बाल्यावस्था,युवाअधेड़ औरवृध्दावस्था तय है ! .................."श्रीरामधुन"
"बच्चा हो,युवां हो, अधेड़ावस्था हो सबको वृध्दावस्था के दौर सें गुजरना है !"और गुजरना ही पड़ता
है ,यही कर्मो का लेखा-जोखा पूरा
करने के बाद शरीर रह जाता और आत्मा परमात्मा मे विलीन हो जाती है । इस प्रक्रिया से सभी कौ गुजरना पड़ता है ।
इंसान अपने माँ-बाप को, जो उनके जन्मदाता है उन्है जानबूझ कर कभी भी कोई दुख नही देता है
उनकी सेवा करना चाहता है । फिर भी अनेको घटनाएं घटती है जिनका संबंध माँ- बाप से संबंधित
होती है ,दुख तकलीफो से संबंधित होती है । ऐसा क्यूं होता है ? जब इसका सर्वे कराया गया तो यतार्थ
तथ्य सामने आऐ । उन्ही तथ्यो से
अवगत करवाया जा रहा है :-
1* जो घर का छोटा-मोटा काम करते रहते है । गुस्सा नही करतेऔर शांत रहते हे ।
2* अपना काम ज्यादातर स्वयं कर लेते हो ।
3* सबकी हाँ मे हा ना मे ना मिलाने का कार्य करते है ।
4* मानसिक रुप से स्वस्थ्थ के लिऐ अपने आपको हमेशा रहते हो
5* नियमित हल्का फुल्का व्ययाम करे,टहलना भी जरुरी है ।
6* खाली समय का उपयोग करते रहना चाहिए ।
7* ये सभी मानसिक रुप सै बिमार परेशान रहते है अपना दुखड़ ,अपने कर्मो से परेशान होते हैऔर यह अपने कर्मो को माध्यम बना कर अपना बदला स्वयं लै रहे है , क्षमा से उस भगवान से मोँँग रहै किन्तु सजा कम नही है और अभी तक क्षमा नही मांगी है ।
8*अपने परिवार मे घर वालो को अपनी रोचक कथाबतलाकर माफी मांगे तो शायद माफी मिल जाऐ और मौक्ष की प्राती हो जाऐ ।
9*उम्र अथिक होने पर भी अपना काम स्वंयं करे । किसी पर बोझ नही बने ।
10* गुस्सा का त्याग करे ,बहस ना
11* भगवान को याद करे ,अच्छे लोगो का सतसंग करने करे जल् ही मोक्ष मिलेगा ।
1* बढ़ती उम्र आमतौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग बनते हैं शिकार बहुत ज्यादा स्मोकिंग करना बिल्कुल एक्सिस एक्सरसाइज ना करना ब्लड प्रेशर ज्यादा होना फैमिली हिस्ट्री होना जेनेटिक वजह से पुरुष ज्यादा होते हैं शिकार नोट इस बीमारी की कोई एक वजह नहीं होती ऊपर दी गई वजह बीमारी की आशंका को बढ़ा सकती हैं
2* बढ़ती उम्र मे भूलने की,गुस्सा करने की एक आदत सी बन जाती है यह भी बहुत बड़ी परेशानी होती है । इन्हीं कारणो से लोगो को परेशानी होने लगती है ।
3* पागलपन की स्थिति मे अजीबो गरीब हरकते करने लगते है । टट्टी पेशाबकरना ,नंगे घूमना,नाली के गंदे पानी से मंदिर को साफ करना, औरतो के प्रति आकर्षण आदि आदि हरकते करना ।
4* अपनी शुदबुध खौना ।
5* गंदी-गंदी हरकते करना ।
6*इन्ही आदतो के कारण घर वाले उन्हे घर के कमरे मे बंद कर देते है ।
7* पागलखाने भिजवा देते है
8* वृध्दाश्रम भिजवा देतै है ।
9* ईलाज करवाते है फिर भी ठीक नही होने पागल खाने भिजवा देते है ।
