"अपने आप को बदलना होगा " ! "श्रीरामधुन"

मुझे अपने आप को  बदलना  होगा 
अथवा नही ?  इस बदलाव के युग मे , इस 21वी शदि मे ऐसा प्रशन्न हर बुध्दीजीवी अपने आप से कर रहा है । मन-अंतर्मन मे घमाशान युध्द चल रहा है जो किसी महाभारत से कम नही है ।  इस वदलाव के युग मे आप दुनिया को तो बदल नही सकते किन्तु आप अपने आप को तो बदल सकते है । आज के जमाने
मे जब भ्रष्टाचार का सबसे ज्यादा बोलबाला है,आबादी थम नही रही बल्कि बढ़ते ही जा रही है । मंहगाई,बेरोजगारी, व्यभिचार का ग्राफ तो दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहा है ।देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इस तरफ ध्यान तो दे रहे है लेकिन गलत काम करने वालो की जड़े कुछ ज्यादा ही गहरी है जिसको समाप्त करने मे असमर्थ है  ।
       ऐसे स्थिति मे बुध्दीजीवी वर्ग का फर्ज है कि वे इस कार्य मे देश की आर्थिक स्थिति को सुघारने के लिऐ आगे आऐ और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने हेतु अपने आप मै सुधार लाऐ । "स्यंम सुघरेगे तो देश सुधरेगा" का नारा लगाकर युगक्राति लाने मे सहयोग करे ।
     सबसे पहले स्वयं को बदलिए और कैसे बदलिए ?
       यदि हम बीमारी, गरीबी और दुर्भाग्यपूर्णता के ही विचारो मे डूबे रहे , तो यही आपको प्राप्त होगें और बाद मे हम इन्ही को अपने जीवन का अंग मानने लगेगें । गरीबी ऐसा नर्क है,जिससे दुर्बल मं वाले लोग उसे हमेशाअपने से दूर रखते है । धन सम्पत्ति का जन्म मन से होता है । धन-सम्पत्ति का प्रभाव कंजूस-मख्खीचूस ,संदेहशील व्यक्ति की ओर कभी नही प्रभावित होता है ।  गरीबी के विचार से संबंध रखने पर,मनुष्य गरीबी पैदा करने की स्थिति से ग्रसित रहता है ।  किसी भी व्यक्ति का यह हक नही है कि वह सदा गिरी-पड़ी,दीन-हीन दशा मे पड़ा रहे । जब तक मनुष्य अपनी सहायता करने मे सर्वदा असमर्थ ना हो , तब तक उसे यह अधिकार  कदापि नही है कि ऐसे वातावरण मे पड़ा रहे ।  व्यक्ति के आत्म सम्मान  की यह मांग है कि मनुष्य चारो ओर अपने गौरव का स्वयं निर्माण करे । उसका कर्त्तव्य है कि वह अपने को गौरवशाली पद पर प्रतिष्ठित करे,कार्य और आकांक्षाओं की पूर्ती करे ।
     आप किसी भी धनाढ़ व्यक्ति से पूछे तो वह आपको बताया कि उसके सर्वाधिक प्रसन्नता से पूर्ण दिन बैठे जिन दिनों वह गरीबी से ऊपर उठकर संपन्नता की सीढ़ियां चढ़ने का प्रयत्न कर रहा था जब यह योग्यता का एवं कार्य कुशलता द्वारा अपने जीवन स्तर को उन्नत बनाने के लिए कठोर परिश्रम और और प्रश्न कर रहा था और जनता जानता था कि अभाव और निर्धनता उसको सताने नहीं आएंगे यही वह समय था जब उसने आराम को हराम समझकर मेहनत को गले लगाया था अलसी को छोड़कर आत्मविश्वास के लिए प्रयास आरंभ कर दिया था अपने को अधिक अधिक शिक्षित मानते हुए उसने यह अनुभव करना शुरू कर दिया था कि आप उसमें वह शक्ति आ गई है जिसे वह प्यार करता है उसे गरीबी अब कभी सह नहीं सकेगी कांटेक्ट करने वाले बेकार जैसे परिश्रम का स्थान कार्य कुशलता लेने लगी उसे समय उसमें ऐसी शक्ति आने लगी कि वह अपनी स्थिति से अपने को ऊपर उठा सके अपने आप से आगे बढ़ सके
    मनुष्य के मिथ्या स्वभाव के अभाव और निर्धनता का कोई मिल नहीं है हमारे लिए गरीबी कष्टदाई इसलिए बन गई है कि हम इसे स्थाई मान बैठते हैं ऐसा इसलिए होता है कि हम आत्मविश्वास से हाथ धो बैठते हैं जो कुछ हमें मिल गया इस में हम अपना भाग्य मान लेते हैं।
     हम अपने मन की मां को इतना विशाल ही नहीं बनाते हैं कि उसमें हमारी आत्मा की आकांक्षा समझ सके बल्कि अपनी मनोवृत्ति को इतना संकेत इतना सब कुछ बना लेते हैं कि हमें आत्मा की आवाज ही सुनाई देनी बंद हो जाती है और हम प्रत्येक विषय में कंजूस मक्खी चूस व्यक्ति की भांति सोचने लगते हैं जिस शक्ति ने हमें बनाया है और जो हमारा पालन पोषण करती है उदारता से देती है विपुलता से देती है वह कंजूस नहीं है वह सबके लिए सब कुछ देती है ।
