्यो सुनेगा ? इसमे गवती किसकी है तो पता चलता है कि सारी गलती ही हमारी है ।चूकि हमने उन्हे शिक्षा तालीम नही दी ।उनको अच्छे संस्कार नही दिऐ । ऐसे मे किसी के भी दोषारोपण नही लगाना बिलकुल भी सही नही है । जैसा बीज बोया हे वैसा ही उसका फल मिलेगा ।
    अभी भी सुनने -सुनाने वाले लोग बहुत है इसके लिऐ हमारी सोच का दायरा बढ़ाना होगा और
अपने अधिकारों का उपयोग करना पड़ेगा । इन नियमो के अंंतर्गत उसका इस्तेमाल करना होगा । शिक्षा के माध्यम से योग्य बनना- बनाना होगा । अच्छी तालीम प्राप्त करेगे तो पूरा परिवार सस्कामय बनेगा । हमको देखकर मोहल्ले - पड़ोस,गांव,शहर ,देश मे परिवर्तन
की लहर चलेगी ।
     एक परिवार सभी लोग पढ़े लिखे हो जाऐगे तो पुस्तैनी धन्धा करना भी जरुरी है । सबको नोकरी मिल जाये रह जरुरी नही है अतः अपनी पहचान और हुनर के साथ अपनी जन्मभूमि मे रहकर अपने परिवार माँ-बाप के साथ अपनी योग्यता के हिसाब से कार्य करो इसी मे सबकी भलाई छुपी है ।
लाँकडाउन के जो भी प्रोटोकाँल थे वे सभी के सभी फायदेमन्द थै यदि हर इंसान इन प्रोटोकाँल का पालन करता है वो भी हमेशा तो उसे जरूरत से ज्यादा लाभ मिलेगा । उसमे सामूहिक परिवार का चलन भी बहुत जरुरी है । आज परिवार मे जो बिखराव आ रहा है उसे देखते हुऐ जरूरी है । आज नही तो आने वाले समय सभी इंसान एक ही छत के नीचे रहेगा जरूर । क्यो ना हम समय से पहले अभी से अपनी आदतो सुधार ले आऐ तो उचित होगा ।
     जब ऐसा हो जाऐगा तो सुनने-
सुनाने वाले भी होगै साथ मे सभी शिक्षित लोग भी होगे जो अपनी समस्याओं का हल करने सक्षम होगे । परिवार-समाज सुधरेगा तो देश सुधरेगा और उन्नति की शिखर पर पहुचेगा ।
  जब हम सक्षम शिक्षित होगे तो हमारे साथ जुड़ने वाला व्यक्ति भी शिक्षित होगा और समझदार होगा तो हमे कोई बेवकूफ नही बना पाऐगा चूंकि हमारे मे से कोई पंच,सरपंच, विधायक, सांसद और कर्मचारी-अधिकारी बनेगा तो भ्रष्टाचार भी समाप्त होगा ।हम भ्रष्टाचार को नीचे के स्तर से समाप्त करेगे और अपने हिसाब से 
करेंगे । चूंकि भ्रष्टाचार की जड़ो को काटने के लिऐ हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए और इसकी शुरूआत स्वयं से और अभी से करना चाहिए ।हथोड़ा चलाते रहो कितनी ही मजबूत दीवार हो अंत मे टूटेगी ही ।
      तभी हम सुनने -सुनाने की स्थिति मे आऐगें । हम सुनने वाले भी हम होगे और सुनाने  वाले भी हम ही होगे । अतः दोषारोपणो करने की स्थिति समाप्त और हमे अब कुछ नही चाहिए  ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-काउसंलर

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