दया भाव ही दुख का कारण है मृत्यु ! "श्रीरामधुन"

दया भाव ही दुख का कारणहै ,मृत्यु -
       वर्तमान समय मे किसी भी जीव-जन्तू के उपर यदि आपने कोई उपकार किया तो वही आगे चलकर आपके दुख का कारण बनता है । साथ ही साथ मृत्यु का कारण भी बनता है। चाहे  वह कोई महात्मा भी हो या फकीर हो या कोई राजनीतिक पार्टी हो ,काग्रेस हो भाजपा हो या आप पार्टी हो दया भाव तो इनके उपर करो ही मत । दया भाव करोगे तो उसका फल भुगतना ही पड़ेगा । उन्हे उनका काम करने दो ,वह काम
उनकी किस्मत मे लिखा है । आप करो या ना करो उसका कोई औचित्य नही है । विधी के विधान मे कोई हस्तक्षेप मत करो । आप अपना कर्तव्य निभाओ और नियम
का पालन करो । ऐसा कोई काम मत करो जिससे किसी को दुख पहुघे । सभी को अपने अपने कर्मो का फल भुगतना है । कभी भी सपनै मे भी किसी का दिल जान -बूझ कर मत दुखाओ । क्योकि जो
आप कर रहे हो उसी को भोगना है।
मृत्यु अटल है । वह सभी को आना है । मृत्यु वरण करनै से पूर्व कुछ ऐसा काम कर जाओ कि दुनिया आपको ,आपके अच्छे कामो कै प्रति हमेशा नमन करे , याद करे ।
मृत्यु के पश्चात कुछ दिनो के लिऐ याद करेगें फिर भूल जायेगें और
दुनिथा ऐसे ही चलते रहेगी । आफकी मृत्यु के पश्चात सभी लोग आपसे मुक्ति पा लेगे और आपके
ना रहने पर आपसे भी अच्छा कार्य
करैगे । यही मृत्यु से आपको छुटकारा मिलता है तो वही दूसरो के लिऐ कार्यो से मुक्ति का कारण बनता है जिसके सहारे जीवन जीने का नया मार्गप्रदशक भी बनता है ।
     हम किसी को भी या कहते सुनते हैं की दया ही दुख का कारण है तो एक बार तो ऐसा लगता है कि यह कैसी संवेदनहीन बात है मगर जब अपने आसपास दया करना और संवेदनों का खेल देखते हैं तो रोजमर्रा की जिंदगी में तरह-तरह के अनुभव के साथ गुजरना पड़ता है तब लगता है कि इस बात में कुछ भी गलत नहीं है की दया ही दुख का कारण है जो आगे चलकर मृत्यु में तब्दील हो जाता है।
       संसार में मनुष्य के दुखों को दुखी रहने का सबसे बड़ा कारण उसका आसक्त होना है वह किसी के भी प्रति आ सकती रखता है तो चाहे भाई बहन माता-पिता भाई बंधु पुत्र पुत्री गोत्र या किसी वस्तु के प्रति तो उसे उसके बिछड़ने या समाप्त होने या को जाने पर दुख का सामना करना पड़ता है
     जब शरीर में मां नेत्र स्तोत्र और आत्मा आहत होते हैं तो दुख का एहसास होता है मैन किसी चीज की जिज्ञासा करता है और वह चीज पूर्ण नहीं होती तो मन को दुख का एहसास हो जाता है जब मन दुखी होता है तो शरीर दुखी हो जाता है शरीर दुखी होता है तो हमारे जैसा की होती है और चेतना का संबंध अंतःकरण के साथ होता है ।
      जीवन का सबसे बड़ा दुख व्यक्ति परख है और हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है कुछ लोग किसी रीजन के खोलें को सबसे बड़ा दुख मानते हैं जबकि अन्य लोग अधूरी संभावनाओं या चुप पे झुक गए अफसर को सबसे महत्वपूर्ण मान सकते हैं कष्ट चाहे शरीर शारीरिक हो या भावनात्मक अक्सर पड़े तो के रूप में उध्दृत  किया जाता है ।
     अच्छे लोग पीड़ित होते हैं क्योंकि वह अधिक संवेदनशील होते हैं जो कुछ-कुछ प्रभावित छोड़ देता है वह शायद एक अच्छे व्यक्ति को पागल कर देगा क्योंकि वह तुरंत अपने साथी आदमी की बुरा महसूस करेगा सुधा मोती में ठीक ही कहा है कि मैं कुदरत करता हूं आपको इतना समय से नहीं होना चाहिए संवेदनशील लोक जीवन में बहुत कष्ट पाते हैं ।
      जब तक जीवन है का अंत कभी नहीं होगा जीवन का दूसरा नाम ही दुख है इसका अंत नहीं होगा जब जीवन समाप्त होगा ।
   दुख मनुष्य की एक नकारात्मक मानसिक स्थिति है स्थितियों का निर्माण व्यक्ति स्वयं करता है और फिर उसे मिटा भी देता है दरअसल दुख का निर्माण हम स्वयं दूसरों के कारण करते हैं  ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-काउंसवर

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