दुखी मन काहे को रोऐ रे .....!श्रीराम..
दुखी मन काहे को रोऐ रे ......!
व्यथित मन मे सब कुछ होते हुऐ भी आँसूओ का बरसना , अपने आप झलकना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । इनको रोकना बहुत ही
मुश्किल है । इस व्यथा का स्वाद हर इंसान को चखना ही पड़ता है । कोई पहले फल तो कोई बाद मे फल चखता है यह प्रकृति का नियम है । आज मेरा भी मन व्यथित है समझ मे नही आ रहा है कि समय अथवा प्रकृति को क्या मंजूर है । एक तरफ कुंआ तो दूसरी
तरफ खाई है इसका मतलब तो यह
है कि मै अभी तक एक भ्रम मे जी रहा था अब उस पर से धीरे-धीरे फर्दा हटते जा रहा है और स्थितियां
स्पष्ट होते जा रही है । सब कुछ गवां कर होश मे आया तो क्या किया ! समय निकल चुका अब तो
कुछ नही किया जा सकता है । जो भी चल रहा है ठीक ही है इस तस्सल्ली के लिऐ अच्छा है । सबको परख लिया,आँखो का पर्दा तो हटा । यह सब समय का खेला है
जिसे कोई भी नही बदल सकता तो मेरी क्या बिसात है ।
आज का दिन 16 जून 2024 का दिन एक यादगार दिवस के रुप मे इतिहास मे याद रहेगा मुझे । आज मै अपने आपको कभी भी माफ नही कर सकता । भगवान और प्रकृति पर से विश्वास उठने वाला यह दिन मुझे याद रहेगा । आज मेरी सबसे प्यारी चीज मुझसे
बिछुड़ ग ई है । यह दिन कभी ना भूलने वाला दिन है । आज के दिन हुआ यह कि मेरे पुत्र का अर्पित का निधन हुआ है । जिसे मै और मेरे परिवार वालो के लिऐ दुखद दिवस है । 17 -18 जून की भी ऐसी स्थिति है। अतः इन तीन दिनो का
शोक अवकाश है जिसमे "आज का
इतिहास" नही लिखा जा रहा है !
लेखक-आलोचक-काउसंलर
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