एहसान बड़ा छोटा नही होता है वह अमर एहसान ही रहता है -"श्रीरामधुन"
एहसान अथवा उपकार छोटा या बड़ा नही होता है बल्कि वह हमेशा
जीवित रहता है । यह कोई भुलाने की चीज नही है । एहसान को एहसान से भी पूरा नही किया जा सकता है - श्रीरामधुन
सबसे बड़ी बात यह है कि एहसान करने के बाद उससे कोई उम्मीद मत रखो बल्कि भूल जाने मे
ही भलाई छुपी है । यदि एहसान करने के बाद उसे किसी के सामनै बोल दिया तो समझो आपका एहसान निसफल हो गया । एहसान भी एक प्रकार के दान जैसे ही है । और दान का नियम है कि दान करने वाले के दूसरे हाथ को पता नही चलना चाहिए कि उस हाथ ने क्या किया ?
एहसान करने वाला आपके जान पहचान का ना हो उसे टालने की कोशिश करना चाहिए फिर भी नही माने तो स्थिति स्पष्ट कर लीजिये कि आप क्या चाहते है और सामने वाला क्या चाहता है तभी अदान-प्रदान करना चाहिए । चूंकि सामने वाला एहसान के बदले मे कुछ ना कुछ आपसे अप्रत्यक्ष रुप से चाहता हो इसलिए स्थिति स्पष्ट
होना चाहिए ।
एहसान करने वाले और एहसान लेने वालो के बीच मे बहुत ज्यादा वाद-विवाद होते है यहां तक रिस्ते बिगड़ जाते है और एक दूसरे के जान के दुशमन हो जाते है । एहसान का अहसास भी नही होना चाहिए तभी एहसान माना जावेगा । ऐसी ऐसी अनेको बाते है जो कहावतो और कहानियो मे ,फिल्मो मे,सीरियल और रोजमर्रा मे बतलाई जाती है । किंतु आज की भागम-भाग वाली दुनिथा मे लोग बदल गये है उनकी सोच बदल गई है । सोच के साथ साथ सकारात्मक
रिजल्ट भी आना चाहिए किंतु वह है कहां ? बच्चे कभी भी बड़े नही हो सकते जब तक माँ-बाप जीवित होते है इसके बड़ा भाई यह स्धान प्राप्त करता है । अब ऐसी स्थिति मे छोटो का फर्ज होता है कि वे उनका सम्मान करे,आदर करे,आज्ञा का पालन करे,हर छोटी-मोटी बातो का
का ध्यान रखे । प्रायः प्रायः ये बाते समाप्त होने लगी है इसी को कायम रखना है । वैसे इस बदलाव के युग मे हम पुराने जमाने की ओर बढ़ रहे
है और पहला कदम भी बढ़ा चुके है जो किसी को एहसास भी नही हो पा रही है ।
पहली बात किसी पर कोई एहसान कर रहे हो तो यह सोचकर ना करें कि वह इसके लिए आभारी रहे जो व्यक्ति विनर होता है उसके मन में उसे इंसान के लिए बहुत आभार होता है जिसे उसके लिए कुछ किया होता है यदि कोई भी अपने किए को जताता है तो सामने वाले इंसान की नजरों में उसकी वैल्यू वैसे ही काम हो जाती है मेरे हिसाब से किसी के लिए कुछ करके वह उम्मीद है करना कि हमारा आभार रहे हमारे व्यक्तित्व का एक कमजोर पहलू है किसी के लिए कुछ अच्छा किया हो तो उसे तुरंत भूल जाओ
* आभार करने की अपेक्षा करना उचित है कि नहीं ?
किसी सड़क में दुर्घटना में चोट लगने पर किसी परिचित अपरिचित में आपको अपना रख दिया क्या आप इस बात का इंतजार करेंगे कि कब वह किसी मुसीबत में पड़े और आप उसकी सहायता कारण ऋण मुक्त हो ? अथवा
घर से दूर अपने मित्र की बीमारी में आपने उसकी पूरी देखभाल की तो आप इस प्रतीक्षा में है कि कब आप बीमार पड़े या किसी और मुसीबत में पड़े और उसे अपने देखभाल करवाऐ ?
* बड़े बूढ़े रह गए हैं कि नेकी कर दरिया में डाल इसका साधारण अर्थ है कि किसी का भला कर उसे बात को भूल जाना दरिया का बहता पानी उसे आपकी नजर से दूर ले गया
यह की नेक को दरिया में डालने के बेहतर यह है कि आप उसे व्यक्ति की सहायता करने की बजाय किसी अन्य जरूरतमंद की सहायता कर अपने रन से मुक्त हो और वह व्यक्ति फिर किसी अन्य की सहायता करें इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाए इससे अनेक लोग लाभान्वित होंगे होते ही रहेंगे क्योंकि यह चैन सदैव चलती रहेगी ।
हमारी संस्कृति में तीन प्रकार के रन कह गए हैं पहले विवरण दूसरा गुरु रंध एवं तीसरा पत्र रन तो उनकी पूजा अर्चना से उतर जाता है और गुरु रन उनकी शिक्षा पर चलकर उतर जा सकता है पर पत्र होता है जब आप अपने बच्चों को ईमानदारी से पालकर एक अच्छा मनुष्य बनाते हैं हमारे माता-पिता अपना सुख चैन फुल हमारा पालन पोषण करते हैं उनकी वृद्धावस्था में हम उनकी देखभाल करें या हमारा कर्तव्य है परंतु पितृ ऋण सिर्फ तभी होता है जब हम अपने माता-पिता की तरह अपने बात की पीढ़ी को अच्छा संस्कार युक्त मनुष्य बनाते हैं
कुछ एहसान ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम किसी भी तरह उसे व्यक्ति को नहीं लौटा सकते ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन एक सलाहकार अथवा काउंसलर है जो निम्न सलाह देते हैं
* किसी की भी सहायता करो तो नहीं स्वार्थ भाव से करो बिना बदले की अपेक्षा के
* किसी को हर समय धन दो तो उसका ढिंढोरा मत पीटो
* जब आप किसी की सहायता करते हैं तो शुक्र करो अपने भाग्य का कि आप किसी की सहायता करने में सामर्थवान हो ।
दार्शनिक लेखक-आलोघक- काउसंलर- सलाहकार ।
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