   जब हमारी दृष्टि अन्याय के कारण धुंधली हो जाती है तब हम अपने से अनुचित लाभ प्राप्त करने के प्रति करने लगते हैं जब यह धुंधलापन दूर हो जाता है तब हम ईश्वर के समीप पहुंच जाते हैं तब विश्व के समस्त पदार्थ का प्रभाव स्वयं हमारी ओर प्रभावित होने लगता है ।
.      आप अपने को  अभाग्यो की श्रेणी में क्यों गिनते हो  ? क्यों नहीं विचार के इस बंधन को आप झटक कर दूर कर देते हैं  ? क्यों ना आप अपने को ही मानते हो जबकि आपने  अपने स्वयं को बंधनों में लपेट रखा है । अपने स्वयं अपने ऊपर पवन दिया याद रखी है अपने हाथ पैरों में से बंधन की हथकड़ियां भेड़िया स्वयं अपने आप की डाली हुई है  । किसने आपका रास्ता रोका है अपने चारों ओर अपने स्वयं की एक दीवार बना रखी है । और उसके बाहर जाने का कभी प्रयत्न नहीं करते । गरीबी ही आपके भाग्य में लिखी है तो संपन्नता आपके पास कैसे आ सकती है ।
     संसार में यह मान लेना सबसे बड़ा अभिशाप है कि कुछ लोग अवश्य गरीब रहेंगे कुछ लोगों का यह दर्द, विश्वास है कि संसार में गरीबी नहीं मिट सकती । ईश्वर ने मनुष्य को  जो जीवन योजना बनाई है उसमें गरीबी अभाव और भुखमरी का कोई स्थान नहीं है ।  इस धरती पर एक भी मनुष्य गरीब नहीं होना चाहिए परंतु कुछ चालाक लोग अधिक धन संपत्ति समेट लेते हैं कुछ भोले लोग इस मध्य विश्वास के बंधन में जकड़े रहते हैं ।
       क्यों मोह ममता की निद्रा में पड़कर गरीब बने हो यदि जीवन का उद्देश्य विशालकाय बना लो । यदि जीवन का उद्देश्य उच्चतर बना लो , तो इससे  ही तुम्हारे जीवन का ढांचा बदल जाएगा । तुम्हारे अपने विचारों का घेरा ही तुम्हें गरीबों की सीमा से आगे नहीं बढ़ने देता है।  यह मोह निद्रा, तंगदिली ,मानसिक संक्रियता ,स्वार्थ भावना है जो तुम्हें अपने जीवन में परिवर्तन नहीं करने देती । उबासियां लेना छोड़िए , मांगना छोड़िए अपने गौरव को पहचानिए, दृढ़ता से स्थिरता से सीधे खड़े हो जाइए अपने अधिकार को पहचानिए ।
    दृण निश्चय कर लीजिए कि आप मन में उत्साह तथा उल्लास भरकर विपुल धन संपत्ति की आशा करेंगे आपके लिए यही उचित है ।
     आप अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं । यदि आप यह अनुभव करते हैं कि आपका जीवन कठिन परिस्थितियों से बीत रहा है या भाग्य आपके प्रति क्रूर हो रहा है । यदि आपको अपनी वित्तीय स्थिति के प्रति शिकायत है तो खोजने पर आप पाएंगे कि घर परिवार या समाज में चाहे आपकी स्थिति कैसी भी हो ,वह स्थिति आपके अपने विचारों को ही ही संतान है इसके लिए आप अपने सिवा और किसी को दोष नहीं दे सकते यदि आपके विचार शुध्द हैं   यदि आपका सोचने का तरीका सही है तो आपका जीवन भी सही ढंग का होगा । यदि आपकी विचारधारा निर्मल होगी ,यदि दानशीलता के विचारों से भरपूर हो गई और इसके साथ ठीक अपने विचारों के अनुभव आप पर चढ़कर प्रतिनिधि करते रहेंगे और आपका उद्देश्य भी वास्तविक होंगे तो परिणाम भी सर्वदा अनुकूल होंगे अर्थात आप विपुल धन संपत्ति के स्वामी होंगे ।
     आप जिस वस्तु की कामना करते हैं पूरी तरह उसी के ध्यान में लीन हो जाइए इस पर अपने विचार पूर्णता केंद्रित कर लीजिए उसके बारे में इस प्रकार से सोचिए कि उसे आप अपनी और कैसे आकर्षित कर सकते हैं ।
    चाहे आपका कितना ही का अंधकार पूर्ण वातावरण हो चाहे आपकी स्थिति कितनी ही कठोर हो फिर भी आप निराश को कदापि अपने मन में स्थान न दें अपने सर्वोत्तम गुण को प्रकट कीजिए और अपनी स्थिति को धन संपत्ति से भरपूर आनंद और उल्लास से युक्त बनाये ।
      जीवन में जो कुछ सुंदर है , हितकारी है, उसकी प्राप्ति ही संपन्नता है । धन संपत्ति उसी का एक भाग है आप अपने आत्मविश्वास के साथ आत्मविश्वास के द्वारा यह सब कर सकते हैं ।यहां पर भी सकारात्मक सोच ही भविष्य की कुंजी है ।आपको सदेव खुश रहना है और सामने वाले को खुश रखना है और दुनिया मे कुछ भी चले अपने आप को सुधार करना है । इति-3 -
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक- आलोचक-काउंसलर
     
     

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