माता-पिता का रिस्ता ही सर्वोपरि !

माता-पिता का रिस्ता ही सर्वोपरि होता है !
किन्तु तभी तक जब  पुत्र-पुत्री की शादी नही हो जाती फिर उनके बच्चो के बाद  उनकी अहमियत कम होने लगती है । इसी क्रम और भ्रम मे चलता है संसार ।
सांजा चूल्हा ,सकल परिवार, सामूहिक परिवार,संयुक्त परिवार, धीरे धीरे एकल परिवार की दौड़ मे शामिल होते जा रहे है  और एक दूसरे के प्रेम मे खटास होती जा रही है ।
        आज जमाना जरुरत से ज्यादा बदल गया है साथ ही रिस्तो मे भी बदलाव हो गया है । माता - पिता के पुत्र पुत्री के मोह मे भाई-बहनो का रिस्ता खोता जा रहा है ।
आज पुत्र-पुत्री के माँ-बाप ही सर्वो-
परि है वो भी जब तक उनकी शादी
नही होती । शादी होने के बाद उनकी दुनिया भी धीरे-धीरे बदलने लगती है । जैसे जैसे उनके बच्चे बड़े होते जाते है माँ-बाप का रिस्ता
धीरे-धीरे कम होने लगते है । ऐसा प्रायः हर परिवार मे हो रहा है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि सब
रिस्ते धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहा
है । सिर्फ एक रिस्ता माँ-बाप का चल रहा है वो भी उस समय तक जब तक कि उनकी शादी और बच्चे नही हो जाते तब तक ही ।
     *इस दुनिया में जब मां-बाप और बच्चे ही सब कुछ हैं तो बाकी रिश्तेदारी क्या है  ? जिसे हम महान बता सके ! मां-बाप के लिए बच्चे और बच्चों के लिए बच्चों में ही जिंदगी समाप्त होती जा रही है तो ऐसे में हमारा क्या अधिकार है कि हम बाप-दादाओ की पुश्तैनी धरोहर अपने उपयोग में क्यो ले ?खुद अर्जित करें और खुद उपयोग करें तब होगा इस बात का फैसला । आज दुनिया में वृद्ध आश्रम में तमाम उन मां-बाप को देखते हैं जो अपने ही बच्चों के द्वारा प्रत्यारित किए जाने के बाद आज गुमनाम की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं । अब ऐसे में हम अपने इस समाज के बारे में जी कर क्या करेंगे ?  जब अपने ही वाले अपने ही पैदा किए हुए बच्चे जब उनके बच्चे पैदा होने पर हमें भूल जाते हैं ,तो ऐसे समाज से किसी भी बात का भी कोई रिश्ता रखने की आवश्यकता नहीं है । समय रहते सुधर जाइए । आज आपके पास पैसा है तो सारा संसार, सारा जहां आपके कदमों पर है । अतः ऐसी स्थिति में सभी मां-बाप से यह गुजारिश है कि वह अपना धन भविष्य के लिए सुरक्षित करके रखें और खास तौर से अपने बच्चों को तो किसी भी प्रकार का, किसी भी प्रकार की सहायता या मदद करने की कोशिश ना करें । मदद उतनी की जाए जितनी आवश्यकता है जैसे - शादी जिस बच्चे की शादी नहीं हुई है उसका उसकी जिम्मेदारी आपके ऊपर है शादी जिस समय हो जाएगी तो उसकी जिम्मेदारी का आधा हिस्सा को आप कर सकते हैं वह भी खानपान के जरिए बुरी आदतों के लिए पैसे तो बिल्कुल ही ना दें बुरी आदतें बनने से यह समस्या उसकी स्वयं की है जो वह स्वयं पूरा करें और अपने बाल बच्चों के साथ खुशी-खुशी रहे तो इसमें किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति ना होगी ।मां बाप को अपने किस्मत के भरोसे छोड़ दीजिए । ऐसे ऐसे ना जाने कितने प्रकरण इस दुनिया में है जो जोर जबरन बस की तरह उठाई जा रहे हैं जाते रहे हैं और आगे भी जाते रहेंगे । आज सब कुछ लौट के बाद में होश में आया तो यह बातें लेखक ने लिपिबद्ध करती है ताकि लोग इससे सबक ले जिम्मेदारियां अपनी-अपनी जगह है उन जिम्मेदारियां से मुक्त होने का प्रयास करते रहे लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं ।
* मां-बाप को जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति उस समय तक निभानी चाहिए जब तक वह जवान नहीं हो जाता और शादी नहीं हो जाती तब तक ही जिम्मेदारी निभाइए।
* माता-पिता की अनुपस्थिति में छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी घर के बड़े सदस्य को ही निभानी चाहिए और अपनी जिम्मेदारी शादी करने तक ही सीमित करिए और उनको अलग शादी के बाद अलग कर देना ही उत्तम होगा
*  मां बाप के साथ सबसे कमजोर बच्चा ही उसका साथ देते हैं क्योंकि वह निकम्मा निठल्ला होता है और अपने मां-बाप पर ही आश्रित होता है तो ऐसे में उसकी शादी करके उसका वंश बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है
* यदि आपका बच्चा लायक है तो आपका बुढ़ापे का साथी बन सकता है अन्यथा उसके लिए वृद्ध आश्रम के दरवाजे खुले हैं
* जरूरत से ज्यादा किसी की जिम्मेदारी ना उठाएं तो बेहतर होगा
* एहसान करने के बाद उसको भूल जाइए इसी में आपकी भलाई है अन्यथा यही बातें आपके लिए मुसीबत का कारण बन सकता है
* अकेले रहने की आदत बनाये अंत: जिनके साथ आप रहते हैं वे जब छोड़कर चले जाएंगे तब आप अपना जीवन अकेले में कैसे प्रतीत करेंगे इसलिए बार-बार कहा जाता है कि आपका समय है आप ही उसका सदुपयोग कीजिए और अकेले रहने का प्रयास करते रहे ।
* आज जमाना बदल चुका है समय बदल चुका है सरकारें बदल चुकी है मौसम भी धीरे-धीरे बदलते जा रहा है तो ऐसे में  आपका साथ कोई नहीं देगा और आपको अकेले ही इस दुनिया में लड़ते रहना होगा । नेकी के कार्य पर चलते रहें और  अपनी जिम्मेदारी नियमों के अंतर्गत उठाते रहे इसी में आपकी भलाई छुपी है ।
* रिश्तेदारी तो एक प्रकार से समाप्त हो ही चुकी है क्योंकि वहीं  मां-बाप और उसके बच्चे ही सब कुछ है ऐसा मानती है दुनिया ,और अपनों को खास रिश्तेदारों को भुला देती है यह ही समय का तकाजा है।
                 तो यह तय हो गया कि आज की दुनिया मे रिस्तो का महत्व समाप्त हो गया है मात्र दिखावा रह गया है । बस एक आदमी और एक औरत का जो रिस्ता है पति-पत्नी का वही ही रह गया है जो आखिरी समय तक चलता रहता है । दोनो मे एक गया तो दूसरे का जीवन दूभर हो जाता है ।
माता पिता के रिस्तै से सर्वेपरि रिस्ता पति-पत्नि का माना जा सकता है । लोग अपनी जवानी मे भूल कर जाते है और तलाक लेने को अपनी शान समझते है वे अपना ही जीवन बरबाद करते है ।
सब काम समयानुसार चलता है । और उसी के अनुसार हमे समर्पित कर देना चाहिए ।
गुरुजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक-फिलासफर
     

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