10*इतना करने पर भी लोगो को उनके ताने सुनना पड़ता है ।
11* ये इनके इसी जन्म के फल है इनका एक एक क्षण साल जैसा होता हो । यह अवस्था उनके भाग्य मे था ।
वृद्ध जनों की अपेक्षा चिंतानीय है:-
पश्चिमी देशो ने परिवार को पति पत्नी तक सीमित कर दिया है । वर्तमान में परिवार को अंतरंग रूप में जोड़ने वाली समर्पण भावना जो प्रेम का उत्कृष्ट रूप है समाप्त होती जा रही है । अपनापन खोजने पर भी दुर्लभ होता जा रहा है ।वयोवृद्ध परिजन अपेक्षा एवं पुरस्कार का जीवन जी रहे हैं उनके अनुभूत ज्ञान और परिपक्व अनुभव से लाभ उठाना हमारे लिए सुरेश कर है सुरेश कर है व्रत जनों को सम्मान तथा संरक्षण देना हमारी संस्कृति का आग्रह है ।
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में युवकों से स्थापित हमारी कुटुंब प्रणाली को भारी आघात लगा है जीवन मूल्यों की के हाथ का सर्वाधिक प्रभाव वृद्धि जनों पर पड़ा है वर्तमान में नई पीढ़ी की परिवार संबंधी धारणा में वृद्धो के लिए कोई स्थान नहीं है एकल परिवार की पक्षधर नई पीढ़ी केवल भौतिक सुख से जीने की कामना करती है ।
"मातृदेवो भव,पितृदेवो भव", जैसे उपनिषद वाक्य अथॆव्ड बनाकर गूंज रहे हैं हम अपने वृद्ध जनों से लाभान्वित हो उनका सम्मान सुविधा दें उनके जीवन संध्या में प्रकाश तथा सहारा बने - यह हमारा नैतिक दायित्व है ऐसे नैतिक दायित्वपूर्ण मूल्यों को छुपाने के लिए संयुक्त कुटुंब अनिवार्य है व्रत जनों के मन में हमारे सामाजिक मूल्यों को लेकर मार्मिक पीड़ा है सामाजिक जीवन के विश्वास घटन पर पारिवारिक जीवन की यंत्रणाओं तथा निजी जीवन में संबंधों की सर हीनता को वे शब्दों में व्यक्त करने में अपने को असमर्थ पाते हैं यह पीड़ा की पराकाष्ठा है।
आता वृत्तियों के कल्याण के लिए एकमात्र विकल्प भारतीय परिवारों को की ओर लौटना है जिसमें कुटुंब जनों के प्रति सुरक्षा संवेदनशीलता तथा सेवा भावना से तथा युवा पीढ़ी के प्रति उदारता एवं अपना के विकास की संभावनाओं से दोनों पीडिया को परस्पर निकट लाया जा सकता है यही भारतीय जीवन का आदर्श है ।
बुजुर्गों से हैरान परेशान
बढ़ती उम्र अक्सर कई बीमारियों और समस्याओं की वजह बन जाती है कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं कि घर वालों को लगता है कि बुजुर्ग पागल हो गए हैं या फिर उन्हें जानबूझकर परेशान कर रहे हैं जबकि असल में वे बीमार होते हैं और उन हैं उन्हें सही देखभाल और प्यार की दरकार होती है अगर घर में कोई ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित है तो उसे कैसा निपटा जाए एक्सपर्ट से बात करके जानकारी लेना अति आवश्यक है ।
बाल्यकाल अवस्था और बुजुर्ग काल अवस्था दोनो एक जैसी अवस्थाऐ है अतः हमे इस बात का
ध्यान रखना परम आवश्यक है ।
लेखक-संस्थापक-संपादक- कथा-
कार ।
Comments
Post a Comment