कुण्डित मन की व्यथा ?

  *   कुण्डित मन की व्यथा ?     *
इस बदलते युग मे हर इंसान को एक अजीब से मन मे व्याकुलता महसूस कर रहा है कि "अब क्या होगा " ! किसी को पैसो की चाहत ,
किसी को ,किसी को रोजगार की चाहत है तो किसी को अपने भविष्य की चिंता सता रही है तो किसी को यह मंहगाई की डायन सपने मे डरा रही है तो किसी को शादी-विवाह की चिंता रही है तो किसी को अपने बचे हुऐ जीवन के कुछ पल जो उसके बचे है मौत की चाहत सता रही है ।
     इन सबसे बेखबर सरकारी कर्म-
चारी/अधिकारियों और नेताओ की व्यथा भी उनको घेरे हुऐ है । उनकी व्यथा कुछ हटकर इस प्रकार से है कि - किसी को अपने प्रोमोशन की चिंता सता रही है तो किसी को धन
अर्चित की कामना सता रही है तो किसी को अपनी पीढ़ीयो की चिंता सता रही है कि उनकी नौकरी के बाद उनके बच्चो का क्या होगा ? और जल्द ही वह स्थिति भी सामने आ जाती है कि उनकी पेंशन राशी से उनका परिवार भूखो नही मर रहा है किंतु  उनकी मृत्यु के बाद क्या होगा ? कुछ ऐसे भी लोगो की व्यथा यह है कि जो नेतागिरी कर रहे है वे लोग कुर्सी की लड़ाई कैसे आगे बढ़ाऐ, कैसे घोटाला करे ताकि इन पांच सालो मे कितना ज्यादा से भ्रष्टाचार कर धन अर्जित करे ? सबसे ज्यादा परेशान है सरकारी अफसर जिनकी निक्कमी
औलादों के लिऐ किस नेता अथवा पार्टी के लिऐ अच्छा से अच्छा प्रदशन कर अपनी पकड़ मजबूत कर सके । वर्ष 2024 की चुनावी प्रक्रिया मे महौल की भी व्यथा बुध्दिजीवी झेल रहे है और भयावह
स्थिति से गुजर रहे है । 
     वर्तमान समय मे क्या चल रहा है और कैसा चल रहा है और कब तक चलता रहेगा यह कोई भी नही जानता है,यह समय ही बतलाएगा!
    आज का मानव इस बदलाव से इतना अधिक परेशान हो गया है कि वह अपने ही आप को भूलता नजर आ रहा है । रिस्तो मे दरार भी
पड़ते नजर आ रही है । राजनीतिक
हलचल भी बढ़ती जा रही है । किंतु
इसी के साथ साथ भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की  एक तरफा कार्य-
वाही भी जारी है । आमलोगो के मन की व्यथा जहां की वही है । प्रशासन की मन की बात,सीएम हेल्प लाइन की भूमिका अपनी ही जगह अहम रही किसी को न्याय मिला तो किसी को नही मिला !
गुरूजीसत्यवादी श्रीरामधुन
लेखक-आलोचक- काउसंलर





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